कलियुग का ब्रह्मास्त्र है बुधाष्टमी, इस दिन शिव के भैरव रूप की पूजा से सभी ग्रह बाधा होंगे दूर
वेबडेस्क। सनातन वैदिक पञ्चांग में श्रावण मास की अष्टमी को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यदि इस दिन बुधवार हो तो उसे बुधाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। जो इस बार 20 जुलाई बुधवार को रेवती नक्षत्र से संयुक्त है । श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि भगवान शिव के भैरव रूप की पूजा इस दिन की जाने की प्रथा है। भगवान भोलेनाथ के भैरव रूप की पूजा या स्मरण मात्र से सभी प्रकार के पाप, दोष ताप तथा कष्ट दूर होते हैं। इसिलिए कलियुग का ब्रह्मास्त्र भैरव देवता को कहते हैं । विशेष कर जिनकी कुंडली में बुध राहु से पीडि़त हो उसे कालाष्टमी का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए जिससे जीवन में सफलता प्राप्ति का मार्ग खुलता है। भगवान भैरवनाथ तंत्र-मंत्र की विद्याओं के ज्ञाता हैं साक्षात रूद्र हैं।
डॉ तिवारी के अनुसार भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं-
- 1. असितांग भैरव,
- 2. चंड भैरव,
- 3. रूरू भैरव,
- 4. क्रोध भैरव,
- 5. उन्मत्त भैरव,
- 6. कपाल भैरव,
- 7. भीषण भैरव
- 8. संहार भैरव।
लिंग पुराण के अनुसार रविवार, बुधवार या भैरव अष्टमी पर इन 8 नामों का उच्चारण करने से मनचाहा वरदान मिलता है। भैरव देवता शीघ्र प्रसन्न होते हैं और हर तरह की सिद्धि प्रदान करते हैं। क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है
डॉ तिवारी ने कहा कि शिवपुराण में भगवान शिव के भैरव रूप का वर्णन है कि सृष्टि की रचना, पालन और संहारक इनके द्वारा किया गया। इस रूप की पूजा से सभी प्रकार से रक्षा कर पाप से मुक्ति देते हैं। शिव जी के भैरव रूप की पूजा के लिए षोड्षोपचार सहित पूजा कर अर्घ्य देना चाहिए। रात के समय जागरण कर भोले शंकर एवं माता पार्वती की कथा एवं भजन कीर्तन कर भैरवजी की कथा का श्रवण-मनन करना चाहिए। मध्य रात्रि होने पर शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भैरव भगवान का वाहन श्वान है अतः इस दिन कुत्ते को आहार देना चाहिए। कालभैरव स्त्रोत का पाठ तथा उपासना कर दान आदि देने से जीवन में सफलता प्राप्त होती है तथा कालसर्प दोष से दूषित बुध तथा शिक्षा में आने वाली बाधा दूर होती है।