पुत्रदा एकादशी पर बन रहा है सोया भाग्य जगाने वाला शुभ योग : डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी
वेबडेस्क। इस एकादशी अनाथ और दीन हीन जरूरतमंद बालको को वस्त्र एवं दान खाद्य सामग्री वितरित कर आप भी अपने भाग्य को जगा सकते हैं क्योंकि यह एकादशी गुरुवार के दिन पड़ने से विशेष शुभ बनने जा रही है, संतान की इच्छा रखने वाले दंपत्ति को भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा आवश्यक रूप से करनी चाहिए । श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि वैसे तो एकादशी व्रत सभी व्रतों में प्रमुख व्रत है इसीलिए इसे व्रतों का राजा कहा गया है । एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है। साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। जबकि महीने में 2 एकादशी व्रत रखे जाते हैं। साल 2022 की पहली एकादशी 13 जनवरी को पड़ेगी । इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जानते हैं। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार पड़ती हैं, एक पौष मास में और दूसरी श्रावण मास में। जनवरी महीने में पड़ने वाली एकादशी पौष पुत्रदा एकादशी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पुत्रदा एकादशी व्रत संतान प्राप्ति की कामना करने वालों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
डॉ तिवारी के अनुसार एकादशी तिथि 12 जनवरी, बुधवार को शाम 04 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ हगी, जो कि 13 जनवरी (गुरुवार) को शाम 07 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। यह व्रत उदया तिथि में 13 जनवरी को रखा जाएगा। इसलिए व्रत का पारण 14 जनवरी को सूर्योदय के बाद होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उनकी पत्नी और राज्य की रानी का नाम शैव्या था। राजा के पास सब कुछ था और सुख-संपत्ति धन धान्य के मामले में कोई कमी नहीं थी सिर्फ संतान का अभाव था। ऐसे में कुल के भविष्य को अंधकारमय देख राजा और रानी अक्सर उदास और चिंतित रहते थे। राजा के मन में उनकी मृत्यु के बाद पिंडदान की चिंता सताने लगी और साथ ही राज्य के उत्तराधिकारी को लेकर भी मन व्याकुल रहने लगा। ऐसे में एक दिन राजा ने दुखी होकर अपने प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया, हालांकि पाप के भय से उन्होंने इस विचार को त्याग दिया। एक दिन राजा का मन राजपाठ में नहीं लग रहा था, जिसके कारण वह जंगल की ओर भ्रमण और शिकार पर चले गए।
जंगल में राजा को पशु-पक्षी दिखाई दिए और इसके साथ ही मन में बुरे विचार आने शुरू हो गए। इसके बाद राजा दुखी होकर जंगल में ही एक तालाब किनारे बैठ गए। संयोग से इसी तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम थे। राजा आश्रम में गए और ऋषिगण राजा को देखकर प्रसन्न हुए और उनके विनम्र स्वभाव से प्रसन्न होकर अपनी इच्छा बताने के लिए कहा । राजा ने अपने मन की चिंता और व्याकुलता मुनियों को कह डाली। राजा की चिंता सुनकर एक तपस्वी ने कहा कि एक पुत्रदा एकादशी व्रत है, जिसे संतान प्राप्ति हेतू राजा को रखना चाहिए। राजा ने अगले ही अवसर पर मुहूर्तानुसार व्रत को रखा और द्वादशी तिथि को इसका पूरी विधि-विधान से पारण भी किया। इसके फलस्वरूप रानी शैव्या को कुछ दिनों के बाद गर्भ धारण हो गया और 9 माह के पश्चात राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।