दिल्‍ली विधानसभा चुनाव: प्रवेश वर्मा क्यों जीते, केजरीवाल क्यों हारे, समझिए समीकरण

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव
X

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव

विवेक शुक्ला: प्रवेश वर्मा ने जिस तरह से नई दिल्ली सीट से आम आदमी पार्टी ( आप) के एकछत्र नेता अरविंद केजरीवाल को शिकस्त दी है, वह बहुत देर तक याद रखी जाएगी। इस नतीजे में 2013 के विधानसभा चुनावों को भी देखा जा सकता है।

तब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराया था। उस जीत के बाद उन्हें सारा देश जानने लगा था। अब प्रवेश वर्मा ने अरविंद केजरीवाल को हरा कर बड़ा धमाका किया है। प्रवेश वर्मा एग्रेसिव तरीके से सियायत करते हैं। भाजपा के एक बड़े नेता ने बताया कि प्रवेश वर्मा ने पार्टी हाई कमान से गुजारिश की थी कि उन्हें नई दिल्ली सीट से टिकट दिया जाए।

भाजपा आला कमान ने उनकी गुजारिश को उनकी क्षमताओं को देखते हुए माना। ये फैसला प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के स्तर पर लिया गया। उन्होंने पार्टी की तरफ से टिकट की घोषणा होने से पहले ही नई दिल्ली की झुग्गी बस्तियों पर फोकस करना चालू कर दिया। वे घर-घर गए। दिन रात रायसीना रोड, अशोक रोड, गोल मार्केट वगैरह की झुग्गी बस्तियों और मंत्रियों के बंगलों के पीछे रहने वाले सेवकों के परिवारों से मिले।

उन्हें भरोसा दिया कि उनके मसले हल किए जाएंगे। झुग्गी बस्तियों में रहने वालों को यकीन दिलाया कि उनकी झुग्गियां तोड़ी नहीं जाएंगी, उनके बिजली के बिल पहले की तरह ही आएंगे। उनमें जितने की जिद्द रहती है। दिल्ली पब्लिक स्कूल और किरोड़ी मल कॉलेज के छात्र रहे प्रवेश वर्मा ने कभी नई दिल्ली की सियासत नहीं की।

वे तो बाहरी दिल्ली से सांसद रहे थे। उन्हें 2024 में जब लोकसभा के लिए टिकट नहीं मिला था तब समझ नहीं आया था कि उन्हें क्यों भाजपा आला कमान ने टिकट नहीं दिया।

तब ये भी चर्चा थी कि भाजपा उन्हें संगठन में जिम्मेदारी देना चाहती है। प्रवेश वर्मा सरोजनी नगर के गुर्जर बहुत पिंलजी गांव में भी जा रहे थे। उन्हें पिलंजी से तगड़ा समर्थन मिला है।

दरअसल सियासत के मंजे हुए खिलाड़ी की तरह प्रवेश वर्मा को समझ आ गया है कि उन्हें कामयाबी दिलवाने में अनधिकृत बस्तियों और झुग्गी- झोपड़ी कॉलोनियों में रहने वाले मतदाताओं का अहम रोल होता है। कोठियों और फ्लैटों में रहने वाले मतदाताओं ने तो सिर्फ शिकायतें ही करनी है।

नई दिल्ली में हजारों सरकारी मुलाजिमों के भी फ्लैट हैं। प्रवेश वर्मा की जीत में केन्द्र सरकार के मुलाजिमों के लिए आठवें पे कमीशन की घोषणा होने से माहौल बना। फिर बजट में 12 लाख रुपये पर कोई टैक्स ना लगने का भी उन्हें फायदा हुआ। नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल को हराना कोई बच्चों का खेल नहीं था। पर आप बड़े नेता तो तब ही बनते हैं, जब आप किसी शिखर नेता को पटकनी देते हैं।

