'जीवित्पुत्रिका' या 'जिउतिया' व्रत के लिए इस मुहूर्त पर करें पूजा, जानें पूरी विधि

जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत के लिए इस मुहूर्त पर करें पूजा, जानें पूरी विधि
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नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। हिन्दू धर्म में मनोकामनाओं को पूर्ण करने या फिर किसी की लंबी एवं स्वस्थ जिंदगी की कामना करने के लिए कई सारे व्रत हैं। इन्हीं में से एक है जीवित्पुत्रिका या जिउतिया पर्व को हिन्दू धर्म में महिलाएं पूरी श्रद्धा और भाव से मनाती है। संतान की लंबी आयु और मंगलकामना के लिए आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक पूजा की जाती है। जिसमें अष्टमी तिथि के निर्जला व्रत का सबसे ज्यादा महत्व है, जो कि कल यानि 2 अक्टूबर को किया जाएगा।

शुभ मुहूर्त - 2 अक्टूबर 2018 को अष्टमी तिथि सुबह 4 बजकर 9 मिनट से शुरू होकर 3 अक्टूबर 2018 अष्टमी तिथि सुबह 2 बजकर 17 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।

जानें, क्या है मान्यता?

यह व्रत आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आता है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपनी संतान की आयु, आरोग्य तथा उनके कल्याण हेतु पूरे विधि-विधान से किया जाता है। यदि आप क्षेत्रीय संदर्भ से देखें तो इस व्रत के कई अन्य नाम आपको मिलेंगे, जैसे कि 'जीतिया' या 'जीउतिया' तथा 'जिमूतवाहन व्रत', आदि। मिथिलांचल तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस व्रत की बहुत मान्यता है।

जिउतिया व्रत की पौराणिक कथा

गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।

इसलिए करते हैं ये व्रत

यही कारण है कि तभी से पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की जाती है एवं महिलाएं पूर्ण विधि-विधान से व्रत भी करती हैं।

जिउतिया व्रत रखने की विधिः

इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया-पिया जाता है। सूर्योदय के बाद आपको कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है।

इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है तीखा भोजन करना अच्छा नहीं होता।

जिउतिया व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता। इसलिए यह निर्जला व्रत होता है। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है जिसके बाद आप कैसा भी भोजन कर सकते है।

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