खरमास में करें दान-पुण्य और उपासना
सूर्य जगत में तेज का प्रतीक व प्राणदाता हैं। शास्त्रोक्त मान्यता है कि सूर्यदेव की उपासना से यश, कीर्ति, वैभव, मान-सम्मान, ओजस, वर्चस व तेजस की प्राप्ति होती है। इसलिए सूर्य उपासना का बड़ा महत्व है। खरमास या मलमास सूर्य से संबंधित है, इसलिए इन दिनों में फल प्राप्ति हेतु सूर्य उपासना के साथ दान-पुण्य, पूजा, हवन, धर्म और उपासना का विशेष महत्व है। खरमास दिन 16 दिसंबर 2023 को सुबह करीब 10 बजे से एक मास के लिए शुरू होकर दिन रविवार 14 जनवरी 2024 रात्रि करीब 8 बजकर 57 मिनट तक रहेगा। 16 दिसंबर को करीब 10 बजे सूर्य वृश्चिक से निकलकर गुरू की राशि धनु राशि में प्रवेश करेंगे और धनु राशि से 14 जनवरी को निकलकर शनि के स्वामित्व वाली राशि मकर में प्रवेश करेंगे। जब सूर्य गुरू की राशि में होते हैं तो उस काल को गुर्वादित्य कहते हैं, जो शुभ कार्य हेतु वर्जित है। जिस दिन सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन धनु संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य देव जब भी राशि परिवर्तन कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो संक्रांति पड़ती है। 16 दिसंबर से शुरू हो रहे खरमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है, अन्यथा हानि होती है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक मांगलिक कार्यक्रम हेतु बृहस्पति ग्रह का बहुत महत्व है। जब गुरू बृहस्पति ग्रह सूर्य के नजदीक आते हैं तो बृहस्पति की सक्रियता न्यून हो जाती है, जिसे हम अस्त होना कहते हैं। इस अवस्था को खरमास या मलमास कहा जाता है। मलमास को मलिन मास माना जाता है। मान्यता है कि खरमास में यदि कोई प्राण त्याग करता है तो उसे निश्चित तौर पर नरक में निवास मिलता है। इसका उदाहरण महाभारत में मिलता है, जब भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे हैं। लेकिन खरमास के कारण वे अपने प्राण इस माह नहीं त्यागते। जैसे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, भीष्म पितामह अपने प्राण त्याग देते हैं। मलमास या खरमास में किसी तरह का कोई मांगलिक, शुभ कार्य न करें। जैसे शादी, सगाई, वधु प्रवेश, द्विरागमन, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, नए व्यापार का आरंभ आदि। खरमास में द्वार पर आये भिखारी व जरूरतमंद की सहायता व दान-पुण्य करें। मांस-मदिरा का सेवन न करें। वाद-विवाद में न उलझें। मांगलिक कार्यो के सिद्ध होने के लिए गुरू का प्रबल होना बहुत जरूरी है। बृहस्पति जीवन के वैवाहिक सुख और संतान देने वाला होता है।