राजनीति छोड़ देवी भागवत कर रहीं गुरुमाई संध्या ठाकुर, आखिरकार अध्यात्म का चुना रास्ता

राजनीति छोड़ देवी भागवत कर रहीं गुरुमाई संध्या ठाकुर, आखिरकार अध्यात्म का चुना रास्ता
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20 वर्ष पहले रहीं थीं पार्षद, अब अध्यात्म से बांट रहीं ज्ञान

ग्वालियर/वेब डेस्क। 20 वर्ष पहले नगर निगम में कांग्रेस की ओर से वार्ड 50 की पार्षद संध्या ठाकुर चुनी गई थीं। किन्तु उनका कार्यकाल पूर्ण होने के पहले ही उन्हें पार्षदी से हटा दिया गया। जिससे उनका मन विचलित हुआ और राजनीति को हमेशा के लिए छोडक़र आध्यात्म का रास्ता चुना। वैसे बचपन से ही उनका मन पढ़ाई के अलावा धार्मिक ग्रंथों को पढक़र उसे सबके बीच बांटने का रहा था तो उन्होंने आध्यात्म की राह चुनते हुए देवी भागवत के माध्यम से देश के कई शहरों में संगीतमय कथा का वाचन किया। जिसमें उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली और भत मंडली भी लगातार बढ़ती गई। वे कहती है कि राजनीति में कोई भी पद व्यासपीठ से बढक़र नहीं हो सकता। यहां आत्मिक सुख तो है ही, भक्तों की मनोदशा और उनको ईश्वर के दर्शन कराने में बड़ा आनंद है। इसलिए पार्षद के बाद कभी कोई चुनाव लडऩे की इच्छा नहीं हुई। यह कहना है कि ढोलीबुवा का पुल निवासी कथा वाचिका डॉ. संध्या ठाकुर का। वे इन दिनों नदी गेट स्थित माधव मंगलम पैलेस में कथा यजमान चन्द्रशेखर मोदी के परिवार के बीच देवी भागवत कर रही हैं।

दरअसल श्री मोदी के कोई पुत्र नहीं था और उन्होंने जब गुरुमाई के नाम से प्रख्यात डॉ. संध्या ठाकुर के यहां अर्जी लगाई और दो बेटी होने के सात वर्ष बाद पुत्र रत्न की प्राह्रिश्वत हुई तो मन्नत के अनुसार यह कथा कराई जा रही है। जिससे यजमान पूरी तन्मयता और आत्मीयता के साथ इस कथा में परिजनों सहित भाग ले रहे हैं। डॉ. ठाकुर कहती हैं कि उन्हें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भगवान सिंह यादव ने वर्ष 2000 में वार्ड 50 से कांग्रेस का टिकट दिलाया जिसमें उन्होंने भाजपा की विमला नन्हे सिंह को पराजित किया। किन्तु बाद में मामला अदालत में जाने के बाद ढाई वर्ष बाद वह पद से हटा दी गईं। इस दौरान उनके पति नरेश ठाकुर ही जनता की समस्याओं का निराकरण किया करते थे। वे कहती हैं कि पार्षद रहते काफी चर्चित रहीं किन्तु उससे अधिक चर्चित अब कथा के माध्यम से याति मिलने से हैं। इसलिए राजनीति उनके मन से दूर हो चुकी है।

मां की छवि बदलते ही सुनामी बदल गई

आज से पांच वर्ष पूर्व न्यूजर्सी और कैलीफोर्निया में मेरे भत मां देवी का सत्संग कर रहे थे। यह सत्संग हर गुरुवार और शुक्रवार को होता है। सुनामी आने की जानकारी मिलते ही वहां के प्रशासन ने मेरे भतों से कहा कि आप यहां से निकल जाओ नहीं तो मारे जाओगे। मेरे भतों ने कहा कि मरना तो हमें है ही, लेकिन मां को छोडक़र नहीं जाएंगे। इसके बाद सभी भतों ने अपना सत्संग शुरू कर दिया। इतने में जो माता का चित्र वहां लगा था उसकी छवि यकायक बदल गई और सुनामी का रास्ता भी बदल गया। इससे मेरे 25 हजार भत बच गए। ठीक ऐसा ही कोरोना को लेकर होगा।

बुद्धि और विवेक जाग्रत अवस्था में नहीं है

गुरुमाई संध्या जी ठाकुर ने कहा कि कई बार होता है कि जब हम प्रवचन सुनते हैं तो उस समय तो भाव-विभोर हो जाते हैं लेकिन घर जाकर सभी उपदेश भूल जाते हैं। इसका मुख्य कारण हमारी बुद्धि और विवेक जागृत अवस्था में नहीं है। ऐसे में हमें देवीय शक्ति की आवश्यकता है। इस देवी कथा को सुनकर जो इस पर अमल करेगा उसे लाभ अवश्य ही मिलेगा।

बाल्यावस्था से ही आध्यात्म की तरफ लगाव हुआ

मैं महाराष्ट्रीयन समाज से हूँ। हम सुदामावंशी ब्राह्मण हैं। मेरे पिताजी पं. एकनाथ सारूलकर ग्वालियर घराने के मूर्धन्य गायक थे। मेरा बचपन से ही आध्यात्म की तरफ लगाव हो गया था। मैं बचपन में जिससे जो कह देती थी, वह सत्य हो जाता था। इसलिए मेरे पिताजी इस बात को लेकर बेहद चिंतित रहते थे कि कहीं मेरी बेटी को कोई उठाकर न ले जाए।

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