सुरखी के मतदाताओं को बाहरी उम्मीदवार पर रहता है भरोसा

सुरखी के मतदाताओं को बाहरी उम्मीदवार पर रहता है भरोसा
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भोपाल। मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में इस बार सुरखी विधानसभा सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है। सागर जिले की इस विधानसभा सीट पर राजनीतिक समीकरण भी बिल्कुल अलग है। सुरखी विधानसभा सीट की खासियत यह है कि यहां के मतदाताओं ने किसी भी स्थानीय प्रत्याशी को अपना विधायक नहीं चुना है। विधानसभा क्षेत्र से बाहर के प्रत्याशी ही मतदाताओं की पहली पसंद रहे हैं। इस बार मैदान में दोनों ही प्रत्याशी विधानसभा क्षेत्र के बाहर से हैं।

साल 2003 के चुनाव में सुरखी विधानसभा से गोविंद सिंह राजपूत ने भाजपा के भूपेंद्र सिंह को हराया थ। दोनों ही प्रत्याशी बाहरी हैं। वहीं, साल 2008 के चुनाव में भाजपा से स्थानीय प्रत्याशी राजेंद्र सिंह मोकलपुर मैदान में थे। वहीं, कांग्रेस से गोविंद सिंह राजपूत बाहरी प्रत्याशी के तौर पर सुरखी विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतरे थे. लेकिन जनता ने गोविंद सिंह राजपूत पर अपना भरोसा जताया था और स्थानीय प्रत्याशी राजेंद्र सिंह मोकलपुर को हार मिली थी। इसी तरह 2013 में बाहरी प्रत्याशी पारुल साहू मतदाताओं की पसंद बनी। साल 2018 में कांग्रेस के गोविंद सिंह राजपूत को जनता ने एक बार फिर से अपना जनसमर्थन दिया। इस बार दल बदल के चलते सुरखी विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है।

उपचुनाव में दोनों ही उम्मीदवार बाहरी

दल बदल के चलते गोविंद सिंह राजपूत ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। अब सुरखी विधानसभा सीट पर पहली बार उपचुनाव होने जा रहा है। यह पहली बार है जब मतदाता उपचुनाव में मत डालने के लिए पहुंचेंगे। इस बार भी दोनों ही प्रत्याशी बाहरी हैं। पारुल साहू और गोविंद सिंह राजपूत दोनों ही सागर विधानसभा क्षेत्र से आते हैं। दोनों ही बाहरी प्रत्याशी जीत को लेकर अपनी किस्मत सुरखी विधानसभा क्षेत्र से आजमा रहे हैं। सुरखी विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं का समर्थन हासिल कर गोविंद सिंह राजपूत इसी सीट से 3 बार विधायक रह चुके हैं, तो वही पारुल साहू को साल 2013 में जनता का समर्थन मिला था। अब दोनों ही प्रत्याशी पार्टियां बदलकर जनता से जिताने की अपील कर रहे हैं। ऐसे में यह देखा दिलचस्प होगा कि आखिर कौन सा बाहरी प्रत्याशी मतदाताओं के भरोसे को जीतकर विधानसभा की दहलीज तक पहुंच पाता है।

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