नहाय-खाय के साथ कल से शुरू होगा महा छठ पर्व, जानिए पूजन विधि और महत्व
नहाय-खाय के साथ कल से शुरू होगा महा छठ पर्व
नईदिल्ली। सूर्योपासना का चार दिवसीय छठ पूजा-सूर्य षष्ठी की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि 17 नवंबर नहाय खाय के साथ होगी। छठ पूजा को लेकर बांस से बने सूप और अन्य सामग्रियों की मांग को लेकर बाजारों में मांग बढ़ गई है। लोग छठ को लेकर खरीददारी कर रहे हैं। इस वर्ष भी बांस के बने सूप का मूल्य बढ़ गए हैं। छठ पूजा में बांस से बने सूप और टोकरी का अपना महत्व होता है। हिंदू पंचाग के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ होगी, 18 नवंबर को खरना, 19 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य, 20 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिए जाने के साथ ही छठ पर्व का परायण होगा।
उल्लेखनीय है कि छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। यही एकमात्र ऐसा त्योहार है, जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। वैसे भी हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। सभी वैदिक-धार्मिक अनुष्ठानों की शुरुआत में पंचदेवता की पूजा होती है, जिनमें सूर्य भी एक हैं। छठ महापर्व में भी सूर्यदेव के लिए व्रत किया जाता है और उनकी पूजा होती है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छठ का यह व्रत संतान-प्राप्ति एवं उनके सुखी एवं स्वस्थ जीवन के लिए किया जाता है। हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि से चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत होती है।
सूर्यदेव की पूजा -
छठ महापर्व में मुख्यत: सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता हैं, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती है और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही स्थानीय भाषा में छठी मैंया कहा जाता है।
छठ महापर्व की कथा -
छठ पर्व का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक कथा के अनुसार प्रथम मानव स्वयंभू मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे दु:खी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया। इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दु:खी थे। तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। जब राजा ने उनसे प्रार्थना की, तो उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और नि:संतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं। इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ही छठ पूजा की परंपरा का प्रसार होकर आज सबसे बड़े लोकपर्वों में एक बन गया है।