120 साल पहले भी चला करती थी मेट्रो ट्रेन: दुनिया की सबसे पुरानी मेट्रो ग्वालियर में चली, लार्ड कर्जन और जॉर्ज प्रथम ने भी इसमें यात्रा…

अनुराग उपाध्याय। भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर जैसे नगरों में मेट्रो ट्रेन कब चलेगी यह अब तक साफ़ नहीं हुआ है। लेकिन ग्वालियर में अब से 120 साल पहले मेट्रो ट्रेन दौड़ना शुरू हो गई थी। उस ज़माने में ग्वालियर की नैरोगेज मेट्रो शहर के एक इलाके से दूसरे इलाके तक लोगों को पहुंचाने का काम बखूबी करती थी। ग्वालियर की उस मेट्रो ट्रेन को शुरू करने का श्रेय सिंधिया स्टेट को जाता है।
बात आजादी के पहले की है। ग्वालियर रियासत का अपना दबदबा था। ग्वालियर में कई भवनों का निर्माण चल रहा था। ग्वालियर रियासत में तब आवागमन के कोई आधुनिक साधन नहीं थे। तब भी शहर को एक छोर से दूसरे छोर तक नापना आसान नहीं था। ऐसे में सिंधिया रियासत काल में शहरी परिवहन बढ़ाने के लिए ट्रेन की कल्पना की गई। तब तक मेट्रो ट्रेन जैसी कोई परिकल्पना नहीं थी।
बहुत आधुनिक तकनीक भी नहीं थी। ऐसे में तत्कालीन शासक माधवराव सिंधिया ने अपने तकनीकी सलाहकारों की राय पर वर्ष 1894 में नैरोगेज ट्रेन के लिए ट्रैक बिछाने की शुरुआत करवाई। जयविलास पैलेस से ट्रैक बिछना शुरू हुआ और आम खो, कम्पू कोठी तक पहुँच गया।
दूसरा ट्रैक मुरार और गोले का मंदिर पहुंचा तो तीसरा ट्रैक बानमोर तक पहुँच गया। 11 साल बाद 1905 में ग्वालियर की नैरोगेज मेट्रो पटरियों पर आम लोगों के लिए दौड़ने लगी। हालांकि कुछ समय पहले इसका संचालन बंद कर दिया गया है लेकिन इसकी यादें आज भी लोगों के जहन में है। अब हेरिटेज ट्रेन चलाने की बात कही जा रही है।
जयविलास पैलेस से होता था ट्रेन का संचालन
1905 में रियासत के तत्कालीन महाराज माधवराव सिंधिया ने लाइट मेट्रो का उद्धघाटन किया। सिंधिया रियासत में इस ट्रेन का संचालन जयविलास पैलेस से किया जाता था। उस समय राजपरिवार इस ट्रेन का उपयोग स्वयं और व्यापार के लिए करता था। फिर ये जनता जनार्दन की हो गई। उस दौर में लाइट मेट्रो ग्वालियर के तीनों उप नगर लश्कर, मुरार और ग्वालियर को जोड़ती थी। धीरे-धीरे नैरोगेज का विस्तार हुआ और बाद में ग्वालियर से श्योपुर और भिंड तक को इस मेट्रो ने जोड़ दिया।
ग्वालियर की इस मेट्रो को ग्वालियर-शिवपुरी खंड पर भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 2 दिसंबर 1899 को पहली बार रवाना किया था। जबकि 1904 और 1911 में भारत आए ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जॉर्ज प्रथम ने इसी ट्रेन में यात्रा की थी। तब की ये छुक-छुक गाड़ी देखते ही देखते लोगों की जरूरत बन गई।
