75 साल बाद खास तिथि पर मनाया जाएगा गंगादशहरा, इसमें बन रहे 10 दिव्य योग
ग्वालियर। 'गंगा तव दर्शनात मुक्ति:' अर्थात गंगा का दर्शन मात्र ही मोक्षदायक है। गंगा कलियुग का प्रधान तीर्थ है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य वृष और चंद्रमा कन्या राशि के हस्त नक्षत्र में थे, तब गंगा जी का हिमालय से निर्गमन हुआ था। इस बार 12 जून को गंगा दशहरा मनाया जाएगा।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी पर माता गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने की मान्यता है। देवी गंगा का 10 दिव्य योग की साक्षी में पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। ज्योतिषियों के अनुसार इस बार गंगा दशहरा पर वैसा ही 10 दिव्य योग का संयोग बन रहा है। बीते 75 साल में इस योग का निर्माण नहीं हुआ है। विशिष्ट योग की साक्षी में गंगा माता का पूजन पितरों को तारने तथा पुत्र, पौत्र व मनोवांछित फल प्रदान करने वाला माना गया है।
ज्योतिषाचार्य प. सतीश सोनी ने बताया पंचागीय गणना के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी गंगा दशमी या गंगा दशहरा के नाम से जानी जाती है। इस बार 12 जून को गंगा दशहरे पर दिव्य संयोग बन रहा है। धर्मशास्त्रीय मान्याता के अनुसार इस बार गंगा दशहरे पर वैसे ही 10 दिव्य महायोग बन रहे हैं, जिन योगों में देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। पंचागीय गणना से देखें तो बीते 75 साल में इस प्रकार का दिव्य संयोग नहीं बना है। हेमाद्री कल्प में श्रृंगी ऋ षि ने 10 दिव्य योग में काशी के वासियों को दशाश्वमेघ घाट पर गंगा का पूजन तथा अन्य तीर्थ के लोगों को समीपस्थ तीर्थ पर गंगा पूजन करने को कहा है। ऐसा करने से मनुष्य को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
यह दस योग गंगा अवतरण के समय थे विद्यमान
ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार का दिन, हस्थ नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर करण, आनंद योग, कन्या राशि का चंद्रमा व वृषभ राशि का सूर्य को दश महायोग कहा गया है।
शरीर निरोगी हो तो गंगा दशहरा के दिन गंगा में स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। गंगा स्त्रोत पढ़ना चाहिए। इससे दस तरह के पाप नष्ट होते हैं। गंगा पूजा में सभी वस्तुएं दस प्रकार की होनी चाहिए, जैसे- दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार के नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल आदि, छाता, सूती वस्त्र, टोपी-अंगोछा, जूते-चप्पल आदि दान में देने चाहिए। इस दिन नहाते समय गंगा मैया का इस प्रकार ध्यान करें- 'गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन सन्निधिं कुरु॥' प्रयाग, गढ़मुक्तेश्वर, हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी में श्रद्धालु भारी संख्या में गंगा स्नान का पुण्य कमाते हैं।