विजयपुर विधानसभा उपचुनाव: कराहल के जनजाति इलाके में लड़ी जा रही है असल चुनावी जंग…

कराहल के जनजाति इलाके में लड़ी जा रही है असल चुनावी जंग…
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(मोहनदत्त शर्मा) श्योपुर। पनवाडा गांव के संपत मोबाइल पर एलन मस्क से जुड़ी एक रील देखने में व्यस्त है। चाय की दुकान पर उनके साथ रमेश भी है, दोनों पढ़े लिखे जनजाति युवा हैं। दोनों के पूर्वज करीब 60 साल पहले धार जिले से आकर यहाँ बसे थे। उपचुनाव की चर्चा छेड़ते ही दोनों पहले तो अरुचि दिखाते हैं, लेकिन थोड़ी देर बाद इधर-उधर की बात कर खुद ही बोल उठे कि रामनिवास जब-जब एमएलए बने सरकार नहीं बनी। अब वे सरकार के साथ है इसलिए जीत सकते हैं। सिलपुरी के मंगल औऱ नाथू सहरिया की राय स्पष्ट है कि वे मुकेश मल्होत्रा के साथ हैं क्योंकि मुकेश सहरिया है और असल आदिवासी है।

13 नवम्बर को श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा के लिए उपचुनाव का मतदान होना है। क्षेत्र की सियासी नब्ज को समझने के लिए हम जनजाति ब्लॉक कराहल में थे। संख्याबल के हिसाब से जनजाति वोट इस विधानसभा में सर्वाधिक है। भाजपा ने वर्ष 2008, 2013 और 2018 में यहां से जनजाति वर्ग के सीताराम आदिवासी को उम्मीदवार बनाया था। 2018 में वे रामनिवास रावत को पटखनी देकर विधायक बने लेकिन अब रामनिवास रावत भाजपा उम्मीदवार हैं और कभी भाजपा में रहे मुकेश मलहोत्रा कांग्रेस के टिकट पर उन्हें टक्कर दे रहे हैं। कराहल ब्लॉक ग्रामीण मतदाताओं की मिजाजपुर्सी बता रही है कि यहां मुकाबला एकतरफ़ा फिलहाल तो नहीं ही है।

रामनिवास रावत भाजपा उम्मीदवार

हालांकि जनजाति वोटरों में एक स्पष्ट विभाजन भी दिख रहा है। झाबुआ, धार और पेटलावद से वर्षों पहले यहां आकर बसे भील-भिलाला औऱ पटेलिया लोग बहुसंख्यक सहरिया जनजाति समाज से अलग राजनीतिक लाइन पर नजर आ रहे हैं। प्रवासी औऱ मूल जनजाति की स्थानीय दूरियां यहां साफ देखी जा सकती हैं। यह भाजपा के उम्मीदवार के लिए राहत भरी बात है, लेकिन बसपा के मैदान में नहीं होने का सीधा नुकसान भी अभी तो मैदान में दिखाई दे रहा है। जाखदा के अंबेडकर चौक पर ताश की गड्डियों से टाइम पास कर रहा एक बड़ा समूह बातचीत में बसपा की गैर मौजूदगी में कांग्रेस की तरफ झुकाव प्रदर्शित करने में संकोच नहीं करता है।

इस क्षेत्र में पर्तवाड़ा, सिलपुरी, सरारी, जाखदा, बरगवां, चितारा, पालमपुर, सिरसनवाड़ी, दुबडी मरेठा, मदनपुर जैसे गांवों में यादव, गुर्जर, भील, भिलाला, पटेलिया, जाटव बाल्मिकी, बंजारा, रावत समेत अन्य बिरादरी के मतदाता भी हैं। मुकेश मल्होत्रा कराहल सरपंच संघ के अध्यक्ष भी हैं और इस पूरे क्षेत्र में उनकी खासी पहचान नीचे तक है। सहरिया के अलावा उन्हें कांग्रेस के मतदाताओं का साथ भी मिल रहा है, लेकिन भाजपा की तुलना में उनका प्रचार अभियान न तो व्यवस्थित है और न ही साधन संपन्न। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर आज भी इसी क्षेत्र में नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं और कल वे 9 सभाएं और करने वाले हैं।

