राम तुमचा, राम आमचा, राम आहे सर्वांचा!
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राम तुमचा, राम आमचा, राम आहे सर्वांचा!
रामाचे चिंतन करून नाश करुया गर्वाचा !!
इस वर्ष की शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ शुद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, संवत् 2077, शनिवार तदनुसार 17अक्टूबर 2020 से हो रहा है। 16 अक्टूबर, शुक्रवार को आश्विन अधिकमास, अमावस्या के दिन पुरुषोत्तम मास की समाप्ति होगी। अधिकमास में हिंदू जनों द्वारा आस्था और भक्ति का अवलंबन लेकर भगवान श्रीकृष्ण से सम्बन्धित विभिन्न उत्सव, पर्व और पूरे वर्ष के त्यौहारों को इस एक माह में ही खूब उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। पुष्टिमार्गीय परम्परा को मानने वाले भक्तों का भाव भी देखने लायक होता है। बड़ी संख्या में कथा भागवत के आयोजन भी धूमधाम से होते हैं। परमात्मा की अहैतुकी कृपा से सभी कार्यक्रमों में भक्तजनों ने खूब आनंद लिया। कोविड 19 के संक्रमण से बचाव हेतु सभी सावधानियां रखते हुए, अपेक्षाकृत सीमित संख्या रहते हुए भी श्रद्धालु् जनों ने अपनी भाव भक्ति को प्रकट करने के इन अवसरों को वृथा नहीं जाने दिया।
शारदीय नवरात्रि पर्व भी भक्ति भाव से ईश साधना का सुंदर और दुर्लभ अवसर है। इसमें देवी मां भगवती की साधना के अलावा राम नाम और सीता राम जी का गुणगान, राम लीलाओं और रामचरितमानस का नवान्हपारायण पाठ, दुर्गासप्तशती आदि ग्रंथों के सुंदर पाठ, पुरश्चरण, जप, तप अनुष्ठान आदि होते हैं।
प्राय: हरेक हिंदू परिवार में बचपन से ही श्रेष्ठतम संस्कार, धर्ममय आचरण और उदारतावादी सकारात्मकता की घुट्टी बच्चों की परवरिश के समय से उन्हें पिला दी जाती है और तब वे बड़े होकर भी अपनी संस्कृति के उपवन की प्रेममयी फुलवारी में जीवन को विभिन्न रंगों से सजाते हैं। अपने अच्छे आचरण, लोकलुभावन व्यवहार और मानवीयता से ओतप्रोत स्वभाव की सुरभि को चहुं ओर फैलाते हुए समाज जीवन को सर्व आनन्दमय बना लेते हैं। दरअसल यही भारतीयता, हिंदूओं की आन बान और शान है। यही राममय होने का अवसर भी है। राम तत्व क्या है, इसे हम सबको समझने चाहिए। इस सम्बन्ध में सरल मराठी भाषा की निम्नलिखित पंक्तियां गुनगुनाई जा सकतीं हैं --
तुझ्या असण्यात राम असावा !
तुझ्या हसण्यात राम असावा !
सरळ साधे आयुष्य राम त्याचे नाव !
त्याग असे दुसर्यापरी रामाचे तेथे गाव !
शुद्ध चारित्र्यात राम आहे !
स्त्रीच्या पावित्र्यात राम आहे !
राम असतो सज्जनांच्या मनी !
राम असतो दिनदुबळ्यांचा धनी !
रामाच्या नामात पुरते जीवनसार !
राम सांभाळतो सगळा भार!
राम मनुजत्वाचा आदर्श, त्याला अनुसरावे !
रामचरित्राचे एकेक रत्न हृदयी भरावे!
राम मित्र, राम पति, पुत्रात राम हवा
सकळ विश्वात स्नेहसूत्रात राम हवा !
राम अभ्यासावा, राम आचरावा, रामासारखेच व्हावे एक वचनी, एक निष्ठ, दैवत हेच असावे!
खुद्द तो हनुमंत रामापुढे नमला!
अहंकारी दशानन अखेरीस दमला !
शत्रुलाही जिंकण्यास भाग पाडतो राम!
सत्कर्म करण्यास, भक्ता धाड़तो राम!
राम स्वत: काहीच मागत नाही!
नामाशिवाय त्याला काहीच लागत नाही !
राम तुमचा,राम आमचा, राम आहे सर्वांचा !
रामाचे चिंतन करून नाश करुया गर्वाचा !
राम की बात आए और महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा देवभाषा संस्कृत में रचित सद्ग्रंथ रामायण एवं गोस्वामी तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का नाम याद नहीं आए ऐसा भला कैसे हो सकता है ? वाल्मीकीय रामायण के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि उसके प्रणेता महर्षि वाल्मीकि जी ने समाधिजनित ऋतम्भरा प्रज्ञा द्वारा सभी वस्तुओं का तथा श्री राम, श्री लक्ष्मण, भगवती सीता आदि सभी पात्रों की सभी लीलाओं का पूर्णरूप से साक्षात्कार करके ही इस ग्रन्थ का प्रणयन किया। वे अलौकिक मुनि थे। उनमें यह क्षमता थी कि वे अपनी दिव्य गति के द्वारा सब वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त कर सकते थे। इसलिए उनके द्वारा रचित कालजयी ग्रंथ रामायण जी में आये वर्णनों को काल्पनिक नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस को भी काशीपति भगवान् भूत-भावन विश्वनाथ का आशीर्वाद प्राप्त है।
ये दोनों ही, वेद व पुराणों की तरह असंख्य हिंदू आस्थाओं का केंद्र होकर हमारी संस्कृति के प्रामाणिक ग्रंथ हैं। इसीलिए इनका पारायण और भक्ति भाव पूर्वक साधना इनके माध्यम से ईश साक्षात्कार तक करा सकती है, यह अनेक भक्तजनों के अनुभव में आया है।
प्रस्तुति : अकिंचन