भाग-4/ पितृ-पक्ष विशेष : समरस समाज के रचयिता भगवान परशुराम
परशुराम जी के नाम से ऐसे ओजस्वी ऋषि सामने आते हैं, जिनकी बलिष्ठ भुजाएं हैं, चौड़े कंधे हैं, एक हाथ में फरसा और दूसरे हाथ में धनुष बाण हैं। तुलसीदास जी के शब्दों में-
वृषभ वृषभ कंद और बहू विशाला।
दूसरी बात जो आंखों के सामने आती है, वह है राम द्वारा शिव धनुष तोडऩे पर अचानक जनक जी की सभा में पहुंचना और जनक जी को ललकारते हुए कहना कि- अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा॥
मूर्ख जनक जल्दी बता यह शिव धनुष किसने तोड़ा है, और तीसरी बात संपूर्ण पृथ्वी से क्षत्रियों का समूल नाश करने का प्रण लेने वाले परशुराम। क्षत्रियों पर उनके क्रोध के पीछे का कारण को समझने से पता चलता है कि उस समय क्षत्रियों के अत्याचार और अन्याय इतने बढ़ गए थे कि उन्होंने क्षत्रियों को सबक सिखाने का प्रण किया। दूसरा अपने मौसा जी सहस्त्रबाहु द्वारा अपने पिता के आश्रम पर आक्रमण और पिता की हत्या ने भी परशुराम के क्रोध को भडक़ा दिया। परशुराम भृगु वंशी थे। यह वही भृगु वंश है, जिसमें भृगु ऋषि ने अग्नि, लोहा और रथ का आविष्कार किया था। धनुष बाण और अस्त्र शस्त्रों का आविष्कार भी भृगु और अंगिरा ऋषि ने मिलकर किया। इसी कुल ने बारूद का आविष्कार भी किया। वामन अवतार के बाद परशुराम का अवतार हुआ। वामन अवतार जहां जीव के जैविक विकास क्रम का लघु रूप था। वहीं परशुराम मानव जीवन के विकास क्रम के संपूर्णता के प्रतीक थे।
परशुराम ने मानव जीवन को व्यवस्थित ढांचे में ढालने का महत्वपूर्ण कार्य किया। लंका के क्षेत्र में जाकर वहां शूद्रों को एकत्रित कर समुद्र तटों को रहने योग्य बनाया। अगस्त ऋषि से समुद्र से पानी निकालने की विद्या सीख कर समुद्र के किनारों को रहने योग्य बनाया। एक बंदरगाह बनाने का भी प्रमाण परशुराम जी का मिलता है। वही परशुराम ने कैलाश मानसरोवर पहुंचकर स्थानीय लोगों के सहयोग से पर्वत का सीना काटकर ब्रह्म कुंड से पानी की धारा को नीचे लाया जो ब्रह्मपुत्र नदी कहलायी।
परशुराम समतावादी समाज का निर्माण करने वाले थे। भले ही उन्हें ब्राह्मणों का हितैषी और क्षत्रियों का विरोधी माना जाता रहा है। यह परशुराम जी को बेहद संकुचित आधार पर देखने की दृष्टि है। हम महापुरुषों को उनकी जाति के आधार पर देखते हैं। पर सच यह है कि उन्होंने श्रत्रियों को इसलिए पराजित नहीं किया कि वह क्षत्रिय थे या ब्राम्हण नहीं थे। उन्होंने क्षत्रिय समाज के उन अहंकारी राजाओं को परास्त किया जो समाज रक्षण का मूल धर्म भूल गए थे। ब्राह्मण समाज में भी उन्होंने सत्ता दी जो संस्कारी थे, सदाचारी थे। वही यदि कोई ब्राह्मण संस्कार विहीन है तो उसे शूद्र की श्रेणी में लाकर पदावनत किया। साथ ही अगर कोई शूद्र संस्कारवान है तो उसे ब्राह्मणों की श्रेणी में रखने में भी उन्होंने संकोच नहीं किया।
परशुराम जी का यह उदाहरण समरस समाज के निर्माण में उनके योगदान को दर्शाता है, जिसकी आज चर्चा होनी चाहिए।