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श्रीराम की प्रत्येक लीला में वनवास के बाद रामराज्य अवश्य आता है - पुण्डरीक जी
आगरा। पिछले कई वर्षो से उपेक्षित अयोध्या का अब समय आया है। श्रीराम की प्रत्येक लीला में वनवास के बाद रामराज्य अवश्य आता है। वाल्मीकि रामायण में वनवास 14 वर्ष का था, इस कालखंड में समय थोड़ा ज्यादा हो गया। इस कालखंड में रामराज्य की स्थापना प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा हुई है। यह कहना था श्रीमन्माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य पुण्डरीक गोस्वामी जी का। स्वदेश से विशेष वार्ता में उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण का प्रभाव समाप्त होते ही अयोध्या की ओर जनमानस का सैलाब उमड़ेगा और अयोध्या विश्व आस्था के केंद्र में होगी। पुण्डरीक जी ने कहा कि वर्षो से अयोध्या के कई ऐतिहासिक स्थल उपेक्षित पड़े थे, अब वह प्रकाश में आ रहे हैं। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं सन्यायी हैं, महापुरूष हैं। मुख्यमंत्री पद के अलावा भी संत सदैव समाज के कल्याण में लगे रहते हैं। अयोध्या स्थित मखक्षेत्र, नंदीग्राम, रामपौड़ी आदि स्थानों को प्रकाश में लाया जा रहा है। हमारी अयोध्या संवर रही है। श्रीराम के प्रति अयोध्या व देशवासियों का प्रेम राष्ट्र के उत्साह को प्रकट करता है।
रामकृष्ण में काई भेद नहीं है
रामकृष्ण में कोई भेद नहीं है। एक दृष्टि से है भी लेकिन, वह भी आनंद देने वाला है। जैसे 'चंद्रमा एक ही है लेकिन, चंद्रिका' रोज नई है। पुण्डरीक जी ने कहा कि अगर भेद माना भी जाए तो यह भेद भी 'बोध' कराने वाला है। पती-पत्नी भी आत्मदृष्टि से एक हैं, फिर भी दो हैं। ब्रज की दृष्टि से राधा-कृष्ण भी एक हैं, फिर भी हम दो मानते हैं। प्रकृति और परमेश्वर का भेद है-'रामकृष्ण दोऊ एक हैं, अंतर नहीं निमेश, उनके नयन गंभीर हैं, उनके चपल विशेष'। जब त्रेता की परिस्थिति के मध्य अशुद्धियों की निवृति और शुद्धियों की स्थापना की जरूरत थी, तो राम जी का प्राकट्य है, जब द्वापर में उसकी आवश्यकता पड़ी, तब श्रीकृष्ण का प्राकट्य है। जो लोग भेद देखते हैं, उन्हें राम-कृष्ण को समझने की आवश्यकता है।
समाज का पोषण करते हैं मंदिर
पुंण्डरीक जी ने कहा कि मंदिर पूरे समाज का पोषण करते हैं। आध्यात्मिक, सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से भी। जैसे पुरी का पोषण जगन्नाथ जी कर रहे हैं। वहां के होटल, दुकानें, छोटे-उद्यम, प्रसाद, पोशाक बनाने वाले आदि का पोषण होता है। इतना ही नहीं रथयात्रा के समय इंडिगो व स्पाइस जैसी फ्लाइट में बड़ी राशि देकर भी स्थान नहीं मिलता। एक तरह से देखा जाए, तो इन कंपनियों का पोषण भी जगन्नाथ जी कर रहे हैं। मंदिर पठन-पाठन, संस्कृति संरक्षण व आध्यात्मिक चेतना कें केंद्र हैं।
सनातन धर्म का आधार विश्वास नहीं विज्ञान है
पुण्डरीक जी ने कहा कि सनातन धर्म का आधार विश्वास नहीं विज्ञान है। हमारे ग्रंथों में जो सूक्ष्म ज्ञान है, वह केवल पूजा तक ही सीमित नहीं है। आज भी वैदिक ग्रंथों में ऐसे सूक्ष्म तत्व हैं, जिन पर शोध की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सूर्य के मकर राशि में आने से प्रकृति पर पड़े प्रभाव का ज्ञान भारतीय मनीषियों को पांच सौ वर्ष पहले ज्ञात हो गया था, जबकि पाश्चात्य विज्ञानियों को इसके बारे में तीन सौ वर्ष पहले ज्ञान हुआ। सांख्य का सूत्र 10 हजार वर्ष कह चुका है-'अणु अणियान महतो महियान'। श्री रामायण की आरती में हम गाते हैं, वाल्मीक विज्ञान विशारद। महाराजा दशरथ के मृत शरीर को भरत के आने तक वशिष्ठ ऋषि ने विभिन्न औषधियों द्वारा सुरक्षित रखा। ऐसे कई विज्ञानिक तत्थों का वृहद विश्लेषण हमारे ग्रंथों में उपलब्ध है। पुण्डरीक जी ने कहा कि हमारे ग्रंथों में उपलब्ध सामग्री को वर्तमान से जोड़ने वाले विषयों का प्रकाश हो, तब इन ग्रंथों की समाज में प्रासंगिकता और बढ़ जाएगी।
गौ सेवी बनने का प्रयास लगातार करते रहें
पुण्डरीक जी ने कहा कि गौमाता धर्म की रीढ़ है। हम गौसेवी बने रहे। वर्तमान में गौदुग्ध व गौ-उत्पादों के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है। वहीं उन्होंने कहा कि धर्म में आयी विकृती को रोकने के लिए संप्रदायों की भूमिका और अधिक प्रासंगिक हो गयी है। हमें गाय और गंगा यमुना सहित सभी नदियों की पवित्रता बनाने रखने के प्रयास करने चाहिए। सरकार भी इसमें सहयोग प्रदान करे।
कुंभ की बैठक है श्री वृंदावन
वृंदावन में लगने जा रहे कुंभ पर पुण्डरीक जी ने जानकारी देते हुए कहा कि समुद्र मंथन के बाद जब गरूण कलश को लेकर जा रहे थे, तब मार्ग में उन्होंने वृंदावन में प्रणाम किया और कुछ देर के लिए बैठक लगायी। यह वृंदावन की अपूर्ण महिमा है कि कुंभ की यहां बैठक है।