मनमोहन सिंह: आर्थिकी को बदलने वाले एक्सीडेंटल राजनेता का अवसान - बार - बार उन्हें कठघरे में खड़ा किया गया
मनमोहन सिंह
उमेश चतुर्वेदी। पिछली सदी के नब्बे के दशक में दो शब्द भारत को अचानक से कहीं ज्यादा मथने लगे थे। ये शब्द थे, उदारीकरण और वैश्वीकरण। शायद 1992 की बात है, लोकसभा में उदारीकरण को लेकर चर्चा चल रही थी। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उदारीकरण को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव पर हमलावर थे। वे बार-बार तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को कठघरे में खड़ा कर रहे थे।
चंद्रशेखर का हमला जारी था, इसी बीच अचानक प्रधानमंत्री अपनी सीट पर खड़े हुए और कुछ विनोदी अंदाज में चंद्रशेखर से मुखातिब हुए। उन्होंने कहा, चंद्रशेखर जी, मनमोहन सिंह आपके ही लाए हुए हैं। लेकिन चंद्रशेखर विनोद के मूड में नहीं थे। वे राव की ओर मुखातिब हुए और तल्ख लहजे में जवाब दिया था, मनमोहन तब महज अधिकारी थे, लेकिन आपने तो उन्हें नीति निर्माता ही बना दिया।
1991 में देश भयंकर आर्थिक संकट झेल रहा था। हालात यहां तक खराब हो गया था कि देश को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी विदेशी मुद्रा तक नहीं थी। देश को अपना काम चलाने के लिए तत्कालीन चंद्रशेखर सरकार ने 67 टन ब्रिटेन के एक बैंक को गिरवी रखने का फैसला लिया।
इसके बदले देश को 2.2 अरब डॉलर का कर्ज मिला था। इस गिरवी रखे सोने के दम पर देश की अर्थव्यवस्था हांफते हुए घिसटने लगी थी। ऐसे माहौल में 1991 के आम चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनकर उभरी और नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने। उनके सामने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती थी।
इस चुनौती का सामना करने के लिए उनके समक्ष सबसे बड़ा सवाल यह था कि किसे वित्त मंत्री का दायित्व दिया जाए। उनकी निगाह मनमोहन सिंह पर पड़ी, जो तब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष थे। हालांकि उसके पहले रिजर्व बैंक के वे गवर्नर रह चुके थे। योजना आयोग के अर्थशास्त्री सदस्य के रूप में भी काम कर चुके मनमोहन सिंह ने राव और देश को निराश नहीं किया।
आज भारत में जो चमक-दमक दिख रही है, आज भारत अगर दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है तो उसकी एक बड़ी वजह उदारीकरण वाली अर्थव्यवस्था है, जिसकी बुनियाद मनमोहन सिंह ने 25 जुलाई 1991 को रखी थी। इसी दिन उन्होंने लोकसभा में बजट प्रस्तुत करते हुए उदारीकरण की शुरूआत करते हुए देश की आर्थिकी से लाइसेंस राज की विदाई का गीत रचा था।
बेहद निम्न मध्य वर्गीय परिवार में जन्मे मनमोहन सिंह देश के एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री रहे। उनके ही मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने इसी नाम से किताब लिखी है। उन पर आरोप लगे कि वे कठपुतली प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री के रूप में उनके दो बयानों पर विवाद भी हुआ। उन्होंने एक बार कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं फलते और दूसरा बयान यह रहा कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है।
देश की आर्थिक चमक-दमक की बुनियाद रखने वाले मनमोहन बेहद शालीन और सहज व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी सरकार और उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे, लेकिन वे काजल की कोठरी में बेदाग रहे। देश उन्होंने सिर्फ अर्थशास्त्री के रूप में ही नहीं, एक ऐसे नेता के भी रूप में याद रखेगा, जिसने अपनी शालीनता कभी नहीं खोई।