अश्वमेध यज्ञ के समान फलदायी है जया एकादशी, इस बार चार शुभ योगों में मनाई जाएगी
वेबडेस्क। भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं। कहीं-कहीं इसे जया एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि पुराणों में अजा एकादशी को जया एकादशी भी कहा गया है। इस बार यह व्रत 23 अगस्त, मंगलवार को किया जाएगा। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि इस दिन भगवान विष्णु के उपेन्द्र रूप की पूजा और अराधना की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा करने से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप और दोष समाप्त होते हैं। एकादशी तिथि 22 को है लेकिन व्रत 23 को करना है क्योंकि मंगलवार को एकादशी तिथि सूर्योदय के पहले और बाद तक रहेगी। द्वादशी तिथि के साथ होने से इसी दिन व्रत करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। ये दोनों तिथियां भगवान विष्णु को प्रिय है इसलिए भगवान विष्णु की उपासना के लिए 23 अगस्त अत्यन्त शुभ रहेगा।
कई पुराणों में इस व्रत की महिमा प्राप्त होती है, भगवान शिव ने महर्षि नारद को उपदेश देते हुए कहा कि जया एकादशी महान पुण्य देने वाला व्रत है। श्रेष्ठ लोगो को इसका अनुष्ठान करना चाहिए। इसी व्रत को करने से राजा हरिशचंद्र को अपना राज्य वापस मिल गया था और उनका मृतक पुत्र फिर से जीवित हो गया था।
डॉ तिवारी के अनुसार इस तिथि पर विष्णु जी के लिए व्रत-उपवास और विशेष पूजा की जाती है। पूजा के साथ ही कुछ और पुण्य कर्म भी हैं जो इस व्रत के साथ करने की परंपरा है। इस दिन जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करें, मंदिर में पूजन सामग्री भेंट करें, ध्यान करें, तीर्थ दर्शन और पवित्र नदियों में स्नान भी कर सकते हैं।
जया एकादशी व्रत कैसे करें
ज्योतिषाचार्य तिवारी ने कहा कि इस दिन जल्दी उठना चाहिए। फिर घर की साफ-सफाई के बाद पूरे घर में गौमूत्र का छिड़काव करें। उसके बाद शरीर पर तिल और मिट्टी का लेप लगा कर कुशा से स्नान करें। नहाने के पानी में गंगाजल जरूर मिलाएं। नहाने के बाद भगवान विष्णु जी की पूजा करें। दिनभर नियम संयम के साथ रहते हुए रात में जागरण और भगवान विष्णु के भजन-कीर्तिन की परंपरा है।
अजा एकादशी की पूजा विधि
घर में पूजा के स्थान पर या पूर्व दिशा में किसी साफ जगह पर गौमूत्र छिड़ककर वहां गेहूं रखें। फिर उस पर तांबे का कलश रखें। कलश को जल से भरें और उसपर आम का पल्लव रखें फिर उस पर नारियल रख दें। इस तरह कलश स्थापना करें। फिर कलश पर या उसके पास विष्णु भगवान की मूर्ति रखकर कलश और भगवान विष्णु की पूजा करें। और दीपक लगाएं। इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें और अगले दिन तक कलश की स्थापना हटा लें। फिर उस कलश का पानी पूरे घर में छिड़क दें और बचा हुआ जल तुलसी में डाल दे। इस दिन इस व्रत की कथा भी सुनना चाहिए विष्णु भगवान के एक हजार नाम का पाठ भी करना चाहिए ।