मुरैना की राजनीति का ऐसा मिथक जो आज तक नहीं टूटा

मुरैना की राजनीति का ऐसा मिथक जो आज तक नहीं टूटा
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जिले से बने सात मंत्री लेकिन मंत्री रहते चुनाव नहीं जीता कोई

मुरैना। मध्यप्रदेश सहित मुरैना जिले में भी विधानसभा चुनाव का शोर है। चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी पूरी ताकत लगा रहे हैं लेकिन अभी तक जनता है कि खुलकर अपना मंतव्य प्रगट नहीं कर रही। जनता का मूड़ अभी तक कोई भांप नहीं पाया है और यह स्थिति अभी से नहीं बल्कि कई दशकों पुरानी है। मुरैना जिले की जनता ने ऐसा मिथक बना दिया है जो शायद कहीं भी देखने, सुनन को न मिले। मुरैना की राजनीति में एक ऐसा मिथक है जो आज तक टूटा नहीं है। हालांकि यह मिथक बिना किसी कारण के ही अकारण बना हुआ है। यह मिथक तब से प्रारंभ हुआ जब पहली बार 1977 में मुरैना में मंत्री पद आया और आज तक बरकरार है। यह मिथक है मंत्री रहते हुए चुनाव न जीतने का। हालांकि यह कोई ऐसा वैज्ञानिक कारण नहीं है कि भविष्य में भी यह मिथक बना ही रहेगा लेकिन सन् 1977 से आज तक ऐसा कोई भी नेता चुनाव नहीं जीत सका है जो मंत्री पद रहते हुए चुनाव लड़ा हो।

मुरैना जिले की जनता ने उस विधायक को तो लगातार कभी नहीं जिताया जो मंत्री रहा हो। मुरैना जिले से अभी तक आधा दर्जन से अधिक नेता मंत्री रह चुके हैं लेकिन मंत्री रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ा कोई भी नेता जीत दर्ज नहीं कर सका है। हालांकि हार के बाद हुए चुनाव में फिर जीत बेशक मिल गई हो। इस बार जिले में ऐसा कोई भी प्रत्याशी नहीं है जो मौजूदा प्रदेश सरकार में मंत्री रहा हो लेकिन सुमावली से भाजपा प्रत्याशी ऐंदल सिंह कंषाना एवं मुरैना से भाजपा प्रत्याशी रघुराज कंषाना निगम मंडल में अध्यक्ष रहते हुए राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त हैं। जिले में सबसे पहले मंत्री पद आपातकाल के बाद हुए चुनाव में आया। जनता पार्टी की सरकार में मुरैना विधानसभा से 1977 में बाबू जबर सिंह विधायक बने। उस सरकार में उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया था। बाबू जबर सिंह की छवि साफ, स्वच्छ एवं एक ईमानदार राजनेता की थी लेकिन इसके बावजूद वह 1980 में चुनाव हार गए। इसके बाद बाबू जबर सिंह चुनावी परिदृश्य से बाहर ही हो गए। इसी प्रकार सुमावली विधानसभा से जीते जाहर सिंह शर्मा कक्का को भी वीरेन्द्र कुमार सखलेचा सरकार में संसदीय सचिव बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया लेकिन वह भी 1980 में मुरैना विधानसभा से कांग्रेस के महाराज सिंह अधिवक्ता से पराजित हो गए जबकि जाहर सिंह उस समय के कद्दावर नेता थे और कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह चुनाव हार भी सकते हैं। मंत्री पद पर रहते हुए दो नेताओं की हार का जो मिथक प्रारंभ हुआ वह अगली बार भी जारी रहा। सुमावली विधानसभा से 1985 में चुनाव जीते कीरतराम सिंह कंषाना को सरकार के अंतिम दिनों में 1989 में सहकारिता राज्य मंत्री बनाया गया लेकिन 1990 में जनता दल से चुनाव लड़े गजराज सिंह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। दिमनी से कई बार विधायक रहे भाजपा के कद्दावर नेता मुंशीलाल खटीक पटवा सरकार में मंत्री बने लेकिन मंत्री बनने के कुछ महीने बाद ही उसी दिमनी से कांग्रेस के उम्मीदवार रमेश कोरी के सामने हार का सामना करना पड़ा। जिस दिमनी विधानसभा को भाजपा व मुंशीलाल का किला कहा जाता था वह किला सिर्फ 93 दिन के मंत्री कार्यकाल में ही ढह गया। हार का सिलसिला यहीं नहीं थमा और वह आगे भी जारी रहा। सुमावली विधानसभा से बसपा से ऐंंदल सिंह कंषाना सबसे पहले 1993 में चुनाव जीते। इसके बाद वह 1998 में भी बसपा से चुनाव जीत गए लेकिन 2002 में वह दिग्विजय सिंह सरकार में शामिल हो गए और उन्हें राज्यमंत्री बनाए गया लेकिन 2003 में भाजपा प्रत्याशी गजराज सिंह सिकरवार से ऐंदल सिंह को हार का सामना करना पड़ा। इसी प्रकार ऐंदल सिंह 2018 में सुमावली से चुनाव जीते और विधायकी से इस्तीफा देकर वह 2020 में भाजपा में शामिल हो गए। श्री कंषाना को शिवराज सरकार में पीएचई मंत्री बनाया गया। परंतु मंत्री रहते हुए 2020 में उन्हें उप चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसी प्रकार रुस्तम सिंह मुरैना विधानसभा से 2003 में भाजपा के बैनर पर चुनाव जीते और उमा सरकार में कैबिनेट मंत्री बने लेकिन 2008 में बसपा के परशुराम मुदगल से चुनाव हार गए। इसके बाद वह 2013 में चुनाव जीते और उन्हें ढाई साल बाद मंत्री बनाया गया लेकिन 2018 में हुए चुनाव में उन्हें वर्तमान में मुरैना से भाजपा प्रत्याशी और उस समय के कांग्रेस से चुनाव लड़े रघुराज कंषाना ने हरा दिया था। इसी प्रकार दिमनी विधानसभा से गिर्राज डण्डोतिया 2018 में कांग्रेस से चुनाव जीते। श्री डण्डोतिया 2020 में इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए और शिवराज सरकार में उन्हें कृषि राज्य मंत्री बनाया गया। परंतु उप चुनाव में उन्हें कांग्रेस के रविन्द्र सिंह भिड़ौसा से हार का सामना करना पड़ा। रविन्द्र सिंह भिड़ौसा इस बार भी दिमनी विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी हैं।

सात नेता बन चुके हैं प्रदेश सरकार में मंत्री

मुरैना जिले से अभी तक सात ऐसे नेता हुए हैं जिन्हें प्रदेश में मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुरैना जिले से मंत्री बनने वालों में जाहर सिंह शर्मा, बाबू जबर सिंह, कीरतराम कंषाना, मुंशीलाल खटीक, ऐंदल सिंह कंषाना, रुस्तम सिंह एवं गिर्राज डण्डोतिया शामिल हैं।

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