सत्ता विरोधी लहर पर सवार रहते हैं बदनावर के मतदाता

सत्ता विरोधी लहर पर सवार रहते हैं बदनावर के मतदाता
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युवा और अनुभवी बुजुर्ग नेता के बीच होगी टक्कर

बदनावर। तीन नवम्बर को मध्यप्रदेश में होने जा रहे विधानसभा उपचुनाव में धार जिले के बदनावर विधानसभा क्षेत्र में भी मतदान होगा। इस सीट पर एक युवा और एक बुजुर्ग अनुभवी नेता के बीच टक्कर होगी। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में गए युवा राजवर्धन सिंह दत्तीगांव और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल पटेल यहां टकराने वाले हैं। हालांकि कांगे्रस ने पहले इस सीट से अभिषेक सिंह राठौर उर्फ टिंकू को अपना उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन बाद में उनका टिकट काटकर ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष कमल सिंह पटेल को उम्मीदवार बना दिया गया। इससे पार्टी में असंतोष देखा जा रहा है।

बदनावर सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के विधायकी और कांग्रेस छोडक़र भाजपा में जाने के कारण खाली हुई है। राजवर्धन अब म.प्र सरकार में उद्योग मंत्री हैं। पश्चिमी मध्यप्रदेश में बसे आदिवासी बाहुल्य धार जिले में कुल सात विधानसभा सीट हैं। 2018 में हुए चुनाव में छह सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था, जबकि भाजपा को मात्र एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था।

बदनावर विधानसभा क्षेत्र के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो कुछ अपवाद छोडक़र यहां हमेशा सत्ता के विपरीत निर्णय लेने की परम्परा रही है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर में जब कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में जर्बदस्त बहुमत प्राप्त किया था, तब बदनावर में कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव हार गया था। यहां से भाजपा के रमेशचन्द्र सिंह राठौर ने जीत दर्ज की थी। इसी प्रकार 1989 में पूरे देश में राम लहर चली थी और प्रदेश में भाजपा ने जर्बदस्त बहुमत प्राप्त कर सरकार बनाई थी, तब भी यहां के मतदाताओं ने भाजपा की बजाय कांग्रेस के उम्मीदवार प्रेमसिंह दत्तीगांव को जिताकर भोपाल भेजा था। इसी तरह 1993 में जब प्रदेश मे कांग्रेस का जादू सिर चढक़र बोल रहा था और कांग्रेस का हर छोटा-बड़ा नेता जीत गया था, तब भी बदनावर के मतदाताओं ने कांग्रेस की बजाय भाजपा पर विश्वास जताया था।

राजपूतों और पाटीदारों के इर्द-गिर्द ही घूमती है राजनीति

क्षेत्र में राजपूत मतदाता करीब 35 से 40 हजार, पाटीदार मतदाता करीब 40 से 45 हजार और आदिवासी मतदाता लगभग 50 हजार हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता करीब 15 हजार हैं। इसके अलावा जाट, सिरवी, यादव, माली, राठौर समाज के मतदाता भी हैं। बदनावर की पूरी राजनीति राजपूत और पाटीदार मतदाताओं के इर्द-गिर्द ही घूमती है और ये ही निर्णायक मतदाता हैं। यही कारण है कि दोनों ही प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस राजपूत और पाटीदार प्रत्याक्षी चुनने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव और भाजपा से भंवर सिंह शेखावत दोनों राजपूत उम्मीदवार थे।

ऐसा है बदनावर का भूगोल

बदनावर विधानसभा क्षेत्र की सीमा धार, रतलाम, उज्जैन, इन्दौर, झाबुआ जिलों को स्पर्श करती है। इस इलाके में खेती किसानी वाले मतदाता अधिक हैं। राजपूत और पाटीदारों के पास जमीन अच्छी मात्रा में है। एक बड़े भू भाग में खेती की जाती है और क्षेत्र के किसान सीजन की फसलों के साथ-साथ सब्जियां भी उगाते हैं, जो बड़े शहरों तक भी भेजी जाती हैं। बदनावर, इन्दौर, रतलाम, उज्जैन, धार जैसे शहरों के बीच स्थित होने के कारण व्यापार व्यवसाय की दृष्टि से भी संपन्न माना जाता है।

राजवर्धन सिंह की राजनैतिक यात्रा

राजवर्धन सिंह धार के दत्तीगांव के रहने वाले हैं। उनके पिता प्रेमसिंह दत्तीगांव और माता कुसुम सिंह दत्तीगांव भी राजनीति में थे। प्रेमसिंह दत्तीगांव बदनावर से विधायक रहे, जबकि कुसुम सिंह जिला पंचायत की उपाध्यक्ष रहीं। राजवर्धन सिंह की राजनैतिक यात्रा 1998 में तब शुरू हुई, जब वे निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में विधानसभा चुनाव लड़े। उनके सामने कांग्रेस के मोहन सिंह बुंदेला और भाजपा के खेमराज पाटीदार थे। इसके बाद वे 2003 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, जिसमें उन्होंने भाजपा के खेमराज पाटीदार को हराया। 2008 में राजवर्धन को फिर से कांग्रेस का टिकट मिला और उन्होंने खेमराज पाटीदार को फिर से हराया। वे 2013 में कांग्रेस से फिर चुनाव लड़े, लेकिन इस बार भाजपा के भंवर सिंह शेखावत ने उन्हें हरा दिया। 2018 में कांग्रेस ने फिर राजवर्धन को मैदान में उतारा और इस बार उन्होंने भाजपा के भंवर सिंह शेखावत को पराजित किया। इस चुनाव में राजवर्धन को 84499 एवं शेखावत को 42993 मत मिले। बदनावर के कद्दावर नेता राजवर्धन ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेहद करीबी हैं। राजवर्धन युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष, प्रदेश युवक कांग्रेस के महासचिव, जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष और जिला कांग्रेस महामंत्री के पद पर रह चुके हैं।

अनुभवी नेता हैं कमल पटेल

कमल सिंह पटेल कांग्रेस के एक अनुभवी नेता हैं। उन्होंने अपनी राजनैतिक यात्रा में मंडी से लेकर जनपद और जिला पंचायत तक के चुनाव लड़े। राजपूत समाज में वे अच्छी पेठ रखते हैं। चामला पट्टी में व्यक्तिगत संबंध का फायदा उन्हें मिलेगा। कमल पटेल को क्षेत्र का प्रभावी नेता मान सकते हैं। उनके पुत्र वर्तमान में सरपंच हैं, जो काफी लोकप्रिय माने जाते हैं। कमल सिंह पटेल एक ऐसे नेता हैं, जो सरल-सहज स्वभाव के हैं और लोगों को आसानी से उपलब्ध रहते हैं। वर्तमान में वे ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष हैं। जब राजवर्धन सिंह कांग्रेस में थे, तब वे कमल सिंह पटेल के खास हुआ करते थे, लेकिन अब दोनों आमने-सामने विपक्षी दलों से चुनाव मैदान में हैं।

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