क्या कांग्रेस चुनाव मैदान में भाजपा को मात देने के लिए खोज पाएगी तुरुप के इक्के?

क्या कांग्रेस चुनाव मैदान में भाजपा को मात देने के लिए खोज पाएगी तुरुप के इक्के?
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अनिल शर्मा

ग्वालियर-चंबल संभाग के चार संसदीय क्षेत्रों में प्रत्याशी चयन कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती

ग्वालियर। ग्वालियर-चंबल संभाग के चार संसदीय क्षेत्रों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पहली सूची में उमीदवारों की घोषणा कर कांग्रेस व अन्य दलों के लिए प्रत्याशी चयन को लेकर मुश्किल चुनौती खड़ी कर दी है। कमल के फूल को प्रत्याशी मानकर चुनाव तैयारी में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने जातीय समीकरण का जाल भी बिछा दिया है। अब देखना यह है कांग्रेस पार्टी चुनाव मैदान में उसके सामने खड़े बादशाह को मात कैसे दे पाएगी, या कांग्रेस के नेताओं की पारखी नजर तुरुप के इक्के खोज पाएगी?

भिंड-दतिया संसदीय क्षेत्र

भिंड-दतिया संसदीय क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी ने संध्या राय को पुन: मैदान में उतार दिया है। वह 2019 में इतनी सशत उमीदवार नहीं थी जितनी 2024 में अब है, फिर भी 2019 में रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीती थीं। वह भारतीय जनता पार्टी की कार्यकर्ता रायशुमारी में अव्वल रहीं तो संगठन में भी पूरे पांच साल पकड़ बरकरार रखने मे कामयाब रहीं हैं। सांसद के अलावा उनके पास भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष की जिमेदारी भी रही। इसके साथ ही उनमें सक्षम महिला नेतृत्व गुण भी है, जिसके चलते उनकी भिंड-दतिया संसदीय क्षेत्र में अच्छी पकड़ बनी है। ऐसे में कांग्रेस व बसपा दोनों ही दलों को टक्कर का उम्मीदवारखोजना आसान नहीं है। कांग्रेस पार्टी 2019 में देवाशीष जरारिया को अपने पुराने वोट बैंक को वापसी के इरादे से खोजकर लाई थी। यह मोहरा भी उसका पिट चुका है। अब 2023 के विधानसभा चुनाव में भांडेर से विधायक चुने गए फूल सिंह बरैया पर कांग्रेस दांव लगा सकती है। इसके अलावा पूर्व मंत्री महेंद्र बौद्ध व जिला पंचायत सदस्य संजू जाटव का भी नाम संभावित प्रत्याशियों के रूप में चर्चा में है।

मुरैना-श्योपुर संसदीय क्षेत्र

मुरैना संसदीय क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी ने 2018 विधानसभा चुनाव के पराजित उमीदवार शिवमंगल सिंह तोमर को प्रत्याशी बनाया है। 2019 में नरेंद्र तोमर सांसद चुनकर केन्द्रीय मंत्री बने थे, लेकिन विधानसभा में बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने के क्रम मे नरेंद्र तोमर को भी चुनाव लड़ाया गया और वर्तमान में वह विधानसभा अध्यक्ष है। संगठन ने मुरैना सीट को जाति समीकरण में फिर तोमर को टिकट दिया है। कमल के फूल को प्रत्याशी मान रही पार्टी की थीम से भी मजबूत है पर यदि विधानसभा चुनाव के वोट प्रतिशत व ब्राह्मण और ठाकुर के बीच जो खाई निर्मित हुई है वह कांग्रेस की शतरंजी चाल पर मंहगी पड़ जाए तो अचरज नहीं होगा। कांग्रेस के पास घोषित रूप से तो कोई सशक्त उमीदवार नहीं है, लेकिन दांव के लिए कुछ मजबूत पत्ते तो हैं जिसमें विधायक रामनिवास रावत, पूर्व मंत्री चौ. राकेश सिंह और किसी दूसरे दल से आयात किया हुआ बड़ा ब्राह्मण नेता भी कांग्रेस का टंप कार्ड बन सकता है।

गुना संसदीय क्षेत्र -

वैसे तो गुना संसदीय क्षेत्र सिंधिया का गढ़ है, यहां दल प्रधान न होकर सिंधिया परिवार की महत्ता है। इस सीट से राजमाता विजयाराजे सिंधिया, कै. माधवराव सिंधिया व ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद निर्वाचित हो चुके है। 2019 के चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके मातहत ने ही मात दी थी जो सिंधिया परिवार के लिए चिंतन का कारण बनी। 2019 में हारे सिंधिया को भाजपा ने उमीदवार बनाया है। कांग्रेस पार्टी भी सिंधिया से धोखा खाने से इस चुनाव मे बदला लेने के मूड में है। कांग्रेस केपी यादव को भी अपने पाले में कर चुनाव मैदान मे उतार सकती है, लेकिन शायद ही उसे सफलता मिले। यह भी हो सकता है कि राजनीति के चाणय दिग्विजय सिंह की अग्नि परीक्षा लेने और सिंधिया से बदला लेने कांग्रेस हाईकमान गुना मे दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारने की शतरंज की चाल चल सकता है। फिलहाल यह एक राजनीतिक अटकल है जो पूरी भी हो सकती है और नहीं भी।

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने जातीय समीकरण के चलते हारे उम्मीदवार या पार्टी चुनाव मैदान में भाजपा को मात देने खोज पाएगीतुरुप के इके?पर बाजी लगाकर अति आत्मविश्वास में है या राजनीति की कोई महती चाल है। इस सीट पर कुशवाह समाज के भारत सिंह कुशवाह को लोकसभा प्रत्याशी बनाया है जो प्रदेश भाजपा सरकार के कार्यकाल मे मंत्री रहे और पिछली विधानसभा चुनाव में हार गए। यदि यह कहा जाए कि कुशवाहा समाज को साधने यह निर्णय लिया है तो नारायण सिंह कुशवाह पहले ही भाजपा के पास हैं। लोकसभा की चारों सीट पर ब्राह्मण नेतृत्व उपेक्षित तो महसूस नहीं कर रहा इस पर संगठन को आत्म विश्लेषण करना चाहिए। यदि भाजपा किसी महाराष्ट्रीयन को चुनाव मैदान में उतारती तो उससे एक तीर से दो निशाने का खेल भाजपा खेल सकती थी। यानि महाराष्ट्रीयन व ब्राह्मण दोनों को साध सकती थी। यदि कांग्रेस पार्टी ने अच्छी सोशल इंजीनियरिंग कर निर्णय लिया तो भाजपा के लिए मुसीबत हो सकती है। जिसके पहले पायदान मे उसने अशोक सिंह को राज्यसभा में ले जाकर यादव समाज को संतुष्ट करने की कोशिश की है। यदि उसने किसी पिछड़ा वर्ग में या गुर्जर समाज को लोकसभा का उमीदवार बना दिया तो भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। राजनीति के गलियारों की चर्चा के अनुसार रामसेवक गुर्जर बाबूजी भी उमीदवार हो सकते हंै या फिर ब्राह्मण वर्ग को साधने किसी ब्राह्मण नेता को भी चुनाव मैदान में उतार सकती है।

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