वाहवाही लूटते रहे मौन चित्र

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निरंतर अध्ययन चिंतन मनन और जीवन के प्रति सम्यक, दृष्टिबोध से सशक्त कला संरचना का मार्ग प्रशस्त होता है। उक्ताशय के विचार आईटीएम विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं संस्थापक कला मर्मज्ञ शिक्षाविद् श्री रमाशंकर सिंह ने गत दिवस यहां कला प्रदर्शनी औैर कला शिविर के समापन अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने ग्वालियर की गौरवशाली कला परंपरा का उल्लेख करते हुए कला की उत्तरोत्तर प्रगति एवं व्यापक जनभागीदारी की वकालत की। उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता सेनानी कला महर्षि स्व. श्री मुकुंदजी, जिन्होंने सन् १९३६ में ग्वालियर में व्यवस्थित कला शिक्षण की नींव रखी थी। उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों की श्रंृखला में एक फरवरी से चार फरवरी तक कला प्रदर्शि नी और २ फरवरी से चार फरवरी तक तीन दिवसीय कला शिविर का सफल आयोजन किया गया।

कला प्रदर्शिनी में ४० कलाकारों की ८२ पेंटिंग्स व १ बुततराश श्री सुभाष चंद्र अरोरा की ६ मूर्तिया प्रदर्शित की गई। कला शिविर में ३० चितेरों ने कलाकृतियां बनाई। कला प्रदर्शनी का उद्घाटन ग्वालियर के महापौर विवेक शेजवलकर ने किया तथा अगले दिन दो फरवरी को ग्वालियर संभाग के उपपुलिस महानिरीक्षक श्री मनोहर वर्मा ने कलाशिविर का औपचारिक शुंभारंभ किया


श्री रवींद्र नाथ टैगोर जी के अनुसार मनुष्य अपने गंभीरतम अंतर्मन की अभिव्यक्ति करता है। फ्रायड ने कला को मानव की दमित वासनाओं का उभार माना है। हर्बर्टरीड ने कला की सरल और सामान्य परिभाषा देते हुए कहा है कि- कला अभिव्यक्ति का आल्हादक या रंजक स्वरूप है। मेरी दृष्टि में पेंटिंग कैनवास पर रंगों से रची गई शब्दातीत काव्य रचना है। अक्षर ज्ञान रहित मनुष्य भी इससे आनंदित हुए बिना नहीं रह सकता। शायद आदि मानव द्वारा निर्मित शैल चित्रों से ही भाषा जन्मी होगी।

कला शिविर में शामिल होने दिल्ली से आए श्री शम्भुनाथ गोस्वामी ने अपनी पेंटिंग में बनारस के फोटो को सजीव कर दिया। अमरोहा से पधारे वरिष्ठ चित्रकार श्री मुस्तजाब शैली ने नायिका का सौंदर्यमयी सजीव चित्रण किया। झांसी से आए श्री किशन सोनी ने रियलिस्टिक स्टाइल में कला पेंटिंग का अनूठा चित्रण किया। कलागुरू श्री मुकुंद सखाराम भांड के सुपुत्र श्री पाद मुकुं द भांड ने प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत चित्रण किया। उनके लैंडस्केप देखते ही बनते थे। इसी प्रकार डॉ. संजय धवले जो कि मूलत: चिकित्सक भी हैं ने भी, अल्प समय में दो मनोहारी लैंडस्केप तैयार किए। युवा कलाकार प्रवीण ने अपनी पेंटिंग में बहते रंगों का जादू बिखेरते हुए भारतीय संन्यासी को सजीव कर दिया। बालाघाट मध्यप्रदेश में जन्मी जेबा तबस्सुम ने कला शिविर में जीवाजी राव का पोटे्रट पेंटिंग नाइफ, (चाकू) का इस्तेमाल कर उभरे रंगों में तैयार किया। अलीगढ़ से आई नगमा शमीम ने लाइट एंड डार्क वर्क विषय पर रंगों के साथ-साथ अन्य सामग्री का उपयोग कर सशक्त कलाभिव्यक्ति से मोहित किया। इसी क्रम में झांसी की वरिष्ठ कलाकार कामिनी बघेल ने अपनी कला शैली में नारी केंद्रित पेंटिंग तैयार की । उनकी कला में भौतिकता का आभास स्पष्ट झलकता था। कलाकार योगेंद्र सनी सिंह ने लाल, पीले व नीले रंगों से घोड़ा व सूरज चित्रित किया।


