श्राद्ध पक्ष करने की जाने पूरी विधि विधान, भूलकर न करें यह काम
नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के साथ ही कल से श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहे है। इस बार श्राद्ध पक्ष 24 सितम्बर से शुरू होकर आठ अक्टूबर सोमवार तक रहेंगे। यह समय पितरों को याद करके उनसे आशीर्वाद लेने का है और यह सोलह दिन के लिए हमारे पितृ घर में विराजमान होंगे। अपने वंश का कल्याण करेंगे। घर में सुख-शांति-समृद्धि प्रदान करेंगे। जिनकी कुंडली में पितृ दोष हो, उनको अवश्य अर्पण-तर्पण करना चाहिए। वैसे तो सभी के लिए अनिवार्य है कि वे श्राद्ध करें। श्राद्ध करने से हमारे पितृ तृप्त होते हैं। सोमवार को पूर्णिमा है। जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा को हुई है, वे सवेरे तर्पण करें और मध्याह्न को भोजनांश निकालकर अपने पितरों को याद करें।
ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश सोनी के अनुसार, पूर्णिमा का श्राद्ध सोमवार को प्रात: 7.17 बजे से पूर्णिमा का प्रारम्भ हो जाएगा। इसके बाद आप पूर्णिमा का श्राद्ध कर सकते हैं। अश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष को समर्पित है। इन सोलह दिनों में हमारे पूर्वज हमारे घरों पर आते हैं और तर्पण मात्र से ही तृप्त होते हैं। श्राद्ध पक्ष का प्रारम्भ भाद्रपद मास की पूर्णिमा से होता है।
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के समय सूर्य कन्या राशि में स्थित होता है। सूर्य के कन्यागत होने से ही इन 16 दिनों को कनागत कहते हैं।
पितरों के प्रति तर्पण अर्थात जलदान पिंडदान पिंड के रूप में पितरों को समर्पित किया गया भोजन ही श्राद्ध कहलाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश सोनी के अनुसार, शास्त्रों में तीन ऋणों का उल्लेख है इन ऋणों में देव, ऋषि और पितृ ऋण और कृषि ऋण है जिनसे हमे मुक्त होना चाहिए। इन तीन ऋणों से मुक्त होने के लिए श्राद्ध कर्म है। उन्होंने बताया कि इन दिनों में अपने पूर्वजों का स्मरण करने और उनके मार्ग पर चलने और सुख-शांति की कामना ही वस्तुत: श्राद्ध कर्म है।
पूर्णिमा श्राद्ध का समय ( सोमवार)
कुतुप मुहूर्त = 11:48 से 12:36 तक
रोहिण मुहूर्त = 12:36 से 13:24 तक
अपराह्न काल = 13:24 से 15:48 तक
किसके लिए : जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो।
(पूर्णिमा तिथि 24 सितंबर को 7.17 से प्रारम्भ होकर 25 सितंबर को 8.22 पर समाप्त होगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार श्राद्ध में उदय तिथि का महत्व नहीं होता अपितु तिथि की उपस्थिति महत्वपूर्ण होती है। जिस दिन मृत्यु हुई हो, उस तिथि का महत्व है। तिथि पर सवेरे तर्पण और दोपहर को भोजन कराया जाना चाहिए। )
हम आपको बता दे कि इन दिनों में अपने पूर्वजों का स्वरुप मानकर पंडितो, गरीब एवं असहाय लोगों को भोजन कराया जाता है। पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का अंश निकालें (इसमें भोजन की समस्त सामग्री में से कुछ अंश डालें)
फिर किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लें। कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण करें। ऊं पितृदेवताभ्यो नम: पढ़ते रहें।
बाएं हाथ में जल का पात्र लें और दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की तरफ करते हुए उस पर जल डालते हुए तर्पण करते रहें।
वस्त्रादि जो भी आप चाहें पितरों के निमित निकाल कर दान कर सकते हैं।
अगर आप यह सब न कर सकें तो
दूरदराज में रहने वाले, सामग्री उपलब्ध नहीं होने, तर्पण की व्यवस्था नहीं हो पाने पर एक सरल उपाय के माध्यम से पितरों को तृप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाइए। अपने दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की ओर करिए। 11 बार पढ़ें..ऊं पितृदेवताभ्यो नम:। ऊं मातृ देवताभ्यो नम: ।
भूलकर न करें यह काम
जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन तेल और साबुन का प्रयोग न करें।
इन पंद्रह दिन शेविंग न करें।
जहां तक संभव हो, नए वस्त्र न पहनें
तामसिक भोजन न करें। तामसिक होने के कारण ही इनको निषिद्ध किया गया है।
यह भी ध्यान रखें
पुरुष का श्राद्ध पुरुष को, महिला का श्राद्ध महिला को दिया जाना चाहिए
यदि पंडित उपलब्ध नहीं हैं तो श्राद्ध भोजन मंदिर में या गरीब लोगों को दे सकते हैं
यदि कोई विषम परिस्थिति न हो तो श्राद्ध को नहीं छोड़ना चाहिए। हमारे पितृ अपनी मृत्यु तिथि को श्राद्ध की अपेक्षा करते हैं। इसलिए यथा संभव उस तिथि को श्राद्ध कर देना चाहिए।
यदि तिथि याद न हो और किन्हीं कारणों से नहीं कर सकें तो पितृ अमावस्य़ा को अवश्य श्राद्ध कर देना चाहिए।
पितरों को क्या प्रिय है और क्या अप्रिय
-प्रिय
कुश, उड़द, साठी चावल, जौ, गन्ना, मूंग, सफ़ेद फूल, शहद, गाय का दूध एवं घी ये वस्तुएँ पितरों को सदा प्रिय हैं अतः श्राद्ध में इनका उपयोग करें ।
-अप्रिय
मसूर, मटर, कमल, बिल्व, धतूरा, भेड़-बकरी का दूध इन वस्तुओं का उपयोग श्राद्ध में न करें ।
श्राद्ध करने के होते हैं ये नियम, जानिए सबकुछ यहां
श्राद्ध की तिथियां
24 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर - प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर - द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर - तृतीय श्राद्ध
28 सितंबर - चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर - पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर - षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर - सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर - अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर - नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर - दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर - एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर - द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर -त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर - सर्वपितृ अमावस्या
-श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें l
मंत्र ध्यान से पढ़े -
ll देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च l
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव भवन्त्युत ll
(समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं l ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं l)
-श्राद्ध के दिन भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्मय पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए।
यह करें उपाय
यदि कुंडली में प्रबल पितृ दोष हो तो पितरों का तर्पण अवश्य करना चाहिए। तर्पण मात्र से ही हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं। वे हमारे घरों में आते हैं और हमको आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यदि कुंडली में पितृ दोष हो तो इन सोलह दिनों में तीन बार एक उपाय करिए। सोलह बताशे लीजिए। उन पर दही रखिए और पीपल के वृक्ष पर रख आइये। इससे पितृ दोष में राहत मिलेगी। यह उपाय पितृ पक्ष में तीन बार करना है।