महावीर जयंती : अहिंसा एवं सत्य का पाठ सिखाता भगवान महावीर का जीवन
वेबडेस्क। भगवान महावीर का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। जैन धर्म में हुए 24 तीर्थकरों में भगवान महावीर अंतिम तीर्थकर थे।भगवन महावीर के का सन्यास से पूर्व का वास्तविक नाम वर्धमान था। उनका जन्म एक क्षत्रिय राज परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ एवं माँ का नाम प्रियकारिणी था। इतिहासकारों के अनुसार वह भगवान राम के वंशज थे। उन्होंने तीस वर्ष की युवावस्था राजसी सुखों का त्याग कर सन्यास ले लिया था। संयास के बाद वह साधना की राह पर चल पड़े और कठोर तप किया।
जैन धर्म के अनुसार भगवान् महावीर ने दीक्षा ग्रहण करने के बाद दिगंबर पंथ को स्वीकार किया एवं निर्वस्त्र होकर मौन साधना की। उन्होंने 12 सालों तक कठिन तपस्या की थी। जिसके दौरान उन्होंने अपने तपोबल से सभी इच्छाओं एवं विकारों पर काबू पा लिया था। सभी विकारों एवं इन्द्रियों पर बिजय प्राप्त करने के बाद वह वर्धमान से भगवान महावीर कहलाये। भगवान महावीर आजीवन जन कल्याण का कार्य किया। उन्होंने जीवन भर समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने का कार्य किया।
भगवान महावीर ने तीन आधारभूत सिद्धांत दिए। जिसमें से पहला सिद्धांत है अहिंसा, दूसरा सत्य और तीसरा अनेकांत अस्तेय। भगवान महावीर के ये सिद्धांत लोगों को जीवन जीने की कला सिखाते है। आज के व्यस्तता भरी आधुनिक युग में ये सिद्धांत स्ट्रेसफुल लाइफ में शांति का अनुभव कराते है। भगवान महावीर ने सिर्फ शारीरिक या बाहरी अहिंसा का नहीं बल्कि मानसिक और आंतरिक जीवन से जुड़ी अहिंसा का संदेश दिया है। वह मन-वचन-कर्म, किसी भी माध्यम से की गई हिंसा को निषेध मानते थे।
जैन धर्म में आस्था रखने वाले लोग इस पर्व को बड़ी आस्था से मनाते है। वह इस दिन जगह-जगह शोभायात्रा निकालते है। भक्त गण इस दिन भगवान महावीर की विधिवत पूजा, पाठ एवं अनुष्ठान करते है। आज भी भगवान महावीर की जयंती के पवन पर्व पर जैन समाज के लोग इसे पूर्ण के साथ मनाएंगे।