10 मार्च से लगेंगे होलाष्टक, जानिए क्यों वर्जित होते है शुभ कार्य
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वेबडेस्क। सनातन धर्म में होली पर्व का विशेष महत्व है। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, लेकिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से ही होलाष्टक लग जाते हैं। यानी होलिका दहन के आठ दिन पहले से होलाष्टक लग जाता है। इस बार होलाष्टक 10 मार्च से आरम्भ होंगे। फाल्गुन अष्टमी से होलिका दहन तक आठ दिनों तक होलाष्टक के दौरान मांगलिक और शुभ कार्य शास्त्रों में वर्जित बताए गए हैं।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार होलाष्टक शब्द होली और अष्टक से मिलकर बना है। इसका अर्थ है होली के आठ दिन। होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है और पूर्णिमा से आठ दिन पहले से होलाष्टक लग जाता है। होलाष्टक के आठ दिनों के बीच शुभ कार्य की मनाही होती है। उन्होंने बताया कि इस बार होलिका दहन 18 मार्च को होगा, इसलिए होलाष्टक होली से आठ दिन पहले यानी 10 मार्च से लग जाएंगे।
होलाष्टक लगने के कारण -
इसे लेकर एक कथा प्रचलित है कि असुरों का राजा हिरण्य कश्यप अपने बेटे प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करना चाहता था। इसके लिए उसने इन आठ दिन तक प्रहलाद को कठिन यातनाएं दीं। इसके बाद आठवें दिन अपनी बहन होलिका की गोद में प्रहलाद को बैठा कर जला दिया, लेकिन फिर भी प्रहलाद बच गए। इसलिए इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है और कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते। उन्होंने बताया कि हिरण्य कश्यप की बहन को आग से ना जलने का वरदान प्राप्त था, बावजूद इसके भगवान के भक्त को मारने के प्रयास में होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गयी। तभी से होलिका दहन की प्रथा का चलन हुआ। होलिका दहन असत्य पर सत्य व अश्रद्धा पर भक्ति की विजय का पर्व है।