प्रेम व भक्ति के माध्यम से ईश्वर का दर्शन संभव

प्रेम व भक्ति के माध्यम से ईश्वर का दर्शन संभव
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एक राज्य के राजा ने जिद पकड़ ली कि उसे ईश्वर के दर्शन करने हैं, और राजा ने इसके बारे में दरबारियों से उपाय माँगा कि किस प्रकार ईश्वर का दर्शन किया जाए। दरबारियों ने जवाब दिया कि महाराज यह कार्य तो मंत्री जी ही कर सकते हैं। तो फिर क्या था, राजा ने यह कार्य मंत्री जी को सौप दिया, और मंत्री से कहा कि हमें ईश्वर के दर्शन कराया जाये, नहीं तो मंत्री जी को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। मंत्री बेचारे घबरा गए, उन्होंने राजा से एक माह की मोहलत मांगी।

दिन बीतते गए परन्तु बेचारे मंत्री को कुछ उपाय ही नहीं सूझ रहा था, चिंता में अपना खाना-पीना भी कम कर दिए थे,

मंत्री की पत्नी ने अपने पति की इस हालत को देखते हुए उन्हें ये सलाह दी कि आप किसी संत के पास चले जाएँ, शायद समस्या का कोई हल मिल जाये। फिर क्या था मंत्री संत की तलाश में निकल गए, तलाश करते-करते कई दिन गुजर गए पर ऐसा कोई नहीं मिला जो उसकी समस्या का हल कर पाता। एक दिन वह जंगल के पास से गुजर रहे थे, गर्मी और धूप इतनी थी कि वे थके हारे और चिंता में डूबे, सुस्ताने के लिए एक पेड़ के छांव के नीचे बैठ गए और उसकी आँख लग गयी। कुछ देर बाद किसी ने मंत्री को जगाया, मंत्री ने आँख खोल कर देखा तो सामने एक संन्यासी खड़ा हुआ है। संन्यासी को पानी चाहिए था सो मंत्री ने पानी दिया। संत से मंत्री के चिंतित चेहरे को देखते हुए पूछा कि क्या बात है तुम बहुत उदास दिखाई दे रहे हो। इस पर मंत्री महोदय ने संत को सारी बात बता दी। मंत्री की बात सुनकर संत ने कहा कि आप चिंता ना करें, मुझे अपने साथ ले चलें, मैं आपके राजा को ईश्वर के दर्शन करा दूंगा।

मंत्री की तो मानों सारी चिंताए समाप्त हो गयी। उसने संत से पूछना चाहा कि आप राजा को ईश्वर के दर्शन किस प्रकार कराओगे, परन्तु संत ने कहा कि वह स्वयं दरबार में चलकर राजा को उत्तर देंगे। फिर मंत्री संत को लेकर राजा के दरबार में पंहुचा और राजा से निवेदन किया कि महाराज यह महात्मा आपको ईश्वर के दर्शन करा देंगे। राजा ने प्रसन्ता से उस महात्मा का स्वागत किया। फिर महात्मा ने राजा से एक बड़ा सा पात्र मंगवाया जिसमे कच्चा दूध भरा हुआ था। महात्मा ने कहा की राजन अभी आपको ईश्वर के दर्शन करा देता हूँ। और ऐसा बोलकर उस पात्र के दूध को चम्मच से हिलाने लगे तो राजा ने महात्मा से पूछा कि आप क्या कर रहें है।

महात्मा बोले दूध से मक्खन निकालने की कोशिस कर रहा हूँ। यह बात सुनकर राजा अचरज में पड़ गए, और महात्मा से बोला की मक्खन ऐसे थोड़ी निकलता है, पहले दूध को गर्म करना पड़ता है, फिर दही जमानी पड़ती है और फिर उसे बिलोकर उसमें से मक्खन निकालना पड़ता है। राजा की इस बात पर महात्मा बोले की राजन जिस प्रकार दूध से सीधा मक्खन नहीं निकाला जा सकता ठीक उसी प्रकार ईश्वर के सीधे-सीधे दर्शन नहीं हो सकते। इसके लिए योग, भक्ति, शरीर और मन विचार को शुद्ध करना पड़ता है, और फिर जप तप और साधना से तपाना पड़ता है। फिर प्रेम व भक्ति के माध्यम से ईश्वर का दर्शन संभव है।

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