कलकत्ता से आए भरत दास ने कलकत्ता के ट्रैफिक को उजागर किया। उन्हीं के साथ आए उनके साथी कलाकार ने ग्वालियर के अपने अनुभव व एहसास को पेंटिंग में खूबसूरती से दर्शाया। उन्होंने कहा- मैं पहली बार ग्वालियर आया हूँ। किला छतरी व चौराहे पर लगी प्रतिमाएं देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अर्चना तिवारी ने फूल को कैनवास पर उतारा। श्रीमती अनामिका कुंदवानी ने रंगीन ज्यामितीय आकार उकेरा। रिवाड़ी से आए कपिल आनंद ने शिक्षा की अनिवार्यता दर्शाने कला चित्र बनाया। दीक्षा कैन ने स्त्री जीवन की मछली से तुलना करते हुए चित्रण किया। विवेक सप्रे ने लैंडस्केप चित्रित किया। श्रीमती राजबाला अरोरा ने नीड़ (घोंसला) तैयार करते सारस के जोड़े का चित्रण किया।

प्रदर्शनी कार्यक्रम के संयोजक विशाल शर्मा की दो पेंटिंग्स विशेष आकर्षण का केंद्र रहीं। अमरोहा के श्री मुस्तजाब शैली की फ्लाइंग चेयर व फ्लाइंग बैलून लोकल मीडिया का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रही, वहीं प्रवीण द्वारा चित्रित लडक़ी व टाइम मशीन, जेबा तबस्सुम का पेंसिल में जे स्वामीनाथन व टाइल्स के टुकड़ों से एम. एफ. हुसैन का पोटे्रट, जयां शर्मा का हाथी व शेर, निखिल गिरि के वाटर कलर में लैंड स्केप, अलका धवल की कृष्ण रासलीला, श्री मती महिमा तारे का राधाकृष्ण, अल्पना का समुद्र के बीच पर लोगों के हुजूम का दृश्य अनामिका कुंदवानी का बुद्धा, डॉ. अर्चना तिवारी का विंड मिल, बबिता राज की स्त्री, दीक्षा कैन की मछलियां, डॉ. नीलू शर्मा का अमूर्त, डॉ. संजय धवले का प्राकृतिक दृश्य (अमूर्त) डॉ. जया जैन का तीर्थंकर महावीर जैन का चित्र, जिज्ञासा जादौन का लैंडस्केप, कामिनी गुप्ता का बुद्धा, डॉ. कुमकुम माथुर का लैंडस्केप, मोनिका का चितवन, मुकुल तिवारी का अमूर्तन का नगमा शमीम का प्राकृतिक दृश्य स्व. मुकुंद सखाराम भांड के शिष्य की कृष्ण वर्मा का गणेश प्रमोद पत्की द्वारा पारम्परिक, महाराष्ट्रियन वेशभूषा में दो महिलाओं का चित्रण, प्रवीण शर्मा का गै्रफिक्स व सेमीरियलिस्टिक वीणावादिनी का चित्र, रिचा सोनी का आकर्षक व चटकदार रंगों में खेल चित्रों की सर्जना, रेनुका चौधरी व रजत सक्सेना के प्राकृतिक दृश्य, ऊषा सिकरवार का मां सरस्वती का चित्र, रोशनी राय की अप्सरा, जूही ज़ील की ब्लैक आक्साइड में महिला मुविन्त का चित्र, सीेमा भारती का बंगाल के हाथ रिक्शे में बैठी मां बेटी का चित्र, प्रीति चौहान उन्मुक्त होकर वाद्य बजाती महिला का चित्र, सुरेंद्र मालावरिया का अमूर्त और श्रीमती राजबाला अरोरा का आयल में पोट्रेट व तोते का चित्रण, सुभाष चंद्र अरोरा के मूर्ति शिल्यों में चेहरे पर चेहरा, गणेश व युग्ल आदि आकर्षण का केंद्र रहे।

स्व. मुकुन्द सखाराम भांड का जीवन परिचय

कलागुरू मुकुन्द सखाराम भांड की स्मृति में यह आयोजन नगर व राष्ट्र के भावी कलाकरों को एक ऐसा मंच प्रदान करता है जिसमें वरिष्ठ कलाकार अपनी भागीदारी से युवा कलाकारों व नवोदित कलाकारों को न केवल प्रोत्साहित करते हैं अपितु उचित मार्गदर्शन भी देते हैं। कलागुरू के सुपुत्र श्री पाद मुकुंद भांड और उनके शिष्य सर्वश्री बालकृष्ण अराबकार बसंत धूमल, मनोहर खोकले, बालकृष्ण वर्मा, गुरमीत सिंह, सैनी, एस. सिंह कार्यक्रम के संयोजक श्री विशाल शर्मा, डॉ. संजय धवले, श्रीमती अनामिका कुंदवानी, अजय व टीम के सभी सदस्यगण विशेष साधुवाद के हकदार हैं।

-राजबाला अरोरा कला पत्रकार एवं चित्रकार

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