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Morena : शनिश्चरी अमावस्या आज, शनिश्चरा में जुटेगी लाखों भक्तों की भीड़
फोटो : शनि मंदिर मुरैना
मुरैना। शनिश्चरी अमावस्या पर 14 अक्टूबर को शनि मंदिर पर लाखों श्रृद्धालुओं की भीड़ जुटने का अनुमान है। इस वजह से प्रशासन ने भी व्यापक प्रबंध किए हैं। शनिश्चरी अमावस्या पर लगने वाले मेले में देशभर से श्रृद्धालु आते हैं। शनिचरा पहाड़ी पर स्थित भगवान श्री शनिदेव मंदिर का देश-विदेश में बहुत महत्व है। यह देश का सबसे प्राचीन त्रेतायुगीन शनि मंदिर तो है ही साथ ही यहां स्थापित श्री शनिदेव की प्रतिमा भी विशेष एवं अद्भुत है। ज्योतिषियों के मतानुसार यह मूर्ति आसमान से टूटकर गिरे उल्कापिण्ड से निर्मित हुई है। एक अन्य कथा के अनुसार हनुमान जी ने अपनी बुद्धि चातुर्य से काम लेते हुये शनिदेव को लंकापति रावण के पैरों के नीचे से मुक्त कराया था एवं कई वर्षो तक दबे होने के कारण शनिदेव दुर्बल हो चुके थे।
लंका दहन हेतु शनिदेव ने बताया था कि जब तक वे लंका में रहेंगे तब तक दहन नहीं हो सकता है एवं वे इतने दुर्बल है कि उनका चलना मुश्किल है। अत: हनुमान जी से निवेदन करने पर हनुमान जी ने शनिदेव को पूरी ताकत से भारत भूमि पर फेंका एवं शनिदेव मुरैना जिले के ऐंती ग्राम के पास स्थित एक पर्वत पर जा गिरे, जिसे शनि पर्वत कहा जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि शनि पर्वत पर ही शनिदेव ने घोर तपस्या कर शक्ति एवं बल प्राप्त किया। शनिदेव की मूर्ति स्थापना, चक्रवर्ती महाराज विक्रमादित्य ने की थी एवं विक्रमादित्य ने ही शनिदेव की प्रतिमा के सामने हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना की थी। सन् 1808 ई. में तत्कालीन शासक दौलतराव सिंधिया द्वारा यहां जागीर लगाई थी। इस प्रकार का शिलालेख मंदिर में अभी भी लगा हुआ है।
शनि पर्वत (शनिश्चरा पहाड़ी) निर्जन वन में स्थापित होने से विशेष प्रभावशाली है। यह भी कहा जाता है कि शनि सिंगनापुर (महाराष्ट्र) में स्थापित शिला को शनिश्चरा पहाड़ी से ही ले जाकर स्थापित किया गया था। शनि मंदिर के समीप ही पौड़ी वाले हनुमान जी की जमीन में लेटी हुई व उभरी हुई प्रतिमा है। सम्पूर्ण शनिश्चरा पहाड़ी एवं इसके आसपास का क्षेत्र सिद्ध क्षेत्र है, जिसका अनुभव भक्तों व श्रद्धालुओं को होता है। शनिमंदिर में पहाड़ी से अनवरत गुप्त गंगा की धारा निकल रही है, एवं उक्त स्थान पर निर्मित गुफाओं में संत लोग तपस्या करते थे। इस बात के प्रमाण भी वर्तमान में दिखाई देते है। शनि मंदिर के अंदर स्थापित श्री राधाकृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं 6 जून 2011 को श्री राधाकृष्ण की नई प्रतिमायें स्थापित की गई थीं।
मंदिर के आसपास ही नवी, ग्यारहवी शताब्दी के मुरली मनोहर मंदिर, बटेश्वरा, पढ़ावली, मितावली, ककनमठ और कुन्तलपुर पुरातात्विक व धार्मिक महत्व के मंदिर और स्थान है। जिन्हें भी दर्शनीय व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। श्री शनिदेव, सुख-शांति, यश, वैभव, धन-सम्पत्ति, पद-प्रतिष्ठा के प्रदाता है। आइये इस देवस्थान का दर्शन कर विकास में अपना अमूल्य योगदान दें।