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प्रकृति की गोद में विराजमान है कूनो सेंचुरी का "नटनी खो"
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श्योपुर। जिले में अवस्थित कूनो नेशनल पार्क आजकल प्रदेश के साथ साथ संपूर्ण भारत मे सुर्खियों को बटोरने में लगा हुआ है। जिसका मुख्य कारण है यहां के वन और वन्यजीव। लेकिन एक और खास बात यह है कि यह आने वाले नए मेहमानों अर्थात अफ्रीकन चीतों के लिए देश मे चर्चा का विषय बन गया है। अपनी प्राकृतिक सौंदर्यता, भौगोलिक स्थिति एवं प्राकृतिक व्यू पॉइंट की दृष्टि से यह नेशनल पार्क बेहद ही रोमांचक स्थल है। ऐसा ही एक व्यू पॉइंट है नटनी खो जो कि कूनो के कोर एरिये में मौजूद है। यहां से प्रकृति का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। इस पॉइंट से नीचे देखने पर प्रतीत होता है कि देखने वाला तो बादलों में खड़ा है और जमीन सघन वनस्पतियों एवम वृक्षों से दिखाई ही नहीं देती।
यह क्षेत्र मानवीय गतिविधियों से कोसों दूर है। यह इलाका इतना सघन है कि दूर दूर तक देखने पर सिर्फ वृक्ष एवं वनस्पतियां ही दिखाई देती है, जहाँ वन्यजीव अपना निवास करते हैं। बाहर से दिखाई देने वाला जंगल अंदर से इतना डरावना होता है कि यहां कोई ठहरना नही चाहता। लेकिन इस डरावने एवं सघन जंगल के बीच तटस्थता और धीर होकर पहाड़ो की तरह डटे है मध्यप्रदेश वन विभाग के वनरक्षक। नटनी खो विजयपुर से लगभग 80 किलोमीटर एवम श्योपुर मुख्य मार्ग से भीतर जंगल मे लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है।
यह पूर्णतः प्रतिबंधित क्षेत्र है। यहां वनकर्मियों की खेमचा ताल चौकी बनी हुई है। जहां से वनकर्मी संपूर्ण कोर एरिये पर पैनी नजर रखते हैं । एसडीओ ए एस चौहान के साथ जब इस जगह पर पहुंचे तो पता चला कि किस तरह से वनकर्मी कर रहे हैं ।
प्राचीन कथा से जुड़ा है नटनी खो
प्राचीन कथाओं के अनुसार एक खेल जिसे स्काय वायर या रोप पर चलना कहते हैं। इसे खेल को यहां एक औरत खेला करती थी। खेल दिखाने और ऐसा जोखिम भरा प्रदर्शन करने वाले को नट या नटिनी पुकारा जाता था। इस खेल को दिखाते समय रस्सी को दो चट्टानों के बीच बाँध दिया गया और वह महिला उस पर चलकर दूसरी तरफ जा रही थी तभी किसी ने उस रस्सी को काट दिया और वह महिला नीचे प्राकृतिक खो में जा गिरी और वही उसका प्राणांत हुआ जिसकी वजह से उस जगह को नटिनी खो कहते हैं। चट्टानों से खो की गहराई लगभग 300 से 400 फुट होगी।आज भी उस जगह पर नटिनी की पूजा के निशान बांकी है।
पहली बार तो आंखों में आंसू आ गये -
जब खेमचाताल के वनकर्मियों से जगह के बारे में जानने की कोशिश की तो बीट प्रभारी धर्मेन्द्र बंसल ने बताया जंगल केवल बाहर से अच्छा दिखता है हमे यहां पानी पीने को नही मिलता लगभग ढेड़ किलोमीटर हर रोज प्राकृतिक जल स्रोत के पास से पानी ढोकर लाना पड़ता है, तब जाकर कहीं पानी पीने नसीब होता है। लेकिन फिर भी हमे यह जंगल और अपनी ड्यूटी बहुत ही अच्छी लगती है। यह एक प्रकार का अवसर प्राप्त हुआ है, हमे वन एवं वन्यजीवो की रक्षा करने का। हम हर रोज 5 से 6 किलोमीटर का पैदल गस्त करते हैं और इस बीच हमारा सामना कई प्रकार के खतरनाक जानवरो से होता है। जब मैं पहली बार इस जगह आया तो मेरी आँखों मे आँसू थे मैं रो पड़ा था।
धर्मेंद्र बंसल
बीट प्रभारी खेमचाताल
तो क्या कहते हैं साहब यह वास्तविक में चुनौती पूर्ण कार्य है लेकिन हमारे वनकर्मी इसे बखूबी निभाते हैं। कोरोना काल मे कार्यो के लिए बजट कम था जिसकी वजह से पेयजलापूर्ति नही हो पायी लेकिन अभी कार्य प्रारंभ कर दिया गया है हम इस समस्या के निराकरण के प्रयास में लगे हुए हैं।
डीएफओ वर्मा
कूनो नेशनल पार्क