गणेश चतुर्थी विशेष : किस दिशा की सूंड वाले गणेश जी घर पर लाएं ?

गणेश चतुर्थी विशेष : किस दिशा की सूंड वाले गणेश जी घर पर लाएं ?
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ग्वालियर/स्वदेश वेब डेस्क देवताओं ने गणेश जी को सर्वप्रथम पूजा का अधिकारी माना गया है, इसलिए गणेश जी की आराधना हर किसी के लिए फलदायी होती है। चाहें ये पूजा घर में की जाए या दुकान में या मंदिर में। लेकिन गणेश जी सूंड की दिशा को लेकर हमेशा भ्रम की स्थिति बनी रहती है लेकिन हम आपको यहाँ बताएंगे कि गणेशजी की सूंड की दिशा हमें क्या फल देती है।

शंकर पार्वती के पुत्र श्रीगणेश को भी भगवान भोलेनाथ की तरह ही जल्दी प्रसन्न हो जाने वाला भगवान जाता है। इसलिए गणेश चतुर्थी पर गणपति बप्पा मोरया की गूंज के साथ 10 दिनों का उत्सव पूरे देश में होता है। महाराष्ट्रवासियों के लिए तो ये उत्सव सबसे बड़ा उत्सव है इसके अलावा उत्तर भारत के कई राज्यों में भी गणेश उत्सव की धूम रहती है।

स्थापना से पूर्व गणेश जी की मूर्ति की भव्यता के साथ साथ लोग गणेश जी की प्रतिमा और चित्र पर बनी उनकी सूंड की दिशा को भी देखते हैं । गणेश जी की जो भी प्रतिमा या चित्र आपने देखा होगा उसमें तीन अलग अलग दिशाओं में सूंड दिखाई दी होगी, सीधी , दाईं और बाईं ओर घूमी सूंड। जानकारों की राय के अनुसार श्रीगणेश जी की सूंड किसी भी दिशा में घूमी हुई हो वो प्रथम पूजा के अधिकारी हैं कल्याणकारी और फलदायी हैं।

दाईं ओर घूमी सूंड वाले गणेश हैं सिद्धि विनायक

गणेश जी की जिस प्रतिमा में सूंड का आगे का भाग दाईं ओर घूमा अर्थात सूंड गणेश जी की दाईं भुजा की तरफ हो उसे दक्षिणमुखी कहते हैं। दाईं भुजा सूर्य नाड़ी को दर्शाती है। और जिसकी सूर्य नाड़ी अधिक कार्यरत होती है वो अधिक शक्तिशाली और तेजस्वी होता है। इसी तथ्य को आधार मानकर दाईं भुजा वाले गणपति को जागृत और तेजस्वी माना गया है। दाईं भुजा वाले गणपति को सिद्धि विनायक कहा जाता है। इनकी पूजा में कर्मकांड का विशेष ध्यान रखा जाता है। पूजा करने वाला व्यक्ति सूती वस्त्र नहीं पहन सकता उसे रेशमी वस्त्र धारण आकर पूजा करनी होती है। दक्षिणमुखी गणेश की पूजा में घरों में विधि विधान पूरा नहीं किया जा सकता है इसलिए ऐसी मूर्ति को घर में रखना प्रतिबंधित बताया गया है ऐसी प्रतिमा का सर्वोत्तम स्थान मंदिर बताया गया है।

दाईं ओर घूमी सूंड वाले गणेश हैं वक्रतुण्ड

गणेश जी की जिस मूर्ति में सूंड बाईं ओर घूमी हुई होती है अर्थात सूंड भगवान की बाईं भुजा की तरफ हो उसे वाममुखी कहते हैं। इन्हें वक्रतुण्ड भी कहते हैं। वाम भाग चंद्र नाड़ी का होता है और उत्तर दिशा पर प्रभाव रखता है जो शीतलता का प्रतीक है। पूर्व दिशा के अतिरिक्त उत्तर दिशा भी पूजा के लिए शुभ मानी गई है इसलिए घरों में वाममुखी गणपति की स्थापना की सलाह जानकार देते हैं। वाममुखी गणेश जी की पूजा अर्चना गृहस्थ लोगों के लिए विशेष फलदायी मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि वक्रतुण्ड साधारण पूजा विधि से ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और त्रुटि हो जाने पर भी कभी क्रोधित नहीं होते ।

सीधी सूंड वाले गणेश जी

जिस गणेश प्रतिमा में सूंड सीधी होती है उसकी पूजा साधु, सन्यासी या कर्मकांडी करते हैं। ऐसी प्रतिमा को सुष्मना नाड़ी पर प्रभाव रखने वाला माना गया है। इनकी पूजा रिद्धि सिद्धि, कुण्डलनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है।

गणेश जी प्रतिमा की स्थापना से पहले कुछ और बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक है। जानकर मानते हैं कि जिस मूर्ति की स्थापना हो उसमें गणेश जी अपने वाहन मूषक (चूहे) पर विराजे हों और उनके हाथों में एकदन्त, अंकुश और मोदक होना चाहिए साथ ही चौथा हाथ आशीर्वाद अर्थात वरदान मुद्रा में होना चाहिए।

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