गुरु नानक देव जी का उपदेश

गुरु नानक देव जी का उपदेश
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नीरू सिंह ज्ञानी

स्वदेश वेबडेस्क। सांझीवाल के समर्थक मानवता का संदेश देने वाले विनम्रता की मूर्ति गुरु नानक देव जी का जन्म 1526 में तलवंडी जिला शेखपुरा (अब पाकिस्तान )में पिता मेहता कालू तथा माता तृप्ता जी के गृह में हुआ। प्रभु एक है । "एक ओंकार " द्वारा संदेश दिया।

फ्रेडरिक पिनकाट लिखते हैं "श्री गुरु नानक देव जी ने यह सच घर-घर में पहुंचा दिया कोई ऊंचा ,कोई नीचा ,कोई बुरा कोई विशेष ,कोई आम और कोई अछूत नहीं। एक नई विचारधारा इस विषय को दी। "

गुरु नानक देव जी ने अपनी बाणी में उचारा -

"सभ मह जोति जोति है सोइ। "

गुरु नानक देव जी ने कुदरत और प्रकृति के बारे में 550 वर्ष पहले ही गुरबाणी उचारी।

"पाताला पाताल लख आगासा आगास "

लाखो पाताल लाखों आकाश है ।जिसकी खोज हमारे वैज्ञानिक कर रहे हैं।आज पूरा विश्व करोना महामारी से जूझ रहा है। पूरा विश्व प्राकृतिक जीवन जीने की दिशा में बढ़ रहा है। मनुष्य को समझ में आ रहा है कि प्रकृति का संरक्षण करना अति आवश्यक है।गुरु नानक देव जी ने अपनी बाणी से प्रकृति का महत्व समझाया है ।

"कुदरति पउणु पाणी बैसंतरु कुदरति धरती खाकु ॥ सभ तेरी कुदरति तूं कादिरु करता पाकी नाई पाकु ॥"(पन्ना ४६४)गुरु ग्रंथ साहिब

हम सब जानते है हमारा शरीर भी पंचतत्वों से ही बना है। गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में प्राकृतिक जीवन के बारे में गुरबाणी में लिखा है'पवण गुरु पाणी पिता माता धरति महतु '।। अर्थात पवन हमारे गुरु हैं क्योंकि अगर पवन दूषित हो जाए तो जीवन पर विनाश का खतरा पैदा हो जाता है। प्रकृति में वायु से ही हम जीवित हैं ।

"पवण पाणी अग्नि मिल‌ जीआ।" (मारू १ पन्ना १०२६)गुरु ग्रंथ साहिब ।

पवन पानी अग्नि से मिलकर ही जीवन बने हैं। वाणी,शब्द ,संवाद ,धुन,सभी का आधार पवन है ।इसी प्रकार गुरु के ज्ञान बिना आत्मा मुर्दा हैं।

यह भी सच है कि पवन ही हमारे शरीर में जीवन भरती है।पानी को गुरु नानक देव जी ने पिता कहा है और धरती को महान माता जिससे अन्न आदि देकर धरती अपनी गोद में जीवों को पालती है। धरती हमारी बड़ी मां की तरह है जो सारी हमारी जरूरतें पूरी करती है और हमारी मां की तरह ध्यान रखती है। पानी हमारे लिए ऐसा है जैसे पिता और धरती हमारी मां जैसी है जैसे माता-पिता के मिलन से आगे जीवो का जन्म होता है और मां अपनी कोख में बच्चे को पालती है वैसे ही पानी और धरती के मिलन से ही जीवन की उत्पत्ति और पालने का सिलसिला चलता है।

पर्यावरण बचाने के लिए इससे अच्छा संदेश नहीं मिल सकता। आज पूरी दुनिया जब करोना की महामारी से जूझते हुए मनुष्य को समझ में आ रहा है कि प्रकृति का संरक्षण करना कितना आवश्यक है।आस्था के साथ साथ हमारे गुरुओं और सभी धर्मों में दिए गए संदेश को धर्म को जीवनशैली बनाए तो निश्चित तौर पर ही हमारा जीवन सार्थक होगा।

नीरू सिंह ज्ञानी

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