भारत-अमेरिका ने बढ़ाई चीन की चिंता
नई दिल्ली। चीन को अब झटके पर झटका लगने वाला है। भारत और अमेरिका द्वारा चीन के खिलाफ ऐसा चक्रव्यूह बनाया गया है जिसमें दुनिया की महाशक्ति बनने का सपना देखने वाला चीन आंतरिक टूटन का शिकार बन सकता है। कारण, ताइवान को भारत की ताकत मिली है तो हॉन्गकॉन्ग को अमेरिका का साथ मिल सकता है। वहीं अमेरिका ने तिब्बत और उइगर मुसलमानों का मसला उठाकर चीन की चिंता बढ़ा दी है।
48 घंटे में चीन की तीन कुटिल चालें विफल हो गईं। नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार के जरिए भारत पर दबाव बनाने की उसकी रणनीति को पलीता लग गया है। नेपाल में सहमति के अभाव में सरकार को विवादित नक्शा पास कराने के प्रस्ताव से पीछे हटना पड़ा है। नेपाल सरकार ने ऐन मौके पर संसद की कार्यसूची से संविधान संशोधन की कार्यवाही को हटा दिया। चीन के लिए परेशानी का कारण बने ताइवान को भारत की ताकत मिल गई है। नई सरकार के शपथ-ग्रहण में भाजपा सांसदों को शामिल कराकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन को जता दिया है कि भारत उसके दबाव में आने के बजाय दबाव बनाने की सामथ्र्य रखता है। अमेरिका ने भी चीन के खिलाफ चौतरफा मोर्चा खोल दिया है।
हॉन्गकॉन्ग के विद्रोह से चीन हिल गया है। ताइवान की बढ़ती ताकत से परेशान चीन की चिंता अब तिब्बत को लेकर भी पैदा हो गई है। अमेरिका के रुख से चीन तनाव में है। अमेरिका तेजी से चीन की दुखती रग पर हाथ रख रहा है। अमेरिका तिब्बत, हॉन्गकॉन्ग के साथ उइगर मुसलमानों के मुद्दे पर चीन को घेरने की कोशिश में जुट गया है। हॉन्गकॉन्ग पर अपना प्रभुत्व जताने वाला चीन नया कानून लाया है जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का नाम दिया गया है। उधर अमेरिका हॉन्गकॉन्ग को स्वतंत्रता के पक्ष में मुहिम चला दिया है। चीन एक ऐसा देश है जिसकी मित्रता तो किसी से नहीं दिखती, बल्कि दुश्मनी साफ-साफ दिखाई देती है। चीन के साथ पाकिस्तान जैसे एकाध कमजोर देश को छोड़कर कोई खड़ा नहीं है। जबकि भारत की ताकत वैश्विक दोस्ती के मामले में लगातार बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत ने तय कर लिया है कि वो चीन की किसी भी चाल को कामयाब नहीं होने देगा। चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत को भी लद्दाख में अपनी फौज की तैनाती करनी पड़ी। कोरोना संकट को लेकर अमेरिका ने चीन के खिलाफ बड़ा कूटनीतिक युद्ध छेड़ रखा है। अमेरिकी अर्थशाश्त्रियों की तरफ से भारत-अमेरिका को मिलकर काम करने का सुझाव देना जता रहा है कि चीन के खिलाफ मुहिम में अमेरिका भारत का साथ चाहता है। वैसे आर्थिक मोर्चे पर चीन की हालत बहुत पतली है। लगभग तीन सौ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने चीन से अपना डेरा बांध लिया है। इसमें दो सौ कम्पनियां भारत की तरफ उम्मीद से देख रही हैं।
अमेरिका को अंदाजा है कि सामरिक और आर्थिक मोर्चे पर भारत पहले से बहुत मजबूत स्थिति में है। दुनिया के कई देश भारत में निवेश को सुरक्षित मानते हैं, क्योंकि उन्हें मोदी के नेतृत्व और कार्यशैली पर भरोसा है। भारत सारा खेल पर्दे के पीछे से कर रहा है। वह अमेरिका से साथ भी नहीं दिखना चाहता। क्योंकि इससे भारत की मजबूत अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर पड़ेगा।
अमेरिका खुलकर खेलने पर आ गया है। अमेरिका के रूख से चीन का तनाव बढ़ गया है। विस्तारवादी चीन हॉन्गकॉन्ग, ताइवान, तिब्बत और उइगर मुसलमानों के मसले पर जिस तरह से घिर गया है, उससे डरा हुआ चीन दुनिया के सामने डराने का नाटक खेल रहा है। चीन के खिलाफ घेराबंदी मजबूत करने में जुटे अमेरिका की संसद में तिब्बत को एक स्वतंत्र देश की मान्यता दिए जाने की मांग कर दी है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में तिब्बत को अलग देश घोषित करने के लिए एक बिल पेश हो गया है। बिल में अमेरिकी राष्ट्रपति से मांग की गई है कि तिब्बत को चीन का हिस्सा न मानते हुए अलग देश घोषित करें। अमेरिकी संसद 28 अक्टूबर 1991 को पारित प्रस्ताव में तिब्बत पर चीन के अधिकार और अधिपत्य को अवैध करार दे चुकी है। ऐसे में अमेरिका अगर तिब्बत पर रुख सख्त करता है तो चीन के लिए नई मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने उइगुर मुस्लिमों का उत्पीडऩ करने के जिम्मेदार चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को भारी बहुमत से मंजूरी दे दी है। अब इस बिल को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मंजूरी के लिए व्हाइट हाउस भेजा गया है। राष्ट्रपति ट्रंप के इस बिल पर हस्ताक्षर होते ही चीन की मुस्लिम विरोधी छवि का निर्माण शुरू हो जाएगा। अब यह तय माना जा रहा है कि उइगर मुस्लिमों को लेकर पारित बिल पर अमेरिका और चीन के बीच विवाद बढ़ेगा और ट्रंप इसे बढ़ाने में दिलचस्पी भी लेंगे।
चीन को काबू में रखने और उसे ताइवान पर हमला करने से रोकने के लिए अमेरिका ने अपने सबसे महत्वाकांक्षी सैन्य प्रोजेक्ट पर काम करना शुरु कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाइपरसोनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी पर काम करना शुरु कर दिया है जो कि आवाज की गति से 17 गुना ज्यादा तेजी से दुश्मन पर हमला कर सकती है। ये दुश्मन को संभलने का मौका दिए बिना उसे तहस नहस कर सकती है। मतलब, भारत और अमेरिका की दोस्ती तथा इन दोनों देशों को आंख दिखाने की कोशिश चीन को इस बार भारी पडऩे वाली है। यही नहीं जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे लग रहा है कि विस्तारवादी सोच लेकर चलने वाला चीन कहीं विभाजन की चपेट में ना आ जाए क्योंकि उइगर मुस्लिमों का मुद्दा ऐसा है जिसमें चीन को पाकिस्तान जैसे मौकापरस्त दोस्तों का साथ भी नहीं मिलेगा। अन्य इस्लामिक देश भी चीन के खिलाफ सिर उठाना शुरु कर देंगे और चीन को मुस्लिम विद्रोह का सामना करना पड़ सकता है।