भाजपा का अभेद्य किला बना विंध्य क्षेत्र, पिछले चुनाव में मात्र 6 सीटों पर सिमटी थी कांग्रेस
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विंध्य राज्य का पांचवां सबसे बड़ा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में राज्य की 30 विधानसभा सीटें आती हैं। बता दें कि मध्यप्रदेश बनने के बाद से ये जोन राजनीति का केंद्र रहा है। 2018 में भाजपा ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। इसलिए विंध्य भाजपा का मजबूत किला है। यहां तक कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद भी पार्टी यहां ज्यादा सीटें नहीं जीत सकी थी। इसलिए कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में विंध्य में जीत के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। हालांकि ये कांग्रेस के लिए इतना आसान नहीं होगा, वहीं पिछले 4 चुनावी आंकड़ों से यह बात समझ आती है कि विंध्य में फतह हासिल करने के लिए कांग्रेस को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। गौरतलब है कि विंध्य क्षेत्र में भी जातिगत समीकरण हावी है। इस अंचल में ब्राह्मण, ठाकुर और पिछड़ा वर्ग से कुर्मी का भी दबदबा रहा है। कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा विंध्य कई विधानसभा चुनावों से भाजपा का अभेद किला बन गया है। भाजपा यहां बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है। 2003, 2008, 2013 और 2018 के चुनावों में भाजपा को यहां कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिली थीं। 2018 में भी जब कांग्रेस पार्टी कई सालों के बाद राज्य की साा में लौटी तो उसे विंध्य में केवल 6 सीटों से ही संतोष करना पड़ा, साथ ही इस क्षेत्र में अन्य पार्टी को भी अच्छा खासा महत्व मिला है, जिसके कारण पांच विधानसभा सीटों में कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई।
2018 में कांग्रेस को महज 6 सीट
2018 के विधानसभा की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं, क्षेत्र से चुनाव जीतकर कांग्रेस के 6 विधायक विधानसभा पहुंचे। 2018 के चुनाव में बसपा 2 सीटों पर नंबर 2 की पोजीशन पर थी। वहीं 1-1 सीटों पर समाजवादी पार्टी और गोडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर आए थे। यानी बीजेपी और कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों को भी लोग यहां वोट देते हैं।
2013 में भाजपा को 16
2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला था। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को विन्ध्य में 30 में से 12 सीटों पर जीत मिली थी। साथ ही साथ बीएसपी के दो विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। खास बात यह रही कि बीएसपी के 5 कैंडिडेट नंबर 2 पर भी रहे थे। यहां भाजपा को 16 सीटों पर जीत मिली थी।
2008 में भाजपा को 24 सीट
2008 के विधानसभा चुनाव में विंध्य में भाजपा को बंपर जीत मिली थी। भारतीय जनता पार्टी को 24 सीटों पर विजय मिली थी। बता दें कि 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की विंध्य में बहुत ही करारी हार हुई थी। पार्टी को मात्र 2 सीटें मिली थीं। यहां तक कि कांग्रेस से ज्यादा तो चुनाव में बसपा को सीटें मिल गई थीं। बसपा के 3 प्रत्याशियों को जीत मिली थी।
2003 में 18 सीटों पर किया था कब्जा
2003 के विधानसभा चुनाव में 10 साल बाद भाजपा ने साा प्राप्त की थी। इसमें विंध्य का बड़ा योगदान था। बता दें कि विंध्य में भी भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था और यहां पर पार्टी ने 28 में से 18 सीटों पर कब्जा किया था, वहीं कांग्रेस की बात करें तो पार्टी को सिर्फ 4 सीटों से ही संतुष्ट होना पड़ा था, साथ ही समाजवादी पार्टी ने भी इस चुनाव में अपने प्रदर्शन से सबको चौंका दिया था। सपा के 3 प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
24 सीटों में भाजपा का कब्जा
वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा ने 24 सीटों पर कब्जा जमाया, जिसमें से रैगांव, नागौद, मैहर, अमरपाटन, रामपुर बाघेलान, सिरमौर, सेमरिया, त्योंथर, मऊगंज, देवतालाब, मनगवां, रीवा, गुढ़, चुरहट, सीधी, चितरंगी, सिंगरौली, देवसर, धौहनी, ब्यौहारी, जयसिंहनगर, जैतपुर, बांधवगढ़ और मानपुर विधानसभा सीट पर भाजपा की जीत हुई, जबकि कांग्रेस को चित्रकूट, सतना, सिहावल, कोतमा, अनूपपुर और पुष्पराजगढ़ में जीत मिली। बाद में अनूपपुर से बिसाहूलाल भाजपा में शामिल होकर उपचुनाव जीते, वहीं रैगांव सीट में जुगुलकिशोर बागरी के निधन के बाद उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिल गई।
चार सीटों पर कांग्रेस को मिला तीसरा स्थान
विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस की लुटिया कितनी तेजी से डूबी, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस चार सीटों पर तीसरे स्थान पर खिसक गई। ब्यौहारी में कांग्रेस नेता रामपालसिंह, गुढ़ से सुंदरलाल तिवारी, देवतालाब से विद्यावती पटेल और रामपुर बाघेलान से रामशंकर पायासी मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा।