भाजपा को अपना गढ़ बचाने की चुनौती तो कांग्रेस रिकॉर्ड तोडऩे की तैयारी में

भाजपा को अपना गढ़ बचाने की चुनौती तो कांग्रेस रिकॉर्ड तोडऩे की तैयारी में
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आगर विधानसभा उपचुनाव में दो युवा उम्मीदवारों में होगा मुकाबला

उज्जैन/ग्वालियर.। उज्जैन संभाग में भाजपा का अजेय गढ़ माने जाने वाले आगर विधानसभा क्षेत्र की राजनीतिक पिच पर कांग्रेस चुनावी इतिहास का पुराना रिकॉर्ड तोडऩे की रणनीति के साथ मैदान में उतरी है तो भाजपा के सामने अपनी इस परंपरागत सीट पर नए चेहरे के साथ अपने ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखने की चुनौती है। कांग्रेस ने इस सीट पर एक बार फिर भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विपिन वानखेड़े को अपना प्रत्याशी बनाया है, जबकि भाजपा ने अपने दिवंगत विधायक मनोहर ऊंटवाल के बेटे मनोज ऊंटवाल को चुनावी जंग में उतारा है। इस प्रकार यहां दो युवा उम्मीदवारों में कड़ा मुकाबला होगा।

यहां बता दें कि अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षिति आगर विधासभा सीट पर भाजपा विधायक मनोहर ऊंटवाल के असामयिक निधान के कारण उपचुनाव हो रहा है। इस सीट के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो जनसंघ के जमाने से आगर विधानसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ रहा है। वर्ष 2014 के उपचुनाव सहित 1957 से अब तक हुए 15 चुनावों में कांग्रेस को 1972 व 1998 में केवल दो बार ही जीतने का मौका मिला है। बाहरी नेताओं का भी इस सीट पर खासा बोलबाला रहा है। भाजपा के शासनकाल के दौरान 2013 में आगर जिला बना, इसलिए भाजपा की यहां पकड़ और मजबूत हो गई। विगत 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के मनोहर ऊंटवाल 2490 मतों के अंतर से कांग्रेस के विपिन वानखेड़े से जीते थे। श्री ऊंटवाल को 82146 और श्री वानखेड़े को 79656 मत मिले थे। विधानसभा चुनाव 2013 में भी इस सीट से भाजपा के टिकट पर मनोहर ऊंटवाल चुनाव जीते थे, तब उन्हें 83526 और कांग्रेस के माधव सिंह को 54867 मत मिले थे। 2014 में मनोहर ऊंटवाल देवास-शाजापुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर सांसद बन गए। इसके बाद खाली हुई इस सीट पर उपचुनाव में भाजपा के गोपाल परमार कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार गौरे को करीब 27 हजार मतों से पराजित कर विधायक चुने गए थे। इस सीट पर वैसे तो ज्यादातर भाजपा चुनाव में अच्छे मतों से जीतती आई है, लेकिन 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी विपिन वानखेड़े ने खासी टक्कर दी थी और इस सीट पर जीत का अंतर मात्र 2490 पर ला दिया था। इससे पहले 2003 में भाजपा की रेखा रत्नाकर ने कांग्रेस के विधायक रहे रामलाल मालवीय को 24916 मतों से पराजित किया था। रेखा रत्नाकर के बाद 2008 में भाजपा के लालजीराम मालवीय ने कांग्रेस प्रत्याशी रमेश सूर्यवंशी को 16734 मतों से हराकर इस सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रखा था। श्री मालवीय को 60065 और श्री सूर्यवंशी को 43331 मत मिले थे।

भाजपा-कांग्रेस के बीच होगी टक्कर

आगर विधानसभा सीट पर हमेशा से ही कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला होता रहा है। अन्य कोई भी पार्टी यहां अपनी ठोस उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाई है। पिछले चुनावों का रिकॉर्ड देखें तो बसपा सहित अन्य दलों के प्रत्याशी इस सीट पर एक से दो हजार मतों के आसपास ही सिमटकर रह जाते हैं। उपचुनाव में एक बार फिर इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही घमासान होगा। इसको लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों दल चुनाव प्रचार में जुट गए हैं।

विपिन के सामने हैं कई चुनौतियां

दो बार भाराछासं के इन्दौर जिलाध्यक्ष और दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे कांग्रेस प्रत्याशी 32 वर्षीय विपिन वानखेड़े के बारे में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस सरकार के दौरान क्षेत्र के सरपंचों और सचिवों पर अनावश्यक दबाव बनाने की चर्चा जोरों पर रही। इन्दौर निवासी होने के कारण स्थानीय और बाहरी का मुद्दा भी उनके चुनाव परिणाम पर असर डाल सकता है। उनके लिए स्थानीय दावेदारों और कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना भी पिछले चुनाव की तरह चुनौती पूर्ण होगा। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी विपिन को बाहरी होने के कारण स्थानीय दावेदारों और उनके समर्थकों का विरोध झेलना पड़ा था।

मनोज को मिल सकता है पिता के प्रभाव का लाभ

भाजपा प्रत्याशी मनोज उर्फ बंटी ऊंटवाल का यह पहला चुनाव है। 34 वर्षीय मनोज ऊंटवाल मूल रूप से धार के रहने वाले हैं। उनके पिता स्व. मनोहर ऊंटवाल आलोट व आगर से विधायक, देवास से सांसद, म.प्र. सरकार में नगरीय प्रशासन राज्य मंत्री, संगठन में बड़े पदों पर रहे। साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के करीबी भी रहे। मनोज आगर व आलोट दोनों ही क्षेत्रों में खासे लोकप्रिय हैं। दो भाइयों में मनोज बड़े हैं और पिता की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। अपने पिता का पूरा काम मनोज ही संभालते थे। मनोज ने ग्वालियर से बीई किया है। मनोज को उपचुनाव में अपने पिता के प्रभाव, प्रदेश में भाजपा की सरकार और आगर भाजपा की परंपरागत सीट होने का फायदा मिल सकता है।

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