30 मई को साल की अंतिम सोमवती अमावस्या, शनि जयंती और वटसावित्री व्रत का शुभ योग

30 मई को साल की अंतिम सोमवती अमावस्या, शनि जयंती और वटसावित्री व्रत का शुभ योग
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वेबडेस्क। 2022 की अंतिम सोमवती अमावस्या होगी। इसी दिन वट सावित्री व्रत करने का विधान है, इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पीपल के पेड़ की परिक्रमा करती हैं। इसीलिए शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गयी है। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि साल के अंतिम सोमवती अमावस्या के दिन सुकर्मा व धृति योग का शुभ संयोग बन रहा है। इस साल 2022 में पहली सोमवती अमावस्या 31 जनवरी को थी और दूसरी सोमवती अमावस्या 30 मई को पड़ रही है। इसके बाद इस साल कोई भी सोमवती अमावस्या नहीं आएगी। जिसके कारण इस अमावस्या का महत्व और बढ़ रहा है। ज्योतिष शास्त्र में सुकर्मा योग को शुभ योगों में गिना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस योग में किए गए कार्यों में सफलता जरूर मिलती है। यह योग भी 30 मई को हो रहा है। सोमवती अमावस्या के दिन धृति योग किसी भवन एवं स्थान का शिलान्यास, भूमि पूजन या नींव पत्थर रखने के लिए उत्तम माना गया है।

सौभाग्य की प्राप्ति के लिए होता है पूजन -

डॉ तिवारी के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिनें पीपल के वृक्ष की पूजा करती हैं। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शंकर की विधिवत पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा करने से चंद्रमा मजबूत होता है। दिवंगत पूर्वजों के नाम का तर्पण व दान करना शुभ माना जाता है।

सोमवती अमावस्या तिथि

अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 29 मई रविवार, दोपहर 2:54 से

अमावस्या तिथि समाप्त - 30 मई ,2022, सोमवार शाम 4:59 पर

सारे व्रतों में वट सावित्री सर्वाधिक प्रभावी

ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले सारे व्रतों में वट सावित्री व्रत को प्रभावी माना जाता है। जिसमें सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सभी प्रकार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर परिक्रमा कर पति के लंबे उम्र की कामना की जाती है। इस व्रत में सत्यवान और सावित्री की कथा का श्रवण किया जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि देव का जन्म ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को हुआ था । हर वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है । इस बार की जयंती अत्यंत शुभदायक है । डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार शनि देव का जन्म हुआ था, तो वे काले रंग के थे । इसका कारण यह था कि माता छाया ने उनके गर्भ के समय भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिसका प्रभाव शनि देव पर भी पड़ा. इस वजह से वे श्याम वर्ण के हो गए । उनके श्याम वर्ण होने के कारण पिता सूर्य देव ने पत्नी छाया पर संदेह किया था, तो शनि देव के क्रोध के परिणाम स्वरूप सूर्य देव काले हो गए थे और उनको कुष्ठ रोग हो गया था । शनि देव ने भगवान शिव को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया था कि वे लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देंगे । इस बार शनि जयंती पर आप शनि देव को प्रसन्न करके साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी ।

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