सबको मनचाहा फल देने वाला पवित्र दिन है गोपाष्टमी, जानिए क्या है पौराणिक महत्व
वेबडेस्क। कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन भगवान का 'गोविन्द' नाम पड़ा । उसी समय से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है । कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की की पूजा की जाती है । इस दिन गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है । इस वर्ष 12 नवम्बर 2021 को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाएगा । इस दिन विशेष कर गौमाता के प्रति लोग अपनी कृतज्ञता और आभार को प्रकट करते हैं ।
इसी दिन इंद्र देव के कोप से लोगों को कृष्ण नें बचाया
पौराणिक मान्यता है कि देवताओं के राजा इंद्र ने नंद गांव के लोगों को पानी में डुबोने के लिए कई दिनों तक घनघोर बारिश की थी । इस दौरान कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण किया था । जिससे इंद्र देवता की बारिश का कोई असर गांव के लोगों पर नहीं पड़ा । आठवें दिन इंद्र देव को अपनी भूल का अहसास हुआ और वे प्रभु श्रीकृष्ण के पास क्षमा मांगने गए । तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है ।
इस दिन गायों को सुबह-शाम कराएं भोजन गौशाला में करें दान
गोपाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठने की कोशिश करें । इसके बाद गायों को गुड़-रोटी आदि देकर उन्हें भोजन कराएं और उनकी सेवा करें । उस दिन गायों की सेवा करने वाले ग्वालों को भी उपहार देकर सम्मान करना चाहिए । शाम को गायों का पूजन करके उन्हें फिर से कुछ खाने के लिए दें । इसके बाद गौमाता के चरणों की मिट्टी को माथे पर लगाकर प्रणाम करें । साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करें कि उन्हें गो-सेवा करने का यह अवसर बार-बार मिलता रहे ।
वैसे तो सनातन धर्म में गायों को विशेष महत्व दिया जाता है । लेकिन बहुत कम लोग ही गायों से जुड़े वो रहस्य जानते हैं जो हमारे ऋषि मुनि हमें बता कर गए है । आज के वैज्ञानिक भी गाय को एक अद्भुत प्राणी बता रहे हैं ।
गाय के रीढ़ में सर्वरोगनाशक गुण -
गाय के रीढ़ में सूर्यकेतू नाड़ी होती है, जिसमें सर्वरोगनाशक और सर्वविषनाशक गुण होते हैं । सूर्यकेतू नाड़ी जब सूर्य की रोशनी के संपर्क में आती है तो स्वर्ण का उत्पादन करती है. ये स्वर्ण गाय के दूध, मूत्र और गोबर में मिल जाता है । इस तरह गाय के मिलने वाले इन वस्तुओं का विशेष महत्त्व होता है । इसका इस्तेमाल रोजमर्रा के जीवन में हमारे पूर्वज करते आए हैं ।
ऑक्सीजन लेने और छोड़ने वाला एकमात्र प्राणी गाय -
ये वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध हो चुका है कि गाय एकमात्र ऐसा पशु है जो ऑक्सीजन लेती है और छोड़ती भी है । वहीं, मनुष्य सहित दूसरे प्राणी ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं । इस तरह गाय के आसपास रहने से ही ऑक्सीजन की भरपूर मात्रा पाई जा सकती है ।
सनातन परंपरा में सबसे पवित्र जीव -
वैदिक सनातन धर्म में गाय को सबसे पवित्र जीव माना गया है । वैदिक और पौराणिक मान्यता है कि गाय में अनेक देवी-देवताओं का वास होता है । पुराणों में कामधेनु का वर्णन मिलता है । देवासुर संग्राम के समय कामधेनु की उत्पत्ति देवता और असुरों के समुद्र मंथन के दौरान हुई थी । इसीलिये गोपाष्टमी की संध्या पर गाय की पूजा करने वालों को सुख समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है ।
वैदिक काल, व्राह्मण काल, आरण्यक काल, पौराणिक काल, रामायण काल, महाभारत काल किसी भी समय की बात करें तो गाय को घर में पालने की प्रथा रही है । गाय को चराने जाने से सभी परेशानियां दूर होकर मनचाहा फल भी मिलता है, जैसे राजा दिलीप ने गौ सेवा कर रघु को संतान रूप मे पाया । उन्हीं रघु के नाम पर रघुकुल हुआ इसी कुल में भगवान राम का जन्म हुआ ।
पौराणिक मान्यताओं में गायों का विशेष महत्व -
वैदिक सनातन धर्म में गाय को माता का स्थान प्राप्त है । वहीं, ऐसी भी मान्याता है कि गायों में 33 कोटि यानी 33 प्रकार के देवी-देवताओं का वास होता है । जिसमें 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र, और 2 अश्विन कुमार हैं ।
मुक्ति का मार्ग गाय
धर्म शास्त्रों के अनुसार आत्मा के विकास यात्रा में पशु-पक्षी की योनि से मुक्ति पाने का द्वार गाय से होकर ही जाता है । गरुण पुराण के अनुसार गाय योनि के बाद मनुष्य योनि में आना होता है ।गौ का माहात्म्य एवं महत्व बताने की आवश्यकता नहीं है तथा यह भी बताने का आवश्यकता नहीं है कि भगवान श्रीकृष्ण का अतिप्रिय 'गोविन्द' नाम गायों की रक्षा करने के कारण ही पड़ा। भागवत पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गौ-गौप-गौपियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण गौवर्धन पर्वत को धारण किए रहे। आठवें दिन इन्द्र की आंख खुली और वे अहंकार रहित होकर भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये ।
इसलिये कृष्ण का नाम पड़ा " गोविन्द"
कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन भगवान का 'गोविन्द' नाम पड़ा। उसी समय से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है । कार्तिक शुक्ल अष्टमी को प्रातः काल गौओं को स्नान कराये, गन्ध-पुष्पादि से उनका पूजन करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गौग्रास देकर उनकी परिक्रमा करे और थोड़ी दूर तक उनके साथ जाय तो सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती है ।