मप्र चुनाव विशेष : आम राय से सभी ने मुख्यमंत्री चुना था रविशंकर शुक्ला को
सन् 1956 में नया मध्यप्रदेश बनाया गया तो रविशंकर शुक्ल, जो कि मध्यप्रान्त के मुख्यमंत्री थे, उन्हें मुख्यमंत्री मानने में किसी को ज्यादा परेशानी नहीं हुई। ऐसा इसलिये, क्योंकि मध्य प्रान्त, चारों राज्य में सबसे बड़ा था और शुक्ल भी सभी मुख्यमंत्रियों से उम्र में ज्येष्ठ थे। उस समय विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शंभूनाथ शुक्ल थे, भोपाल के डॉ. शंकरदयाल शर्मा और मध्यभारत के तखतमल जैन । इसके पहले इन सब मुख्यमंत्रियों की बैठक जबलपुर में हो चुकी थी। राज्यों के विलीनीकरण के दौरान अंग्रेजों की प्रशासकीय इकाई सेन्ट्रल प्रॉविन्स और बरार को सन् 1950 में मध्यप्रदेश बना दिया गया था। सेन्ट्रल इण्डिया एजेंसी को मध्यभारत, विंध्यप्रदेश एवं भोपाल को राज्य बना दिया गया था, जहां निर्वाचित सरकारों ने पदभार संभाला हुआ था। विंध्य और भोपाल पार्ट-सी स्टेट कहलाते थे, जबकि मध्यभारत पार्ट-बी स्टेट था। सन् 1950 के पहले विधानसभा के स्थान पर धारा सभा होती थी। तब धारा सभा के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था।
अमावस की काली रात में मिला मप्र को पहला सीएम
पंडित रविशंकर शुक्ल ने 80 साल की आयु में नागपुर से भोपाल पहुंचकर नवगठित मप्र के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। इससे पहलेवह नागपुर में 1946 से मध्यप्रान्त के मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे थे। एक नवम्बर 1956 को दिवाली की रात थी। उसी दिन तब की लाल कोठी (आज का राजभवन) में पट्टाभि सीतारमैय्या ने राज्यपाल के रूप में पंडितजी को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई थी। शपथ ग्रहण के ठीक दो माह बाद ही उनकी मृत्यु हो गई।
डॉ शंकरदयाल शर्मा इंग्लैंड से कानून पढक़र आये थे
देश के राष्ट्रपति रहे स्व. शंकरदयाल शर्मा का नाम मप्र में गौरव के साथ लिया जाता है। नए मप्र के निर्माण से पूर्व वे भोपाल के प्रधानमंत्री थे। उन दिनों कुछ राज्यों में मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था। शर्मा समकालीन राजनीतिज्ञों में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे थे। लखनऊ विश्वविद्यालय से रीडर के पद से इस्तीफा देकर जब भोपाल के प्रधानमंत्री बने, तब उनकी उम्र मात्र 34 वर्ष थी। हिंदी, अंग्रेजी में पोस्ट ग्रेजुएट, वकालत में एल.एल.एम., इंग्लैंड से बैरिस्टर एट लॉ तथा पी. एच. डी. तक उन्होंने अध्ययन किया था। सन् 1952 के आम चुनावों के दौरान भोपाल से 30 विधायक और एक लोकसभा सदस्य चुने जाने थे। कांग्रेस आलाकमान ने लोकसभा के लिए डॉ. शर्मा का नाम तय किया था और भोपाल विधानसभा में नेतृत्व के लिए मास्टर लालसिंह का नाम तय हुआ, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। मास्टर लालसिंह की चुनाव प्रचार के दौरान लाल घाटी भोपाल में एक सडक़ दुर्घटना में मृत्यु हो गई। डॉ शंकरदयाल शर्मा को भोपाल की कमान सौंप दी गई।