किसने कहा आज मेरा करवाचौथ है
बड़ी मनचली है मेरे शब्दों की कलम,
आज कर बैठी मेरे श्रृंगार का वर्णन।
बोली कहां है तुम्हारे आराध्य,
मैने कहा वो मेरा आराध्य नहीं
वो तो मेरी आराधना है।
वो बोली इतना गुमान
मंैने कहा नहीं वो तो मेरा स्वाभिमान है।
वो बोली सब कुछ उसी ने तो दिया है,
तूने क्या दिया एक उपवास बस।
में बोली हाँ अच्छा उपहास है,
अस्त्र शस्त्रों से परिपूर्ण हूँ में
मेरा सिंदूर शस्त्र की वो ताकत है जो हर नकारात्मक शक्ति से उनकी रक्षा करता है।
मेरी रंग बिरंगी चूडिय़ां उनकी जिंदगी में हर रोज रंग भरती हैं,
मेरा मंगलसूत्र हर क्षण मंगल कामनाएं करता है उनके लिए।
जो पैर में कभी बिछिया से सूने नहीं रखती,
वो सातो वचन की जिम्मेदारी निभाने की अटूट शक्ति देता है उन्हें।
पत्नी बहू भाभी मां ना जाने कितने रिश्तों से सजाया है उन्होंने,
हर रिश्ते में उन्हीं को पिरोके एक माला रोज बनाती हूँ मैं।
किसने कहा में एक दिन उपवास रखती हूँ मैं,
मैं तो हर रोज करवाचौथ मनाती हूँ।
जैसे वो दशहरा पर अपने शस्त्रों को पूजते हैं,
मैं भी बस वैसे ही आज अपने शस्त्रों को पूजती हूँ।
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श्रीमती जानवी रोहिरा
कवियत्री