ज्वाला देवी मंदिर में ईट से अनवरत जलती है ज्वाला
हमीरपुर। हमीरपुर जिले में ज्वाला देवी का इतिहास सैकड़ों साल पुराना हैं जो शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहां प्रसाद के रूप मेें पूड़ी, गुड़ व चने की दाल से बनी रोठ मां ज्वाला देवी के दरबार में चढ़ाने की परम्परा कायम सदियों से कायम है। यहां चौबीसों घंटे ज्वाला देवी की अद्भुत ईट से अनवरत ज्वाला (दीपक) निकलती रहती हैं। नवरात्रि पर्व पर यहां मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पूजा और अर्चना के लिये उमड़ रही हैं।
जिले के सिसोलर थाना क्षेत्र का भंभई गांव एतिहासिक रूप से आज भी पूरे क्षेत्र में विख्यात हैं। ये गांव बांदा-मौदहा व सुमेरपुर-टिकरी मार्ग से चार किमी दूरी पर स्थित हैं। टैम्पो व निजी वाहनों से मौदहा अथवा सुमेरपुर से इस गांव तक जाने का मार्ग इन दिनों बारिश के कारण कठिन हो गया हैं। गांव तक पहुंचने के मार्ग जर्जर है इसके बाद भी देवी भक्त बड़े ही उत्साह के साथ पूजा अर्चना के लिये यहां मंदिर पहुंचते हैं। शादी विवाह और अन्य किसी मांगलिक कार्य सम्पन्न कराने को ज्यादातर लोग सुमेरपुर-टिकरी मार्ग से होते हुये भंभई गांव स्थित इस स्थान पर जाते हैं। गांव के बाहर मां ज्वाला देवी का पवित्र स्थान हैं जहां सिर्फ शक्तिपीठ की पूजा ही होती हैं। मंदिर में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं हैं। शक्तिपीठ में सिर्फ एक ईट रखी हैं जिसमें सैकड़ों साल का अतीत छिपा हैं। यह स्थान हमीरपुर, बांदा, महोबा, फतेहपुर व मध्यप्रदेश के कई इलाकों में विख्यात हैं। हर रोज दर्शन करने के लिये यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती हैं। तीज त्यौहारों में तो शक्तिपीठ में तिल रखने को भी जगह नहीं थी।
पूर्व ग्राम प्रधान दिनेश शुक्ला व महंत रतन ब्रह्मचारी ने सोमवार को बताया कि मां ज्वाला देवी के दरबार का इतिहास सैकड़ों साल पुराना हैं जहां प्रतिदिन पूजा अर्चना करने के लिये देवी भक्तों की भारी भीड़ जुटती हैं।
नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन सुबह से ही इस पवित्र स्थान में लोगों की भीड़ पूजा अर्चना के लिये उमड़ी है। गांव के लोग मंदिर के बाहर आने जाने वाले श्रद्धालुओं को मदद भी करते हैं ताकि उन्हें कोई दिक्कतें न उठानी पड़े। मंदिर में मां को परम्परागत प्रसाद अर्पित करने के बाद भक्त लोग अद्भुत ईट के दर्शन जरूर करते हैैं। क्योंकि यह ईट बड़ी ही चमत्कारी है जिसे ध्यान लगाकर मन्नतें मांगने पर मां ज्वाला देवी मनोकामना जरूर पूरी करती हैं।
गांव के बुजुर्ग आदित्य शुक्ला व पूर्व प्रधान दिनेश शुक्ला ने बताया कि मां ज्वाला देवी के दरबार का इतिहास कम से कम सात सौ साल पुराना है। हर एक की इस दरबार से मुरादें पूरी होती हैं। साल भर तक यहां बड़ी संख्या में लोग आते हैं। शक्तिपीठ में सिर्फ पूड़ी, गुड़ व चने की दाल से बनायी गयी रोठ ही प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता हैं। इस तरह के प्रसाद को चढ़ाने की परम्परा भी सैकड़ों सालों से चली आ रही हैं जो मौजूदा समय में भी कायम है।
पूर्व प्रधान दिनेश शुक्ला ने बताया कि गांव के भुर्जी जाति के एक बुजुर्ग व्यक्ति घर से चारो धाम की तीर्थयात्रा पर पैदल निकला था। उसे जंगल में एक संत मिल गये। बीहड़ केे बीच साधना में बैठे संत ने उसे अपने पास बुलाया और थोड़ा आराम करने के लिये कहा। संत की बात मानकर भुर्जी वहीं बैठ गया था। उसने देखा कि संत के पास एक दिव्य ईट रखी हैं जिसमें ज्वाला जल रही है। संत ने भुर्जी से कहा कि इस ईट से बड़ा कोई और तीर्थ नहीं होगा। ये विधि विधान से स्थापित भी हैं।