पुराणों के अनुसार जानिए श्राद्ध का महत्व

पुराणों के अनुसार जानिए श्राद्ध का महत्व
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नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। धर्म ग्रंथों के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक श्राद्ध मनाया जाता है। श्राद्ध शुरु हो चुका है और इसके साथ ही पितरों यानी पूर्वजों को सम्मान देने के लिए तर्पण शुरु हो जाता है। कहा जाता है इस समय 16 दिनों के लिए पूर्वज धरती पर आते हैं इस लिए तर्पण करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इस समय पितरों के अलावा कई और लोगों को भोजन कराया जाता है जिसमें ब्राह्मण, गाय, श्वान और कैवे के लिए भोजन कराया जाता है। पितृ पक्ष में कौवे के भोजन कराने का क्या महत्व है, जानिए

कुर्मपुराण : कुर्मपुराण में कहा गया है कि 'जो प्राणी जिस किसी भी विधि से एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुनः संसार चक्र में नहीं आता।

गरुड़ पुराण : इस पुराण के अनुसार 'पितृ पूजन (श्राद्धकर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।

मार्कण्डेय पुराण : इसके अनुसार 'श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।

ब्रह्मपुराण : इसके अनुसार 'जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता।' साथ ही ब्रह्मपुराण में वर्णन है कि 'श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यावस्था में ही मर गए हों, वे सम्मार्जन के जल से तृप्त हो जाते हैं।


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