120 साल पहले भी इसे चलाने का उद्देश्य अब जैसा ही था। तब भी ये ट्रेन आधुनिक नगरीय परिवहन प्रणाली का एक अहम हिस्सा थी। यह शहरों में यातायात की समस्या को कम करने के साथ तेज़, सुरक्षित, और सुविधाजनक परिवहन का साधन थी। बस उस जामने में ये बिजली की बजाए कोयले से चलती थी। भाप इंजन इसकी ताकत हुआ करते थे। इसमें महाराजा सैलून के अलावा आमा लोगों के लिए भी चेयर कार बोगियां हुआ करती थीं। तब 1920 के दशक में नानकुरा बांध के नीचे एक जनरेटिंग स्टेशन से इसके विद्युतीकृत करने की योजना बनी थी, लेकिन तकनीकी समस्यायों के कारण इस योजना को छोड़ दिया गया।
सिंधिया रियासत में ग्वालियर लाइट रेलवे इसका संचालन करता था। आजादी के बाद जीएलआर को उत्तर रेलवे में विलय कर दिया गया। वर्ष 1951 में ग्वालियर रेलवे स्टेशन से इसका संचालन किया जाने लगा। ग्वालियर की मेट्रो नैरोगेज ट्रैक पर चलती थी, यह सबसे संकरी रेलवे लाइन थीं। इसमें ट्रेन के पहिये यह 610 मिमी (लगभग दो फीट) चौड़े ट्रैक पर दौड़ते थे।
जब नैरोगेज ट्रेन बंद की गई तो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसे बतौर हैरिटेज रेल चालाने की मांग की तब रेलवे ने इस ट्रेन और ट्रैक का विकास कर इसे हैरिटेज रेल के रूप में विकसित करने का फैसला किया था। लेकिन तब से ये मामला लंबित ही पड़ा है। अगर वापस ये हैरिटेज ट्रेन दौड़ती है तो ग्वालियर और आसपास के इलाकों में इससे पर्यटन बढ़ेगा।
20 किलोमीटर के ट्रैक पर चलाई जानी है हैरिटेज ट्रेन
भाजपा नेता सुधीर गुप्ता इसके लिए लगातार लिखा पढ़ी कर रहे हैं। उनका कहना है ग्वालियर से बानमोर के बीच 20 किलोमीटर के ट्रैक पर यह हैरिटेज ट्रेन चलाई जानी है। इसके लिए रेलवे ने फिजिबिलिटी सर्वे का काम शुरू किया है। इस ट्रैक पर ग्वालियर, घोसीपुरा, मोतीझील, बामोर के साथ करीब 6 स्टेशन विकसित करने की योजना है।
यह थे स्टेशन
ग्वालियर में चलने वाली 120 साल पुरानी यह ट्रेन जयविलास पैलेस से स्टेशन, आम खो, कम्पू,फूलबाग,जीवाजी गंज,कटी घाटी घोसीपुरा ,बोहड़ापुर ,पुरानी छावनी ,मोती झील और बानमोर तक को जोड़ती थी। एक अन्य ट्रैक थाटीपुर ,मुरार तांगा स्टेण्ड ,गोले का मंदिर ,मेला ग्राउंड ,शनिचरा तक जाता था ,बाद में इसका विस्तार होता गया और ये एक तरफ भिंड तक तो दूसरी और सबलगढ़ और श्योपुर तक को जोड़ने लगी। इसके आरम्भ में ही करीब 400 किलोमीटर का ट्रैक बिछाये जाने पर सहमति हुई थी। यह ट्रैक बना भी लेकिन बाद में ये सिर्फ 197 किलोमीटर का ट्रैक ग्वालियर से श्योपुर तक ही चली।
अब ग्वालियर में आएगी आधुनिक मेट्रो : तोमर
प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर कहते हैं ग्वालियर में मेट्रो तब चल रही थी जब इसकी कहीं कोई कल्पना भी नहीं थी। पिछली शताब्दी में ग्वालियर की सिंधिया रियासत ने लोगों की सुविधा के लिए जन-जन के लिए लोकार्पित कर दिया था। अब फिर हमारे शहर में आधुनिक मेट्रो लाये जाने की चर्चा है। जल्दी ही इसको अंतिम रूप दिया जाएगा।