सन 1814 में सेठ गोकुल चंद्र पारिख ने बनवाया था ठाकुर द्वारिकाधीश का मंदिर, जन्मोत्सव का छाया है उल्लास
मथुरा। मथुरा का द्वारिकाधीश मंदिर पुष्टिमार्गीय संप्रदाय का सबसे प्राचीन और बड़े मंदिरों में शुमार किया जाता है। यहां द्वारिकाधीश के बाल्य स्वरूप की सेवा होती है। ठाकुर की दिन में आठ झांकियां होती है सभी दर्शनों में उनके लिए भोग लगाया जाता है।
मंदिर में श्री कृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियां जोरों पर है। मंदिर के विधि एवम मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी एडवोकेट ने बताया कि मंदिर में विराजमान प्रतिमा ग्वालियर में सेठ गोकुल चन्द्र पारिख जी को खुदाई के दौरान मिली थी। सबसे पहले इन्हें वृंदावन के राजपुर स्थित मंदिर बगीचा में विराजमान किया गया था। उसके पश्चात ठाकुर जी ने सेठ जी को स्वप्न दिया कि हमें कहीं बृज में विराजमान कराया जाए। तब जाकर सेठ जी ने इस मंदिर के लिए जमीन खरीदी और आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व सन 1814 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया।
मंदिर में सेवा पूजा के लिए कांकरोली के तृतीय पीठाधीश्वर श्री गिरधर लाल जी महाराज को सभी अधिकार दिए गए। तभी से आज तक इस मंदिर की सेवा पूजा पुष्टीयमार्गीय संम्प्रदाय के अनुसार होती हैं और वर्तमान में मंदिर के पूज्य महाराज श्री श्री108 श्री ब्रजेश कुमार जी महाराज ब्रह्मर्षि कांकरोली नरेश जी के द्वारा मंदिर के सभी कार्यक्रमों का निर्धारण किया जाता हैं। इस सभी कार्यक्रमों का निर्देशन कांकरोली युवराज श्री श्री 108 डा. वागीश कुमार जी महाराज के द्वारा किया जाता हैं।
मंदिर में 100 साल पुराने सोने व चाँदी के हिण्डोले हैं। इन हिण्डोलो को बनवाने में 60 किलो सोना लगा है। ये हिण्डोले श्रावण मास में ही दर्शन के लिए निकाले जाते है। प्रभु को इन हिंडोलांे में बैठा कर श्रावण भादों मास में झूला झुलाया जाता हैं। मंदिर में आठ झांकियां होती है मंगला श्रृंगार ग्वाल राजभोग और शाम को उत्थापन भोग संध्या आरती और शयन आरती। पुष्टिमार्गीय संप्रदाय में बालस्वरूप की सेवा है और तिथि घड़ी पल और नक्षत्र के हिसाब से सभी कार्यक्रमों का निर्धारण होता है और भाव भाव के हिसाब से प्रातकाल मंगला में आरती होती है। उसके बाद राजभोग में आरती होती है और शाम को संध्या आरती और शयन में आरती होती है। इस प्रकार पुष्टिमार्गीय संप्रदाय में कुल 4 आरतियां होती हैं और 8 झांकियों में दर्शन होते हैं। भगवान का कोई भी उत्सव हो कोई भी त्यौहार हो यह पुष्टिमार्गीय संप्रदाय में बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। इसी प्रकार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को अजन्में के जन्म की लीला और उत्सव मनाया जाता है। इसके लिए मंदिर को बेहद आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। इस उत्सव में शामिल होने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते है।
द्वारिकाधीश मंदिर में ऐसे मनेगा श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव
मथुरा। द्वारिकाधीश मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव 24 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन प्रातः 6ः15 पर मंगला दर्शन, 6ः30 बजे भगवान का पन्चामृत अभिषेक के दर्शन और प्रात काल 9 बजे श्रृंगार के दर्शन होंगे। यह श्रंगार वास्तव में एक भव्य श्रृंगार होगा। जिसमें हीरे जवाहरात और स्वर्ण आभूषणों का पहनावा ठाकुर जी को किया जाएगा। तत्पश्चात ठाकुर जी के और झांकियों ग्वाल वाल, राज भोग के दर्शन होंगे। सांयकाल 7ः30 बजे उत्थापन के दर्शन खुलेंगे और उसके बाद झांकियां निरंतर रहेंगी 10 बजे पहली झांकी खुलेगी। 11ः45 ठाकुर जी के जन्म के दर्शन करेंगे। श्रीकृष्ण के जन्म के साथ ही शंखनाद होगा। तत्पश्चात 25 अगस्त को प्रातः 10 बजे नन्द महोत्सव के दर्शन होंगें। उसके बाद मंगला, श्रृंगार, राजभोग, लगभग 2 बजे तक तथा शयन के दर्शन सांय 4ः30 से 5 बजे तक होंगे।