ग्वालियर-चंबल की छह सीटों साल के दो दशक बाद भी भाजपा की कमजोर कड़ी

वेबडेस्क। मप्र की सत्ता में लगभग दो दशक के कार्यकाल के बाद भी ग्वालियर- चंबल क्षेत्र में कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे भी जहां भाजपा आज भी कमजोर साबित होती है। वस्तुत: पार्टी ने ऐसे क्षेत्रों में अपनी ताकत खड़ा करने का ईमानदारी से प्रयास ही नहीं किया है।
लहार-
भिंड जिले की इस सीट पर भाजपा पिछले सात चुनाव से लगातार शिकस्त खा रही है। डॉ गोविंद सिंह के सामने भाजपा की सारी रणनीति हर चुनाव में धरी रह जाती है। 2023 में भी भाजपा यहां कुछ खास कर पाएगी इसकी संभावना फिलहाल तो किसी को नजर नहीं आ रही है।
पिछोर-
1990 में इस सीट पर तत्कालीन पटवा सरकार में राजस्व मंत्री रहे लक्ष्मीनारायण गुप्त नन्ना चुनाव जीते थे। इसके बाद से हुए सभी 6 चुनाव में भाजपा को यहां हार का सामना करना पड़ रहा है। केपी सिंह ककाजु यहां से लगातार जीत रहे हैं और वे अगले चुनाव में भी कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार होंगे। भाजपा यहां आज भी विकल्प के मामले में सिफर नजर आ रही है।
चाचौड़ा- 1990 औऱ 2013 के परिणाम छोड़कर भाजपा यहां कभी नहीं जीत पाई है। कभी देवेंद्रसिंह रघुवंशी यहां से विधायक हुआ करते थे। बाद में दिग्विजयसिंह मुयमंत्री रहते यहां से उपचुनाव जीते। फिर लगातार शिवनारायण मीणा के पास यह सीट रही और अब लक्ष्मणसिंह यहां से विधायक हैं। भाजपा के पास आज भी बहुत ही भरोसेमंद विकल्प यहां नजर नहीं आता है।
राधौगढ़- गुना जिले की यह सीट भी भाजपा के लिए दशकों से दूर बनी हुई है। मुयमंत्री दिग्विजयसिंह इस सीट से विधायक बने। फिर उन्होंने मूलसिंह दादाभाई को यह सीट दे दी। पिछले दो चुनाव से दिग्विजयसिंह के पुत्र जयवर्धनसिंह यहां से विधायक हैं। खास बात यह है कि 2003 में यहां से मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पार्टी ने चुनाव लड़ाया। उन्होंने भाजपा की हार के अंतर को आधा भी कर दिया पर उसके बाद से भाजपा ने यहां कोई खास इच्छाशति जीत के लिए नहीं दिखाई।
जौरा- मुरैना जिले की यह सीट भी भाजपा के लिए हमेशा परेशान करती रही है। आजादी के बाद पहली बार 2013 मे सूबेदारसिंह यहां भाजपा से जीते। हालांकि उपचुनाव 2020 में सूबेदार फिर जीत गए, लेकिन यहां भी पार्टी अपने प्रभाव और संगठन के अनुरूप कोई मजबूत विकल्प खड़ा नहीं कर पाई है।
भितरवार-
2003 में भाजपा के टिकट पर समता पार्टी से आयातित ब्रजेन्द्र तिवारी यहां आखिरी बार जीते हैं। इसके बाद से पार्टी ग्वालियर जिले की इस सीट पर लगातार शिकस्त झेल रही है। दो बार यहां से अनूप मिश्रा जैसे दिग्गज को हार का सामना करना पड़ा है। इस सीट की राजनीतिक जमीन भी भाजपा के