बेशक, उनका तालकटोरा स्टेडियम का नाम महर्षि वाल्मिकी स्टेडियम करने की घोषणा करने का भी उन्हें बड़ा लाभ हुआ। नई दिल्ली सीट में हजारों वाल्मीकि समाज के वोटर हैं। इसी सीट में वह वाल्मिकी मंदिर भी जहां गांधी 214 दिन रहे थे।

अगर बात अरविंद केजरीवाल की करें तो कहना होगा कि देश में वैकल्पिक राजनीति की शुरूआत करने वाले वाले केजरीवाल ने लगातार दिल्ली वालों को अपनी हरकतों से निराशा किया। दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के सत्तासीन होते ही अराजकता और अव्यवस्था फैलने लगी। और हद तो तब हो गई जब दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश की मुख्यमंत्री ने अपने निजी सहायक द्वारा सरकारी आवास पर मध्य रात्रि में बुलवाकर गुंडे किस्म के हिस्ट्रीशीटर विधायकों द्वारा लात- घूँसों से पिटाई करवा दी।

ऐसा शर्मनाक वाकया पहले कभी नहीं सुना था कि देशभर में कहीं भी किसी मुख्यमंत्री के आवास पर किसी वरिष्ठ आई.ए.एस अफसर को सत्तासीन दल के विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री आवास पर बुलवाकर मध्य रात्रि में घूँसों और लातों से पिटवाया जाय। लोकतंत्र का इससे बड़ा मखौल क्या हो सकता है? विधानसभा का नेता की कार्यपालिका के मुखिया से न बने, यदि कार्यपालिका उसके शुद्ध राजनीतिक निर्णयों को न माने तो उसे मध्य रात्रि में बुलवा कर अपने सामने विधायकों से पिटवा दे।

ऐसा तो विश्व भर के किसी भी लोकतंत्र में न कभी देखा न सुना! तब बहुत लोगों को लगा था कि आखिर दिल्ली कहां जा रही है? आखिर हम सारी दुनिया को क्या संदेश दे रहे हैं? पूरी दुनिया दिल्ली सरकार पर थू-थू कर रही थी।

केजरीवाल के खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं। केजरीवाल सरकार में एक के बादएक मंत्रियों पर भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं के आरोप लगते रहे। इसी का नतीजा है कि उनकी सरकार के कई मंत्रियों को हटाना भी पड़ा। हालाँकि, केजरीवाल ने भरसक भ्रष्टाचारियों को बचाने में कोई कसर नहीं उठाई।

केजरीवाल ने सच में बहुत लोगों को निराश किया है अपने आचरण से भी व्यवहार से भी । वे पहली बार जब दिल्ली में सत्तासीन हुए तो उनके विरोधियों को भी एक उम्मीद तो बंधी ही थी कि वे एक वैकल्पिक राजनीति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।लेकिन, वे अन्ना के आन्दोलन से निकले हुए। रंगे सियारों की टोली के सरगना निकले। लेकिन, जब रंगा सियार पकड़ा जाता है तो उसका जनता क्या उपचार करती है यह भी जगजाहिर है ही। वही अब केजरीवाल जी उनके साथ होने वाला है ऐसा लगता है।

उन्होंने वैकल्पिक राजनीतिकी बात करने वाले लोगों को एक उम्मीद जरूर दिखाई थी । पर वे तो नकारात्मक राजनीति के सबसे बड़े चेहरे बनकर उभरे। केजरीवाल ने भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक तक पर सवालिया निशान खड़ेकिये। वे भूल गए कि देश अपने शूरवीरों को लेकर सियासत नहीं करता। बटाला कांड को फेक एनकाउंटर कहा उन्होंने करप्शन को चोट पहुंचाने के लिए उठाए गए नोटबंदी के कदम तक का पुरजोर विरोध किया। अब उनके सामने के सारे विकल्प खत्म हो चुके हैं। पाप का घड़ा जब भर जाता है तो उसे फूटने में देर नहीं लगती ।

Tags

Next Story