पढ़े लिखे अभिभावक "मंगल के नाम पर" अपने ही संतानों को मांगलिक अवसरों से कर रहे दूर

पढ़े लिखे अभिभावक मंगल के नाम पर अपने ही संतानों को मांगलिक अवसरों से कर रहे दूर
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- डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी

मनु महाराज का वचन है कि "सर्व ज्ञानमयो हि सः" अर्थात दुनिया की समस्त ज्ञान राशि का आधार स्तंभ वेद हैं । एवं वेद भगवान का नेत्र ज्योतिष शास्त्र को माना गया है । उपनिषद का उद्घोष है "तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात् हम अंधकार से प्रकाश की ओर जावे । और ज्योति का अर्थ प्रकाश है जो विद्या अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए उस ब्रह्म विद्या का नाम ज्योतिष है । वस्तुत: मानव समाज के सुविधा के लिए शास्त्र बना है, परंतु मानवीय स्वभाव और थोड़े से लोभ के कारण आज यह असुविधा का रूप धारण कर चुका है। जहां एक ओर तकनीक ने खूब तरक्की कर ली है दुनिया को अनेक प्रकार के कठिन से कठिन काम को सरल बना दिया है, वहीं दूसरी ओर वैदिक कालीन और दुर्लभ शास्त्रों जैसे वैदिक विद्या ज्योतिष को कंप्यूटर और मोबाइल ने हर हाथ में कुंडली का एप्लीकेशन दे दिया है।


जिन लोगों को ज्योतिष का ABCD भी नहीं पता है वे लोग भी मोबाइल में तुरंत ही विवाह योग्य वर और कन्या का मिलान करने लगते हैं, तथा बिना किसी विचार के भावी वर वधू के भविष्य तय कर देते है । माता-पिता अपने संतान की सुख के लिए कुछ भी कर गुजरते है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लग रहा है कि अज्ञानता या भ्रम का शिकार होकर माता पिता ही अपने संतान की खुशियों में विघ्न डालने वाले बन गए हैं। इसको विडंबना ही कहा जाएगा कि राम भरोसे एप्लीकेशन के माध्यम से भावी वर और कन्या के भविष्य का फलादेश कर उसपर विराम लगा देते हैं । आज किसी भी समाज की बात करे तो पढ़ा लिखा और लड़के या लड़की योग्य वर या बधू का तलाश करना इतना आसान नहीं है लेकिन यादि किसी अच्छे लड़के या लड़की का बायोडेटा मिल भी जाए तो बात मंगल दोष और कुंडली मिलान अष्टकूट के गुण मिलान पर अटक जाती है। तब हम किसी ज्ञाता के पास जाकर परामर्श लेना पसंद नही करते बल्कि समय के अभाव में अपने मोबाइल या लैपटॉप में एंट्री कर तुरंत उनके भाग्य निर्माता बन जाते है ।

शास्त्र ज्योतिष शास्त्र के कालजयी ग्रंथ मुहूर्त चिंतामणि में आचार्य राम दैवज्ञ ने अष्टकूट मिलान और मंगल दोष के सैकड़ों परिहार बताए हैं । परंतु शास्त्र का अनदेखा कर लोग अपनी ही संतान के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने में लिप्त है, कहा गया है अल्प विद्या भयंकरी अथवा Little knowledge is very denguares. लेकिन समाज में हर हाथ में मोबाइल और उसमें भी हर मोबाइल के कुंडली का एप्लीकेशन कही न कही हमारा ही नुकसान करने के लिए उपस्थित है । जब हमे छोटी से छोटी रोग बीमारी हो तो हम अच्छे डॉक्टर की तलाश करते है अपने परिचित और रिश्तेदारों से पूछते है कि कोई अच्छा डांक्टर बताओ लेकिन जब बात हो अपने ही संतानों के पूरे जीवन और भविष्य की तब हम यहां अपनी होशियारी दिखा जाते है । जैसे नीम हकीम खतरे जान वाली कहावत को सच करने को बेकाबू हो उठते हैं।

ज्योतिष शास्त्र का अष्टकूट मिलान अथवा मंगल दोष अपने आप में एक विस्तृत और पूर्णतः वैज्ञानिक विषय है यह केवल परंपराओं का निर्वहन मात्र नही है। जिसका ज्ञान समाज में ज्योतिष से अपना जीवन यापन करने वालो में भी 80% के पास नही है। सबसे बड़ी बात है ये है कि हम पढ़े लिखे और जागरूक समाज के होकर कार्य अंधविश्वास और मूर्खता पूर्ण करते है। मेरे व्यक्तिगत परिचित लोग ऐसे है जिन्होंने अपने लड़की या लड़के के लिए अपने समाज और जाति के 1000 से भी अधिक बायोडेटा जो की वर कन्या के अनुकूल है इसलिए आगे नहीं बढ़ पाए की उनके मस्तिष्क में ये पहले से भरा है की बालक या बालिका को मंगल दोष है, जैसे मंगल होना कोई गुनाह हो गया हो। यादि जन्मकुंडली के ज्ञाता लोगो से बात करें तो 80% कुंडलियां मंगलिक होती है। समाज को आवश्यकता है अपने सूझ बुझ से काम लेने की, किसी अच्छे शास्त्रज्ञ परामर्शक के पास जाकर वो अपनी जन्मपत्रिका का मिलान करवा कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचे । ना कि पूर्वाग्रह से मंगल नाड़ी आदि से ग्रसित रहकर अपने बालको के सुखमय जीवन के प्रारंभ के पहले ही अपने अल्पज्ञता से बालको का भविष्य तय कर दे ।

- लेखक डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय में ज्योतिष शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।


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