होली पर क्यों लगाया जाता है एक-दूजे को रंग, कैसे हुई शुरुआत, जानिए

होली पर क्यों लगाया जाता है एक-दूजे को रंग, कैसे हुई शुरुआत, जानिए
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पौराणिक कथा में होली का महत्त्व

वेबडेस्क। होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली रंगो का हँसी - ख़ुशी का त्यौहार है। होलिका दहन के साथ इस त्यौहार का आगमन किया जाता और प्रतिपदा तिथि को रंग वाली होली खेली जाती है। जो इस वर्ष होली का पर्व 08 मार्च 2023 बुधवार के दिन मनाया जायेगा जहां एक तरफ होलिका को दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। वही होली को खुशियों के उत्सव के रूप में देशभर में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर गुलाल और अबीर से होली खेलते है।

भगवान श्री कृष्ण की नगरी ब्रज में इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां होली पर्व की शुरुआत 40 दिन पहले से हो जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि रंग वाली होली की शुरुआत कब हुई थी? आइए आज हम जानेंगे इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा और वैज्ञानिक कारण।

कैसे हुई थी रंग वाली होली की शुरुआत?

होली की शुरुआत से जुडी पौराणिक कथा एवं पुराणों के अनुसार रंग वाली होली खेलने का संबंध भगवान श्रीकृष्ण और ब्रज की किशोरी राधा रानी से है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण ने ग्वालों के संग मिलकर होली खेलने की प्रथा शुरू की थी। यही कारण है कि आज भी ब्रज में धूमधाम से होली खेली जाती है। लड्डू होली, फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंग और अबीर की खेली जैसे कई नामों से इस उत्सव को मनाया धूमधाम से जाता है। होली का त्यौहार आकर्षण और मनोरम रंगो का त्यौहार है यह एक ऐसा त्यौहार है जो हर धर्म , संप्रदाय ,जाती के बंदन की सीमा से परे जाकर लोगो को भाई - चारे का सन्देश देता है

पौराणिक कथा

प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का रंग सांवला था और राधा रानी गोरी थीं। इस बात की शिकायत श्री कृष्ण ने मैया यशोदा से कई बार की और मैया उन्हें समझा-बुझाकर टालती रहीं। लेकिन जब वह नहीं माने तो मैया ने यह सुझाव दिया कि जो तुम्हारा रंग है, उसी रंग को राधा के चेहरे पर भी लगा दो। तब तुम्हारा और राधा का रंग एक जैसा हो जाएगा। नटखट कृष्ण को मैया का यह सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने मित्र ग्वालों के संग मिलकर कुछ अनोखे रंग तैयार किए और ब्रज में राधा रानी को रंग लगाने पहुंच गए। श्री कृष्ण ने साथियों के साथ मिलकर राधा और उनकी सखियों को जमकर रंग लगाया। ब्रज वासियों को उनकी यह शरारत बहुत पसंद आई और तब से रंग वाली होली का चलन शुरू हो गया। जिसे आज भी उसी उत्साह के साथ खेला जाता है।

होली पर्व का वैज्ञानिक महत्व

जैसा कि हम जानते हैं कि रंग वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि पवित्र अग्नि जलाने से वातावरण शुद्ध हो जाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही इससे कई कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और होलिका दहन की अग्नि से नई ऊर्जा का प्रभाव वातावरण में फैल जाता है, जिसस शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। वही वैज्ञानिको का यह भी मानना है कि रंगो का हमारे स्वास्थ पर इनका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योकि रंग हमारे शरीर और मानसिख स्वास्थ्य पर कई तरीको से असर डालते है।

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