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डेयरी उद्योग ने फेर दिए दूधियों के दिन
सागर/श्याम चौरसिया। आज बुलट पर दूध सप्लाई करने वाले दूधिए 40 साल पूर्व कच्चे,धूल,कीचड़ सने रास्तो पर मीलों चलते थे। पैदल दूध पात्र सर पर रख कर लाते थे। गुर्जनिया सर पर काली हांडी में दूध लेकर गली गली हांक लगाया करती थी।अब गुर्जनिया घर से सिर्फ किराना या गृहस्थी का अन्य सामान खरीदने बाजार/नगर/कस्बे में आती है।पहनावा भी बदल गया। लुगड़ा घाघरा की जगह साड़ी, सलवार सूट ने ली ली। छात्राए जीन्स आदि पहनने लगी।
30 साल पहले तक सायंकाल ओर फिर राजदूत,बजाज की m-80 दूध परिवहन का साधन बन गए। ये वाहन दूधियों की आर्थिक समृद्दि की अंतर्कथा बयान करने लगे। फटे हाल,02 जोड़ धोती कमीज/कुर्ता में गुजरा करने वाली पीढ़ी लुप्त हो गयीं। अब पेंट,शर्ट, जीन्स,महँगी घड़िया, एंड्रॉयड मोबाइल चलन में आ जाने से बाजार चमकने लगे।
आबादी कम ओर मांग कम होने की वजह से दूधिए सर पर 05-10 किलो की गगरी रख लाते थे। अब 25-50 लीटर की केने हौंडा/बुलट के दोनों तरफ लटकी देखी जा सकती है। घरों के सामने मोटर सायकिल रुकती ओर जरूरत के अनुसार दूध देकर अगले दरवाजे के सामने हार्न बजा देते।अब से 40 साल पूर्व जगह जगह घी की मंडियों में दूर दूर से खरीददार आया करते थे। घी की परख परखी से करते थे। घी की दुकानें अलग हुआ करती थी। किसी कस्बे में 02 या 03 बस। कौन दुकानदार मिलावट करता है।डालडा मिलता है।
इसका बीबीसी लन्दन की तरह रोज रात को पटियो पर खब्त ली जाने का रिवाज था और खबरों के खास स्त्रोत पटिये ही हुआ करते थे। अब चैनल, अखबारों ने वो जगह हथिया ली। शुद्ध घी की दुकानें ढूंढने जाओ तो हर नुक्कड़ पर डेरिया मिल जाएगी। डेरियों पर कुंतलो से घी,पनीर,दही,दूध हर समय सुलभ रहता है। इतनी विशाल मात्रा में आता कहा से है पता नहीं। अनेक दूधिए अब खुद साहूकारी करने लगे। गांव तो छोड़ो कस्बो,नगरों में आधुनिक सुख सुविधओं से युक्त भवन तान दिए। 04 पहिया वाहनों के मालिक हो गए। इतना सब कुछ होने के बाबजूद अनेको दूधिए ओर डेरी वाले bpl कूपन धारी मिल जाएंगे। यही कथा बड़े,मध्यम किसानों,दूध उत्पादकों की है।
गाँवो में पिछले 20 सालों से विरले घरों में ही गाय, बेल मिलेंगे। बेल की जगह टेक्टरों ने ले ली। बेलो की खरीदी बिक्री ठप्प हो जाने से चौपाए मेलो की रंगत मिट्टी में मिलती जा रही है। मेले आयोजित करना- सोने से घड़ाई महँगी जैसी हो चली। दूधियों के पास गाय नही है। पर वे गाय का दूध सप्लाई करते है। कस्बो,नगरों,शहरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ दूध उत्पादकों ने डेरियों खोल भेस पाल ली। 40-50 साल पूर्व शून्य से प्रारम्भ दूध व्यवसाय आज करोडो के निवेश वाला हो चुका है। लाखो लोगों की रोजी रोटी चल रही है लॉक डाउन काल में सरकार ने इस चोखे धंधे को ओर परवान चढ़ाने बैंक लोन आसान कर दिया।जिसका लाभ पशु पालकों ने उठाया।