आज भी कारगर हैं तिघरा जलाशय के विश्वेश्वरैया गेट, 107 साल में नहीं हुए खराब
ग्वालियर,न.सं.। शहर की आधी से अधिक आबादी को पेयजल उपलब्ध कराने वाले तिघरा बांध में लगे विश्वेश्वरैया गेट 107 साल बाद भी कारगर हैं। इतना लंबा समय बीतने के बावजूद ये बुलंद दरवाजे इंजीनियरिंग की एक बेहतरीन मिसाल हैं। इन गेट सहित बांध को वर्ष 1916 में इंजीनियरिंग के पिता कहे जाने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने तैयार कराया था। उस समय वे मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर थे और तत्कालीन महाराज माधौराव सिंधिया के आग्रह पर उन्होंने इसका निर्माण कराया था। उनकी दूरदर्शिता का ही कमाल है कि यह बांध आज भी शहर की प्यास बुझाने का काम कर रहा है। उस समय तिघरा को माधव सागर झील कहा जाता था और यह देश का पहला ऐसा जलाशय है, जहां पहली बार सी-प्लेन भी उतरा था।
उनकी सलाह से भारत के कई हिस्सों में बांधों का निर्माण हुआ। ग्वालियर में 106 साल पहले उन्होंने शहर की प्यास बुझाने के लिए तिघरा बांध का निर्माण कराया था। विश्वेश्वरैया की शहर को दी गई सौगात कई गुना आबादी बढऩे के बाद भी वरदान बनी हुई है। दरअसल, तत्कालीन ग्वालियर रियासत में अकाल पड़े थे। रियासत में जंगल भी बहुत थे और नदियां भी पर्याप्त थीं, लेकिन ऐसा कोई साधन नहीं था कि रियासत के जल संसाधनों को आपातकाल के लिए संग्रहित कर रखा जा सके। ऐसे में तत्कालीन महाराजा माधौराव ने फैसला किया कि शहर की प्यास बुझाने और आपातकाल में किसानों को पानी देने लिए एक बड़ा बांध बनाया जाए। नतीजतन 1916 में तिघरा बांध बनाया गया। मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया को उन दिनों बांध बनाने के मामले में दुनिया के श्रेष्ठतम इंजीनियरों में शुमार किया जाता था। उन्होंने महाराजा माधौराव के आग्रह को मानकर ग्वालियर के लिए बांध बनाने की जिम्मेदारी स्वीकार कर ली। सर्वे के बाद तीन ओर से पहाडिय़ों से घिरे सांक नदी के क्षेत्र को बांध के लिए चुना गया। बांध 1916 में बन कर तैयार हो गया। करीब 24 मीटर ऊंचे और 1341 मीटर लंबे इस बांध की क्षमता 4.8 मिलियन क्यूबिक फीट है। इसमें विश्वेश्वरैया ने खुद के ईजाद किए फ्लड गेट लगाए थे, जिन्हें बाद में विश्वेश्वरैया गेट के नाम से पेटेंट भी कराया गया था।तिगरा
मैकेनिकल गेट खोले जाते हैं
जल संसाधन विभाग ने बाद में तिघरा बांध में मैकेनिकल गेट लगवा दिए थे। तिघरा बांध के फुल हो जाने पर इन्हीं गेटों को खोलकर पानी निकाला जाता है। हालांकि इन गेटों में अब लीकेज की समस्या खड़ी हो गई है। जिन्हें सुधारा जा रहा है।