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भवन तोड़े, पर विद्युत पोल नहीं हटाए, बाधित हो रहा यातायात
श्योपुर। शहर को स्वच्छ, सुंदर बनाने और यातायात जाम से छुटकारा दिलाने के उद्देश्य से जिला प्रशासन ने मैन मार्केट, टोड़ी गणेश बाजार और बड़ौदा रोड पर अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाकर बड़े-बड़े भवन तो तोड़ दिए लेकिन इस कार्रवाई के बाद प्रशासन ने उक्त बाजारों में यातायात व्यवस्था बनाने के लिए कोई प्लानिंग नहीं की। जो मकान तोड़े गए उनके आगे पहले से मौजूद विद्युत पोल सड़क चौड़ीकरण के बाद अब बीच सड़क पर आ गए हैं उन्हें भी सड़क से एक ओर हटाने का काम प्रशासन ने नहीं किया है। उक्त विद्युत पोल यातायात में बाधक बने हुए हैं।
करीब 27 साल पहले तत्कालीन अतिरिक्त जिलाधीश एमके अग्रवाल ने मुरैना जिलाधीश के निर्देश पर श्योपुर को अतिक्रमण मुक्त बनाने का अभियान चलाया था। हालांकि उस समय नगर पालिका में कृष्णा गुप्ता की अध्यक्षता वाली परिषद ने अतिक्रमण विरोधी अभियान की स्वीकृति नहीं दी थी लेकिन जिलाधीश जुलानिया के निर्देश पर अतिरिक्त जिलाधीश ने पुलिस बल के सहयोग से अतिक्रमण पर जोरदार प्रहार किया था। तब अतिक्रमण विरोधी अभियान का विरोध करने वालों को हवालात की हवा भी खानी पड़ी थी। ऐसे पीड़ितों में पूर्व विधायक दुर्गालाल विजय भी शामिल थे जिन्हें अपनी सोना लॉज को तोड़ने का विरोध भारी पड़ा था। हालांकि उनकी एक नहीं सुनी गई और नाले से अतिक्रमण हटा दिया गया था लेकिन जहां से अतिक्रमण हटाया था आज भी वह स्थान आमजन के लिए नहीं बल्कि उन्हीं के उपयोग में आता है जिन्होंने पहले वहां भवन बना रखे थे। बड़ौदा रोड पर भी बड़ा अतिक्रमण विरोधी अभियान चला था। जहां रोड से 10-10 फीट तक मकानों को तोड़कर करोड़ों का नुकसान किया गया लेकिन आज भी उक्त रोड पर वाहन उतनी ही जगह में दौड़ रहे हैं जितनी जगह में पहले दौड़ा करते थे।
यातायात में बाधा बने विद्युत पोल
प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के दौरान कई भवनों को ध्वस्त कर भवन मालिकों को करोड़ों का नुकसान तो पहुंचाया लेकिन जिस स्थान से भवन हटाए गए थे। आज ढाई दशक बाद भी उस जगह का उपयोग सिर्फ इसलिए नहीं हो रहा है योंकिकि बिजली कंपनी के जो खम्बे पूर्व में वहां खड़े थे वह आज भी वहीं पर अडिग खड़े हैं। इन खम्बों को शिफ्ट नहीं करने से खम्बे बीच रोड पर आ गए हैं। इससे दुकानदारों की सीमा आज भी वहीं तक बनी हुई हैं। जहां ढाई दशक पहले उनके भवनों के रूप में थी। इसी तरह मुख्य बाजार और टोड़ी बाजार में भी भवन तो तोड़े गए लेकिन खम्बों को एक दशक बाद भी शिफ्ट नहीं किया जा सका है।