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भेड़ पालक महिलाएं खुद ही डॉक्टर, हर मर्ज का कर लेती है इलाज
मंदसौर/ श्याम चौरसिया। कभी स्कूल की शक्ल न देखने वाली महिलाएं बेझिझक बीमार भेड़ो को कुशल पशु चिकित्सक की तरह इलाज कर देती है। आवश्यक दवाएं खुद मेडिकल स्टोर से खरीद लाती है। कौन से मर्ज में कौन सी दवा कारगर होगी, इसका ज्ञान,परख महिलाओ को होता है। ये ज्ञान वे अपने तक सीमित नहीं रखती बल्कि वे साथ चलने वाले रेवड की महिलाओं को भी हस्तांतरित कर देती है एक रेवड में कम से कम 200 भेड होना मामूली बात है। रेवड़ की कमान पुरषों को बजाय महिलाओं के हाथों में होती है।
डाल देती पड़ाव -
महिलाए ही रेवड़ के रुकने,ठहरने का तय करती है। चंद मिनटों में ऊंट पर लदी खाट उतार बेच देती है, चुल्हा जलाने के लिए खेतो से लजावन बिन लाती है। अन्य महिलाए पानी ले आती। जहां पानी की सुविधा नही होती वहाँ पड़ाव नही डालती है।अल सुबह पड़ाव का रेडा उठा रेवड़ फिर हांक देते। दोपहरी होते ही फिर किसी सुरक्षित स्थान पर भेड़ों को चरने छोड़ देते है। चराई में नाबालिग बच्चें योगदान देते है।इनके पास दक्ष श्वान होते है जो अनहोनी भांपते ही सचेत कर देते है।
बारिश में राजस्थान कूच -
भेड़ पालक मौसम की गणना में वैज्ञानिकों को भी मात देते है। हवा की नमी ओर दिशा में बदलाव महसूस होते ही वे बता देते है कि बारिश कितनी देर में होगी।जब तक बारिश की आहट सुनाई नही देगी तब तक भेड़ पालक मप्र में ही रहेंगे। बारिश का अंदाजा लगते ही वे मप्र से राजस्थान कूच करने लगते है। इन दिनों राजस्थान वापसी करने वाले भेड़ पालक सड़को पर जाते दिख जाएंगे।बारिश भर राजस्थान के पाली, सिरोही, जोधपुर, बाड़मेर, दोसा फलोदी आदि जिलों को लौटने लगते है।बारिश खत्म होते ही यानी अक्टूम्बर में फिर मप्र आ धमकते। मप्र के जंगल उनके अपने होते है।
भेड़ों के अमीर मालिक -
भेड़ चराई के हक के लिए भेड़ पालक हथियार उठाने ओर हिंसा पर उतरने से नही चूकते। चराई को लेकर अक्सर इनका विवाद मप्र के किसानों से होता रहता है। इन दिनों खेत खाली पड़े है।दरअसल जिन भेड़ पालको को हम सेकड़ो भेड़ों के मालिक होने का मुगालता पालते है। वे असल मे ग्वाले होते है, भेड़ो के मालिक तो राजनीति,प्रशासन,व्यापार में दखल रखते है। मालिकों बके बच्चे कॉन्वेंट स्कूलो में पढ़ते है। मगर ग्वालों के बच्चों को स्कूल की शक्ल देखना नसीब में नही होता। मालिक ग्वालों को ख़ानदानी वफ़ादारी की घुट्टी पिला कर दास बनाये रखते है। बदले में भेड़ो से होने वाली कमाई में से तय शुदा वंचित हिस्सा देते है।
महिला प्रधान -
महिलाएं मजे से स्क्रीन टच एंड्रायड मोबाइल का प्रयोग करती है। बैलेंस खत्म होने पर वे खुद बाजार जाकर रिचार्ज करवा लेती है। मोबाइल बिगड़ जाए तो ठीक भी करवा लेती।बाजार से बर्तन आदि जरूरत का सामान भी खरीद लेती।पुरुष वर्ग रेवड़ की देख रेख में रहता है। भेड़ पालकों की सामाजिक,पारिवारिक परंपराएं, मूल्य,आदर्श भी है।उनका वे कठोरता से पालन करते है। खाट पर महिलाए नही बैठती। पुरुष ही बैठते है। बुजुर्गो को गाँव ही छोड़ आते है। पहले महिलाए चांदी के आभूषण पहनतीं थी।अब सोने के भी पहनने लगी।