लॉकडाउन में वेंडरोंं ने दान के खाने से भरा पेट, अब स्टेशन पर मिला रोजगार
ग्वालियर, न.सं.। कोरोना वायरस की मार सबसे अधिक रोज कमाकर खाने वालों पर पड़ी है। इससे रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले वेंडर भी अछूते नहीं रहे। कभी वेंडरों की आवाज से गुलजार होने वाले रेलवे स्टेशन पर लॉकडाउन के दौरान सन्नाटा छाया रहा। जिसके कारण स्टेशन पर खाने-पीने का सामान बेचकर रोज कमाकर अपने परिवार का पेट भरने वाले वेंडरों की रोजगार ठप होने से उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई। लॉकडाउन के दौरान किसी वेंडर ने ठेले पर सब्जी बेची तो किसी ने दाल मिल में काम करके तो किसी ने कर्जा लेकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया। कुछ वेंडर तो ऐसे भी थे जो स्टेशन पर काम करते थे और वहीं पर सो जाते थे। जिनका घर दूर था और वह लॉक डाउन में फंस गए। इस हालत में रेलवे स्टेशन के दरवाजे बंद होने से ऐसे वेंडरों ने बस स्टैंड पर सोकर और दान मे मिलने वाला खाना खाकर अपना पेट भरा। अब एक जून से ट्रेंनों का संचालन शुरू हो गया लेकिन ग्वालियर स्टेशन पर केवल सात जोड़ी ट्रेनों के ठहराव है। उनमें भी ट्रेनों से आने-जाने वाले यात्रियों की संंख्या कम होने से वेंडरों का घंधा पानी न के बराबर हो रहा है। पहले जो कमाई होती थी, उससे वेंडर अपने परिवार का भरण-पोषण कर लेते थे, लेकिन अब स्टेशन पर ग्राहकी नहीं होने से वेंडरों की दशा दयनीय हो रही है। अब रेलवे इन लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने की कार्ययोजना बना रहा है। धीरे-धीरे जैसे ही ट्रेनों का संचालन बढ़ेगा वैसे ही इन्हें रोजगार मिलने लगेगा।
इनका कहना है
मालिक ने काम पर रख लिया
हमने कभी सोचा नहीं था, कि ऐसे दिन भी देखने पडेंगे। लॉकडाउन में स्टेशन बंद हो गया था। फिर मैंने एक दाल की मिल में काम करना शुरू किया। वहां मुझे रोज के 120 रुपए मिल रहे थे। एक जून से ट्रेनें चलने का पता चला तो मैं स्टेशन पर काम के लिए आ गया। मालिक ने काम पर रख तो लिया है लेकिन ट्रेनें कम चलने से उतने पैसे नहीं मिल रहे।
राधेश्याम
वेंडर
कर्जा लेकर परिवार चलाया
स्टेशन पर काम करके ही मैं अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था। लॉकडाउन में स्टॉल बंद हो गया। मालिक ने 10-15 दिन तो हमें पैसे भी दिए लेकिन बाद में मैंने कर्जा लेकर अपने परिवार का पेट भरा। स्टेशन पर काम करने तो आ गए हैं लेकिन धंधा नहीं चल रहा है।
संतोष
वेंडर
बस स्टैण्ड पर गुजारी रातें
मेरा परिवार तो स्टेशन पर रहने वाले लोग ही थे। मैं यहीं पर खाता था, यहीं सोता था। लॉकडाउन में मैंने बस स्टैंड के बाहर सोकर रात गुजारी। दिन में दान करने वाले मुझे खाने के पैकेट दे जाते थे। उन्हीं खाने के पैकेट से मैं अपना पेट भरता था। स्टेशन पर काम के लिए वापस तो आ गया हूं, लेकिन अभी कुछ समझ नहीं आ रहा।
रामजीलाल(डोंगर)