भाजपा चुनाव प्रभारी नरेंद्र बिरथरे के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के अलावा मुख्यमंत्री मोहन यादव भी कराहल में सभाएं करने वाले हैं। महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया आज ही दो दिन प्रचार कर भोपाल लौटी हैं। दूसरी तरफ जयवर्धन सिंह भी यहां चार दिन से डेरा डाले हुए हैं। कल पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलेट की हेलीकॉप्टर क्षेत्र में आयेंगे और सभा करेंगे। जाहिर है दोनों पार्टियां पूरा जोर लगाए हुए हैं।

कराहल बेल्ट में विजयपुर विधानसभा की असल लड़ाई लड़ी जा रही है, क्योंकि भाजपा उम्मीदवार रामनिवास रावत के लिए कांग्रेस से लड़ते समय यही क्षेत्र कमजोर कड़ी साबित होता रहा है। भाजपा ने आदिवासी वोटरों को अपने रंग में ढालने के लिए इस अनारक्षित सीट से तीन बार सीताराम आदिवासी को उम्मीदवार बनाया था। अब पार्टी के सामने चुनावी चुनौती आदिवासी उम्मीदवार से खड़ी है।

रामनिवास गैर जनजाति वोट में भारी

कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा फिलहाल रामनिवास रावत को कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं, लेकिन चुनावी हवा का रुख अलग-अलग सामाजिक -राजनीतिक वजहों से भाजपा की ओर झुकता भी नजर आ रहा है। गुर्जर, यादव जैसी जातियों में उन्हें भरपूर समर्थन यहां मिल रहा है।

कांग्रेस उम्‍मीदवार मुकेश मल्होत्रा

सिलपुरी में चाय की दुकान चलाने वाले रामवीर यादव की दुकान पर भाजपा का झण्डा लगा है वह खुलकर कहते भी हैं कि हमने मुकेश मलहोत्रा को सरपंच बनाया है, लेकिन अब हम मुख्यमंत्री मोहन यादव के नाम पर रामनिवास रावत को वोट करेंगे। रामवीर के साथ बैठे पहलवान यादव बात को जाती से हटकर तार्किक बनाते हुए जोड़ते हैं कि मुकेश क्या कर लेगा। रामनिवास तो मंत्री बन गए हैं हम मंत्री को क्यों न चुने?

चितारा के नारायण बैंसला भी साफगोई से स्वीकार करते हैं कि रामनिवास रावत इसलिए जीत रहे हैं क्योंकि कराहल क्षेत्र के लिये पहली बार कोई मंत्री बना है। जाहिर है एक बड़े वर्ग में रावत का मंत्री बनना भी मतदान व्यवहार को प्रभावित कर रहा है।

दलबदल कोई खास मुद्दा नहीं

भाजपा प्रत्याशी रामनिवास रावत का दलबदल करना यहां कोई बड़ा फैक्टर नही हैं, क्योंकि कांग्रेस ने जिसे उम्मीदवार बनाया है वह भी पहले भाजपा में थे। ग्रामीण क्षेत्र में दलबदल को लेकर लोग ज्यादा बात नहीं कर रहे हैं। रामनिवास रावत 7 चुनाव लड़ चुके हैं इसलिए उनकी काठी ही अपने आप में फैक्टर है। खास बात यह नजर आई कि कुछ गांवों में कांग्रेस का परम्परागत वोट भी रामनिवास के साथ भाजपा को जा रहा है।

एक लाख वोट आएगा रामनिवास का: सीताराम

गोरस तिराहे पर अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ सफेद स्कॉर्पियो में चाय पी रहे पूर्व भाजपा विधायक सीताराम आदिवासी किसी गांव में जा रहे थे। वे कहते हैं कि रामनिवास की जीत पक्की है। एक लाख से ऊपर वोट उनके आयेंगे। वह दावा करते हैं कि उनकी समाज का आधा वोट भाजपा को मिल रहा है, क्योंकि महिलाओं को लाडली बहना, पीएम जनमन, आयुष्मान जैसी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। सीताराम के अनुसार मुख्यमंत्री ने उनसे कान में कहा था कि हमें भाजपा को जिताना है। इसलिए वे दिन रात मेहनत कर रहे हैं।

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