भक्ति के बल पर प्रकट कर दिए बांके बिहारी जी, ऐसे थे स्वामी हरिदास जी महाराज, वंशजों ने बनाया ठाकुर बांकेबिहारी जी का मंदिर
वृंदावन/सुभाष गोस्वामी। वृंदावन में ठाकुर बांकेबिहारी जी के मंदिर के निर्माण को लेकर प्राचीन मान्यता है। इसके अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास महाराज के वंशजों के सामूहिक प्रयास से करीब संवत 1921 मे किया गया था। बताया जाता है कि स्वामी हरिदास महाराज अपने पिता आशुधीर महाराज से दीक्षा लेकर संवत 1560 में श्रीधाम वृंदावन में निधिवन नामक नित्यविहार की भूमि में आकर निवास करने लगे। वे नित्यविहार के नित्य समुद्र में रसमग्न रहकर प्रिया-प्रियतम का साक्षात्कार करते हुए उन्हीं की केलियों का गान करते थे। परंतु अन्य भक्तों को भी प्रिया-प्रियतम का दर्शन लाभ हो सके इस हेतु अपने भाई जगन्नाथ महाराज एवं अन्य रसिकों की प्रार्थना पर उनके दिव्य विग्रह को निधिवन में प्रकट किया। उनके अपूर्व रूप का दर्शन कर उपस्थितजन धन्य हो गए। तभी स्वामी हरिदास ने प्रियाजी को निवेदन किया कि आपके सौंदर्य को लोक सहन नहीं कर पाएगा, अतः आप दोनों एक ही रूप में होकर दर्शन दें। जिस पर वे श्रीबांकेबिहारी महाराज के दिव्य श्रीविग्रह के रूप में मार्गशीर्ष, शुक्ला के पंचमी तिथि को उपस्थित हुए। अतः उनकी प्राकट्य तिथि को आज भी बिहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। बाद में ठा. बांकेबिहारीजी की सेवा का दायित्व स्वामी हरिदास महाराज ने जगन्नाथ महाराज को सौंपा और श्रीबांकेबिहारी जी निधिवन में ही बहुत समय तक स्वामीजी द्वारा सेवित होते रहे थे। जब वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न हो गया, तब उनको यहां लाकर स्थापित कर दिया गया। आनंद का विषय है कि जब काला पहाड़ के उत्पात की आशंका से अनेकों विग्रह स्थानान्तरित हुए। परंतु श्रीबांकेबिहारी जी यहां से स्थानान्तरित नहीं हुए। आज भी उनकी यहां प्रेम सहित पूजा चल रही है। ठा. बांकेबिहारी मंदिर की सेवा परंपरा अनुसार ठा. बांकेबिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही बांकेबिहारीजी बंशी धारण करते हैं। केवल श्रावण तीज (हरियाली तीज) के दिन ही ठाकुरजी झूले पर बैठते हैं एवं केवल जन्माष्टमी के दिन ही उनकी मंगला आरती होती है।
विश्वविख्यात ठा. बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत मयंक गोस्वामी उर्फ बंटू महाराज ने बताया कि मंदिर जन्माष्टमी के मौके पर रात्रि 12 बजे मंदिर के गर्भगृह में जन्मोत्सव अंतर्गत सेवायत गोस्वामियों द्वारा यमुनाजल व पंचामृत तथा नवरत्न से जन-जन के आराध्य का महाभिषेक कर ठाकुरजी को पीत वस्त्र व विशेष पोशाक धारण कराई जाती है। तत्पश्चात वर्ष में एक दिन होने वाली मंगला आरती होने के साथ ही भक्तों के लिए दर्शन खुले रहेंगे।
ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में साल में एक बार ही होती है मंगला आरती
वृंदावन। ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव का उल्लासा छाया है। यहां 23 अगस्त की रात 12 बजे गर्भगृह में ठाकुर जी का महाभिषेक किया जाएगा। ये अभिषेक सेवायत गोस्वामी पट बंद करके करते हे। इसके बाद वर्ष में एक बार होने वाली मंगला आरती रात 1.55 बजे की जाएगी।
ठाकुर जी रात 1.45 बजे गर्भगृह से बाहर जगमोहन में आएंगे। पट खुलने पर रात 1.55 बजे मंगला आरती प्रारंभ होगी। आरती के बाद बांकेबिहारी रात 2 से सुबह 5.30 बजे तक भक्तों को दर्शन देंगे। उधर, 24 अगस्त को प्रातः 7.45 से दोपहर 12 बजे तक ठाकुर जी जगमोहन में भक्तों को नंदोत्सव के दर्शन देंगे।
इस दिन पट खुलते ही नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की...जयकारा लगेगा। गोस्वामी अपने लाड़ले के जन्म की खुशी में खिलौने, बर्तन, वस्त्र, रुपये, मिठाई, फल, मेवा लुटाएंगे। दधिकांधा में गोस्वामीजन केसर दही भक्तों पर लुटाएंगे।
नंदोत्सव पर भगवान जगमोहन में भक्तों को दर्शन देंगे। केसर दही जो भक्तों के बीच लुटाया जाता है। उसे भक्तजन लाल की छीछी का रूप में मानते हैं और उसे पाने का हर संभव प्रयास करते हैं। श्रद्धालुओं की आस्था इतनी अटूट है कि यहां साल में करीब 1.25 करोड़ श्रद्धालु आते है जो देश में किसी भी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से कहीं अधिक है।