उप चुनाव के परिणामों पर निर्दलीय विधायकों की टकटकी...

उप चुनाव के परिणामों पर निर्दलीय विधायकों की टकटकी...
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चुनाव परिणाम तय करेगा सात विधायकों का वजन

भोपाल l उप चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में बनने वाली सरकार में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और निर्दलीय सहित उन सात विधायकों की कितनी पूछ परख होगी, जिन्होंने पहले कमलनाथ को समर्थन दिया था और प्रदेश में सरकार बदलने के बाद जो शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के समर्थन में आ गए। भाजपा का पलड़ा भारी देखकर इन सभी विधायकों का समर्थन भलें वर्तमान सरकार को है, लेकिन यह तय है कि उप चुनाव के बाद अपनी आवश्यकता के हिसाब से ये अपना पाला भी तय करेंगे।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में हुए आम चुनाव में भाजपा को 109 सीट और कांग्रेस को 114 सीट मिली थीं। दोनों दल अपनी दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थे। ऐसी स्थिति में बसपा, सपा और 4 निर्दलीय विधायक प्रदेश की सरकार तय करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका में थे। चूंकि कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए सिर्फ दो विधायकों के समर्थन की जरूरत थी, वह भी कमलनाथ ने कांग्रेस के दो बागी होकर चुनाव लडक़र जीते विधायकों को अपने पाले में लेकर जुटा लिया, जिसमें प्रदीप जायसवाल को उन्हें खनिज विभाग का मंत्री बनाना पड़ा था। वहीं सुरेन्द्र सिंह 'शेरा' मंत्री बनने के लिए पूरे कार्यकाल में सरकार पर दबाव बनाए रहे। दो अन्य निर्दलीय विधायक राणा विक्रम सिंह और केदार डाबर भी कमलनाथ सरकार में मंत्री बनने की चाहत रखते थे।

इसी प्रकार बसपा विधायक रामबाई और संजीव सिंह 'संजू' तथा सपा विधायक राजेश शुक्ला भी पूरे कार्यकाल में सरकार पर दबाव बनाकर अपनी बातें मनवाते रहे। मार्च 2020 में कमलनाथ सरकार गिरने के ठीक पहले विधायकों के गायब होकर चलीं पाला बदल की आशंकाओं में जिन विधायकों के नाम सामने आए थे, उनमें बसपा की रामबाई और निर्दलीय सुरेन्द्र सिंह 'शेरा' के नाम प्रमुख थे, लेकिन 20 मार्च को तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मुख्यमंत्री निवास पर जैसे ही त्यागपत्र देने की घोषणा की, निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल ने भाजपा सरकार को समर्थन की घोषणा कर दी थी। सरकार को समर्थन दिए जाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें मप्र खनिज विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर उपकृत किया।

मप्र में चौथी बार बनी शिवराज सरकार को निर्दलीय, बसपा और सपा के विधायकों का समर्थन प्राप्त है। लेकिन यह सभी विधायक स्थायी रूप से भाजपा के साथ हैं, या रहेंगे, यह कहना पूरी तरह से गलत होगा। यह सभी विधायक उप चुनाव के परिणामों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

ये सभी चाहते हैं कि भाजपा या कांग्रेस दोनों में से किसी को इतनी सीटें न मिलें कि वे स्वयं की दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बना सकें। उप चुनाव में भाजपा अगर 8 सीट भी जीतती है, तो निर्दलीय अथवा अन्य दलों के विधायकों के समर्थन के बिना ही उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार बन जाएगी। हालांकि भाजपा का प्रयास है कि कम से कम 15 या उससे अधिक सीटें जीतकर अपनी स्थिति को पूरी तरह मजबूत किया जाए। जिससे किसी भी अप्रत्याशित स्थिति में अथवा निर्दलीय व अन्य दलों के समर्थक विधायकों के टूटने की स्थिति में सरकार सुरक्षित और मजबूत रहे, तथा कोई भी सरकार को अपने हिसाब से काम कराने के लिए मजबूर न कर सके। वहीं निर्दलीय और अन्य दलों के विधायक चाहते हैं कि उप चुनाव के बाद ऐसी स्थिति बने कि सरकार उनके समर्थन से बने, जिससे न केवल सरकार में उनका बजन बढ़ेगा, बल्कि उन्हें महत्व भी मिलेगा और उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान और मनचाहा विभाग मिलने की संभावना भी बनेगी।

बढ़ सकते हैं बसपा के विधायक!

मप्र की विधानसभाा में वर्तमान में बसपा के दो विधायक हैं। चंबल संभाग की एक-दो सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले के साथ बसपा की स्थिति टक्कर वाली मानी जा रही है। अगर उप चुनाव में चंबल से बसपा के हाथ एक-दो सीट लगती हैं तो निश्चित ही सरकार में बसपा विधायकों का बजन बढ़ेगा, जिसका फायदा उन्हें उप चुनाव के बाद बनने वाली स्थायी सरकार में मिलेगा।

तो सभी निर्दलीय बनेंगे मंत्री!

विधानसभा उप चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल सभी 28 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, हालांकि सरकार का भग्य ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड की सीटें तय करेंगी। कांग्रेस का सपना है कि भाजपा को अधिकतम 7 सीटों के नीचे ही रोक दिया जाए, अगर कांग्रेस की यह इच्छा पूरी भी हो गई, तब भी यह तय है कि भाजपा निर्दलीय विधायकों के सहयोग से भी सरकार बना लेगी। क्योंकि कांग्रेस को इसके लिए कम से कम 21 सीटें जीतनी होगी, जो असंभव: दिखाई दे रहा है। सरकार किसी की भी बनें, लेकिन अगर ऐसी स्थिति बनती है तो सरकार मजबूत नहीं बल्कि मजबूर ही बनेगी। समर्थन देने वाले सभी निर्दलीय व अन्य दलों के विधायकों की न केवल मंत्री बनाए जाने जैसी मांग को सरकार को पूरा करना पड़ेगा, बल्कि वे सरकार को अपनी अंगुलियों पर भी नचाएंगे, हालांकि ऐसी स्थिति की संभावनाएं नगण्य हैं।

उप चुनाव के बाद भी टूटेंगे विधायक!

उप चुनाव के बीच एक और कांग्रेसी विधायक ने सदस्यता से त्यागपत्र देकर कांग्रेस को झटका दे दिया। कांग्रेस का दावा है कि भाजपा के भी कई विधायक उनके सम्पर्क में हैं। भाजपा दावा तो नहीं कर रही, लेकिन संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस के करीब आधा दर्जन विधायक भी भाजपा के संपर्क में हैं। उप चुनाव के बाद दूसरे दलों से संपर्क साधे बैठे विधायकों की स्थिति तय होगी। जिस भी दल की सरकार बनेगी, वह विपक्ष को कमजोर करने के लिए हर तरह की कूटनीति का प्रयोग कर उसके विधायकों को तोडऩे में सफल रहेगा, यह तय माना जा रहा है।

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