केजरीवाल सरकार डेंगू रोकने में नाकाम, हाईकोर्ट ने लगाई फटकार
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नईदिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में डेंगू पर रोक लगाने में नाकाम रहने पर नगर निगमों और दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है। जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में कोर्ट की मदद करने के लिए वकील रजत अनेजा को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि प्रशासन को पूरी तरह लकवा मार गया है। कोर्ट ने कहा कि शहर में बड़े पैमाने पर मच्छरों के प्रजनन के खतरे का मुद्दा है। कोर्ट ने कहा कि ये जरूरी है कि मच्छरों की ब्रीडिंग के मामले की मॉनिटरिंग की जाए। कोर्ट ने कहा कि तीनों नगर निगम, नई दिल्ली नगर परिषद और दिल्ली कैंट बोर्ड और दिल्ली सरकार इस समस्या पर स्थायी नजर रखें। इसके लिए एमिकस क्यूरी की नियुक्ति जरूरी है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 1 दिसंबर को कहा था कि अगर चुनाव असली मुद्दों पर लड़ा जाए तो हमारा शहर पूरी तरह बदल जाएगा लेकिन चुनाव इन पर लड़ा जा रहा है कि क्या मुफ्त है। कोर्ट ने कहा कि नीतियां लोकलुभावन बनाई जा रही हैं और सरकार डर रही है कि उसके वोट खिसक जाएंगे। सुनवाई के दौरान दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने मांग की थी कि कानून का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माने की रकम की सीमा बढ़ाने का दिशानिर्देश जारी किया जाए। तब कोर्ट ने कहा था कि कुछ रोक होनी चाहिए। हमारे समाज में लोग तब तक नहीं समझते जब तक कोई रोक नहीं हो। हम इस पर कानून नहीं बना सकते हैं। आप को ये डर है कि अगर वे कुछ करेंगे तो लोग आपको वोट नहीं देंगे।
कोर्ट ने कहा था कि अगर चुनाव असली मुद्दों पर होते तो हमारा शहर कुछ और होता। आज तक इस पर चुनाव हो रहा है कि मुफ्त क्या है। कोर्ट ने कहा था कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम के अधिकतर नाले खुले हुए हैं और उनसे बदबू आती है। देश की राजधानी दिल्ली के लिए ये दुखद स्थिति है।
कोर्ट ने 23 नवंबर को डेंगू की रोकथाम करने में नाकाम रहने पर नगर निगमों को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि उसके पहले के आदेश को अनसुना कर दिया गया। कोर्ट ने कहा था कि हर साल डेंगू बढ़ कैसे रहा है। क्या यह नगर निगम का काम नहीं है। यह रॉकेट साइंस की तरह है कि मानसून के बाद मच्छर आएंगे। पिछले 15-20 सालों से यही हो रहा है। न तो कोई इस पर सोचता है और न ही कोई योजना बनाई जाती है। कोर्ट ने कहा था कि मच्छरों की चेकिंग करने वाले स्टाफ और छिड़काव करने वाले कर्मचारी कुछ नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया था कि सभी निगमों के चेयरमैन इसे लेकर हर हफ्ते बैठक करें।