करवाचौथ व्रत नहीं भारत का उत्सव है अब

करवाचौथ व्रत नहीं भारत का उत्सव है अब
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विवेक कुमार पाठक

आसमान से निकलने वाले धवल चांद को शायद इतनी कशिश और बेइंतहा प्यार के साथ किसी और दिन न देखा जाता होगा। वो चांद जो रात्रि की कालिमा में आसमान का इकलौता सम्राट है। एक साथ दुनिया भर की सौभाग्यवतियों से अर्घ्य पाता चंद्रमा आज के दिन इठलाता तो होगा। सूरज अगर तेज का प्रदाता है तो चंद्रमा सुहाग का वर देकर करवाचौथ पर और अधिक बड़ा बन जाता है।

करथाचौथ का यह व्रत भारत के व्रतों में बहुत अधिक टीआरपी वाला हो चुका है कई दशक से। व्रत पहले भी हिन्दुस्तान में घर घर में विवाहिताएं रखतीं आयीं होंगी मगर नि संदेह मुंबइया सिनेमा ने करवाचौथ के चांद को आसमानी उंचाई दी है। सिनेमा के करवाचौथ के प्रेम में पगे गीत करवाचौथ को एक व्रत से बहुत अधिक त्यौहार सा बनाने वाले रहे हैं।

365 दिनों में लगभर हर पूर्णिमा और अमावस्या के बीच हिन्दू महिलाएं कई व्रत आए दिन रखती हैं। इनमें हरतालिका तीज जैसा कठिन व्रत भी है जो सुबह से शुरु होकर अगले दिन तक निर्जल रहकर पूरा होता है। धन्य हैं वे सनातनी महिलाएं जो मृत्युलोक में जन्मे पति को अजर अमर बनाने के लिए ऐसे व्रत रखते हुए निर्जल रात्रि जागरण भी करती हैं। करथाचौथ महिलाओं की व्रत परंपरा का संभवत आज सबसे लोकप्रिय व्रत हो चुका है। भारत में सदा सनातन काल से महिलाओं के लिए हिन्दू संस्कृति से लेकर वेद पुराण और लोकाचार ने कई व्रत निर्धारित किए हैं मगर उदारवाद के बाद भारतीय समाज में तीज त्यौहारों के कठिन अनुशासन पर भी उदारता सामने आयी है।

आधुनिक शिक्षा और गायज कल्चर ने बेटियों किशोरियों को अपनी मां जैसा बनने से रोका है। नए जमाने की बेटियां स्वतंत्रता की पक्षधर हैं और अब हर बात को परंपरा के नाम पर स्वीकार नहीं करती हैं। तर्क और चिंतन के इस युग में जब तमाम रीति रिवाज, हिन्दू संस्कार कहीं कहीं कुछ कुछ ओझल होते हैं ऐसे में करवाचौथ व्रत की अखिल भारतीय लोकप्रियता पूरे भारत ही नहींं अखिल विश्व को करवाचौथ के नाम पर एक कर रही है।

हिन्दुस्तान हो या सात समंदर पार लंदन और अमेरिका सब जगह करवाचौथ की धूम है। देश के तमाम बाजारों में करवाचौथ को लेकर एक उत्सवी वातावरण बना है। अखबारों में करवाचौथ पर पत्नी को उपहार सुबह से सुझाए गए हैं तो टीवी चैनल देश दुनिया की खबरों को जल्द निबटाकर करवाचौथ पर ज्ञान पेलकर भड़ाभड़ टीआरपी ले रहे हैं।

महिलाओं की साड़ियां, गहने, जेवरात से लेकर सौन्दर्य प्रसाधनों का बाजार दीपावली से पहले ही दीपावली करवाचौथ के सौजन्य से मनाता आया है। धन्य है वो व्रत जो खूबसूरती निखारने की कला की जादूगर महिला उद्यमियों को करवाचौथ पर रोजगार देता है। विवाहिताओं और मनवांक्षित वर की आकंक्षियों की हाथों में सजने वाली मेंहदी कई किशोरियों को करवाचौथ पर जमकर इनकम का अवसर देती है। और अरे केवल किशोरियां ही क्यों।

महाराज बाड़े पर देख आइए। नजर बाग के बाहर बैठे नए नए लड़के करवाचौथ की बंपर मेंहदी लगवाई लेकर अपनी दीपावली की गुल्लक भरते दिखेंगे। करवाचौथ व्रत का यह विहंगम स्वरुप सिनेमा ने बहुत हद तक गड़ा है इसमें कतई दो राय नहीं है। दिलवाले दुलहनियां ले जाएंगे फिल्म की सिमरन ने राज को पाने के लिए कैसे करवाचौथ का व्रत गजब आइडिए से खोला था अनगिनत भारतीयों को याद होगा।

शायद इसी फिल्म ने ही विवाहिताओं से भी दुगुनी प्रेरणा कुंवारी युवतियों को दी थी कि अगर बाबूजी और पिताजी को विलेन बनने रोकना है तो और राज जैसा आज्ञाकारी प्रेमिकाव्रता वर पाना है तो करवाचौथ के चांद को पूजा जाए। यशराज की फिल्म में वो करवाचौथ को समर्पित गीत कुछ इस कदर ब्लॉकबस्टर हुआ कि फिर तो करवाचौथ व्रत हर फिल्म का उत्सव बन गया। कभी खुशी कभी कभी गम, हम दिल दे चुके सनम, इश्क विस्क, बीबी हो तो ऐसी से लेकर तमाम फिल्में करवाचौथ के जरिए पति पत्नि का प्रेम समर्पण और संस्कारी रोमांस परदे पर दिखाने लगीं।

यह सिलसिला जारी है और इसके साथ ही करवाचौथ पर चंद्रमा का छोटे बड़े, गरीब अमीर कस्बा महानगर से लेकर देश विदेश जैसे तमाम भेदों को मिटाकार सौभाग्यदाता चंद्रदेव का पूजन भी निरंतर जारी है। ये पावन व्रत रिस्ते नाते और परिवारों का उल्लास दिखाता है। विवाहिताएं सालों साल इस निर्जला व्रत से सुहाग का वर मांगेंगी और अर्घ्य से तृप्त चंद्रदेव सबको सौभाग्य का वर देते रहेंगे।

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विवेक कुमार पाठक

स्वतंत्र पत्रकार

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